June 20, 2025
लाइफस्टाइल

Screen Time का मैनेजमेंट सीखना ही होगा

इस आदत पर अभी से रोक जरुरी

मोबाइल और कंप्यूटर की बहुतायत और इनकी आदत के चलते बड़े लोगों में तो स्क्रीन टाइम बढ़ा ही है साथ ही अब देश में बच्चों का स्क्रीन समय भी तेजी से बढ़ा है, इससे बच्चों का सामाजिक और मनोवैज्ञानिक विकास प्रभावित हो रहा है. स्क्रीन टाइम जितना ज्यादा होगा बच्चों के खेलने का समय और बातचीत का समय उसी अनुपात में कम होता जाएगा.

यह वाकई चिंता की बात है कि एक ताजा अध्ययन बता रहा है कि प्रतिदिन 3 घंटे से ज्यादा स्क्रीन टाइम देने वाले बच्चों में सामाजिक जुड़ाव का स्तर काफी कम हो चुका है. डिजिटल इंटरैक्शन पर निर्भर बच्चे शारीरिक गतिविधियों पर भी उतना ही कम ध्यान दे पाते हैं. स्वास्थ्य मंत्रालय की पिछले साल की रिपोर्ट में शहरी बच्चों में बाहरी गतिविधियों में 40 प्रतिशत तक की कमी को आंकी गई थी. स्क्रीन पर समय देने वाले बच्चों में अवसाद जैसे लक्षणों की अधिकता भी मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ा बड़ा मुद्दा है.

लैंसेट चाइल्ड एंड एडोलसेंट हेल्थ (2024) की रिपोर्ट कहती है कि 4 घंटे से ज्यादा स्क्रीन पर देने वाले किशोर सामान्य के मुकाबले पंद्रह प्रतिशत तक ज्यादा चिंतित रहते हैं. एम्स के एक अध्ययन ने बच्चों के स्क्रीन टाइम को उन लक्षणों से जोड़ा जिनमें स्क्रीन लाइट के चलते नींद का चक्र बुरी तरह प्रभावित होता है. इस बारे में इंडियन जर्नल ऑफ़ पीडियाट्रिक्स के अध्ययन में पता चला ये सारे अध्ययन एक ही बात बता रहे हैं कि हमें तकनीक के इस्तेमाल की सीमाएँ तय करनी ही होंगी क्योंकि स्क्रीन उपयोग बढ़ने के साथ मस्तिष्क के सर्किट अनुकूल उसी के हिसाब से बदल जाते हैं. हमारा दिमाग इसके चलते डोपामाइन के प्रति संवेदनशीलता कम होती जाती है. यानी निश्चित बिंदु के बाद इस लत का शारीरिक और भावनात्मक नकारात्मक असर पड़ता है. इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स का कहना है कि कम उम्र से ही स्क्रीन का जिम्मेदार तरीके से स्क्रीन उपयोग सिखाने को पाठ्यक्रम में शामिल करना चाहिए और माता पिता को इसके लिए सेमीनार्स के जरिए जागरुक करना चाहिए. वर्ल्ड हैल्थ ऑर्गेनाइजेशन स्क्रीन टाइम प्रतिबंधों के सुझाव के साथ बच्चों में बाहरी और सामूहिक गतिविधियों को प्रोत्साहित करने के लिए भी कहता रहा है. कुछ स्कूलों ने “स्क्रीन-फ्री डेज़” की शुरुआत की है. ऐसे में बच्चे के स्क्रीन उपयोग के पैटर्न के प्रति सतर्क रहने की जरुरत है. ये सीमाएँ निर्धारित करना पहली बार में मुश्किल लगता है लेकिन जैसे भी हो हमें इसे करना ही होगा.