Pocso Act पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला
मोबाइल, लैपटॉप या टैब में बच्चों से जुड़ी यौन सामग्री रखने पर पॉक्सो लगाना सही, फॉरवर्ड करना भी अपराध
सुप्रीम कोर्ट ने बच्चों से संबंधित यौन अपराधों के मामले में एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए मद्रास हाइकोर्ट के एक आदेश को पलट दिया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चाइल्ड पोर्न डिजिटल तरीके से अपने पास रखना या उसे फॉरवर्ड करना ही नहीं इसे इंटरनेट पर देखना भी अपराध माना जाएगा और इन सभी पर पॉक्सो एक्ट लगेगा. सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था देते हुए कहा है कि बच्चों से जुड़ी यौन सामग्री रखना अपराध है.
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को ऐसी सामग्री के नाम को लेकर भी आदेश दिए हैं. कोर्ट ने कहा कि फोन या लैपटॉप जैसे डिजिटल उपकरणों में चाइल्ड पोर्न को रखना, उसे आगे बढ़ाना तो अपराध माना ही जाएगा, ऐसी सामग्री मिलने पर एजेंसियों को न बताना भी अपराध की श्रेणी में ही आएगा. यानी आज के आदेश के बाद चाइल्ड पोर्न रखने और उसे डिलीट ना करने को उस स्थिति में अपराध माना जाएगा जब इसे फॉरवर्ड करने का सोच कर इसे रखा गया हो. यानी व्यक्ति की मंशा और हालात के आधार पर पॉक्सो एक्ट की धारा 15(1) के तहत अपराध माना जाए या नहीं. ऐसी सामग्री डिवाइस पर रखने के साथ उसे आगे बढ़ाने ही नहीं ऐसे काम में मदद करने वाले को भी बराबर का अपराधी माना जाएगा. यह सामग्री किसी को दिखाना भी अपराध होगा. ऐसी सामग्री से किसी तरह के लाभ लेने पर भी अपराध की ही धाराएं लगेंगी. चाइल्ड पोर्न को सीधे इंटरनेट पर देखने को भी अपराध बताते हुए कोर्ट ने कहा कि इंटरनेट पर इन्हें देखना, भेजना भी अपराध की श्रेणी में है.
‘चाइल्ड पोर्न’ शब्द पर आपत्ति
सुप्रीम कोर्ट ने सभी अपने अधीन सभी न्यायालयों को ‘चाइल्ड पोर्न’ शब्द का इस्तेमाल न करने की सझाइश दी है. कोर्ट के अनुसार पोर्न की परिभाषा में सहमति हो सकती है लेकिन बच्चों के मामले में ऐसा नहीं माना जा सकता. कोर्ट का मानना है कि ‘चाइल्ड पोर्नोग्राफ़ी’ एक ग़लत नाम है जो अपराध की गंभीरता प्रकट नहीं करता बल्कि इस शब्द के प्रयोग से अपराध को महत्वहीन किया जाता है. मद्रास हाई कोर्ट ने इसी साल जनवरी में एक निर्णय में कहा था कि चाइल्ड पॉर्न डाउनलोड करना और इसे एकांत में देखना पॉक्सो और IT के तहत अपराध नहीं माना जा सकता. दरअसल 28 साल के एक व्यक्ति को चाइल्ड पॉर्न डाउनलोड करने और इसे देखने पर पुलिस ने पॉक्सो और IT एक्ट के तहत अपराधी माना था लेकिन हाईकोर्ट ने कहा था कि एकांत में बिना किसी पर प्रभाव डाले ऐसा करने को अपराध नहीं माना जाए. एक कदम आगे जाते हुए मद्रास हाई कोर्ट ने कहा था कि पोर्न अब शराब-सिगरेट पीने जैसी बीमारी हो चुकी है जो सामाजिक तौर ही सही होगी, इसी आदेश को सुप्रीम कोर्ट ने पूरी तरह पलट दिया है.