June 21, 2025
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Plaster Of Paris की मूर्ति लेने से पहले सोचें जरुर

मिट्‌टी की प्रतिमा ही हैं हमारी परंपरा का अंश

मौसम के बदलते मिजाज के साथ पर्वों का मौसम आने वाला है, हर शुभ कार्य के पहले विघ्नहर्ता की आराधना होती है और यही वजह है कि भाद्रपद से शुरु होने वाले पर्वों में सबसे पहले गणेश के दस दिन आते हैं. चारों ओर उल्लास के मौसम में एक सावधानी भी जरुरी है कि देव प्रतिमाएं प्लास्टर आफ पेरिस वाली न लाएं. कुछ सरकारें तो ये आदेश दे चुकी हैं लेकिन आदेशों के बजाए यदि हम इस बात का मर्म समझकर पीओपी से किनारा करेंगे तो ज्यादा बेहतर होगा. गणेश के बाद दुर्गा जी के साथ नवरात्रि, विश्वकर्मा पूजा, दीपावली तक आप और हम प्रतिमाएं लेते ही हैं लेकिन यह भी समझें कि पारंपरिक तौर पर मूर्ति मिट्टी की ही बनाई जाती रही हैं जो प्राकृतिक रंगों, कपड़ों आदि से सजाई जाती थीं. पीओपी प्रतिमाओं और उन पर चढ़े रासायनिक रंगों के नुकसान समझ लेंगे तो अपनी समृद्ध परंपरा पर गर्व करेंगे और माटी से ही जुड़े रहेंगे, आप भी और देव प्रतिमा भी. देश में हर साल सिर्फ इन त्योहारों के सीजन में लाखों प्रतिमाएं बनाई जाती हैं, एक समय तो ऐसा भी आ गया था जब 90 प्रतिशत प्रतिमाएं पीओपी से बनाई जाने लगी थीं और पीओपी खत्म होने वाली चीज है नहीं.
जिप्सम से बनने वाले पीओपी को कैल्शियम सल्फेट हेमी हाइड्रेट कहा जाता है जो पानी में न घुलने वाला तत्व है, इन मूर्तियों पर डाले गए रंग बॉयोलॉजिकल ऑक्सीजन का समीकरण गड़बड़ा देते हैं जो जलजीवों के लिए खतरनाक है. जबकि परंपरागत रुप से होता यह था कि मानसून में नदियों के साथ जो मिट्टी बह आती थी उसी चिकनी मिट्टी को लाकर प्रतिमा गढ़ी जाती थी. पूजा के बाद वही नदी और वही मिट्‌टी, फिर मिल जाते. प्रतिमा के साथ अन्न और फल आदि होते जो जल-चरों का भोजन होता लेकिन यह मिट्‌टी की बात थी जबकि आज पीओपी तो नदी और जलजीवों की जान का संकट बन रहा है. भारतीय पर्व मूल रुप में प्रकृति को धन्यवाद ज्ञापित करने के लिए होते हैं और हमें पीओपी प्रतिमा लेने से पहले यह पूछना चाहिए कि हम इससे प्रकृति को धन्यवाद दे रहे हें या उसके विनाश की दिशा में अपनी तरफ से एक कदम बढ़ा रहे हैं.