June 21, 2025
साहित्य समाचार

Book Review स्याह रातों के चमकीले ख्वाब : बेबाकी से लिखा खरा उपन्यास

खबरदार! यहाँ खुद को अंधेरे में रखकर दूसरों की सुर्खियां सजाई जाती हैं….

स्मृति आदित्य

”यह पुस्तक हर साल मीडिया में आने वाले उन हजारों हिम्मतवर नौजवानों को समर्पित है, जो सपनों को कभी मरने नहीं देते हैं और हर मायूसी को पार कर हर दिन एक नई ऊर्जा से डटे रहते हैं खबरों की चमचमाती लेकिन एक बेहद बेरहम दुनिया में. खबरदार! यहाँ खुद को अंधेरे में रखकर दूसरों की सुर्खियां सजाई जाती हैं….”

पत्रकारिता के अनुभव पर रचे उपन्यास के पहले पेज पर इन पंक्तियों को लिखने वाले लेखक विजय मनोहर तिवारी के अपने तर्क हैं, तेवर हैं और तेज हैं…

अखबारी दुनिया की एक दिलचस्प दास्तान – ‘स्याह रातों के चमकीले ख्वाब’ किताब के जरिए उन्होंने अपनी पत्रकारिता और एक बड़े अखबार के शीर्ष से फर्श तक आने की यात्रा को रोचक और मर्मस्पर्शी अंदाज़ में बयां किया है.

पत्रकारिता की कच्ची-पक्की उम्मीदों के बेरंग धागों से शब्दों की महीन कारीगरी करते-करते यकायक एक कसैले सच से पर्दा उठाते हैं और पाठकों को आमंत्रित (बाध्य) करते हैं इस दुनिया की धूल,धुंए, मिट्टी और कीचड़ देखने के लिए …

अपने ही कार्यक्षेत्र में अपने ही आसपास के जहरीले जीवों को हम पहचान नहीं पाते हैं और जब तक पहचान पाते हैं तब तक पूरी की पूरी ‘दुनिया’ आगे सरक चुकी होती है… या कहें कि ‘नई’ से ‘पुरानी’ हो चुकी होती है…किसी अखबार (हाउस) के उठान से लेकर ढलान तक का ग्राफ वही खींच सकता है जो इस प्रक्रिया को करीब से देख सका हो..और जिसने पूरी कहानी में किरदारों को पहले चमकते और फिर खत्म होते देखा हो… जो अपने ऊपर हुए प्रयोगों को भी पहचान लेता है और अखबार के प्रयोगों का रसायन भी सूंघ लेता है…

एक ‘खास’ जगह ‘खास’ तरह से काम करने का घमंड जो विनम्रता और स्वाभिमान के आवरण में अखबार से जुड़े हर शख्स को होता है फिर जब वह घमंड टूटता है तो कई लोग उसके भार तले दबते हैं, मारे जाते हैं… भ्रम चटकते हैं रोशनी बुझती है और पटाक्षेप होता है फिर जो चेहरे खिलते-खिलखिलाते थे वे खिसियाते-खींसे निपोरते नज़र आते हैं….

अब जबकि अखबारों के रूम,मीटिंग, कायदे, तरीके सब तेजी से बदल रहे हैं ऐसे में किताब में वर्णित पारंपरिक रूप से काम करने वाला अखबार का दफ्तर नामा आकर्षित करता है. उन्हीं से शब्द उधार लेकर कहें तो ऋषितुल्य संपादकों की एक श्रृंखला देने वाला अखबार अपनी विरासत को सहेज नहीं पाता है अपने अच्छे नामों को रोक नहीं पाता है, राजनीति के मोहरे बनते हुए देखते रहता है…

किसी खास व्यक्तित्व की वजह से अखबार को पहचान मिले तो उस कद का अनुमान लगाना मुश्किल नहीं है….यहाँ संपादक एक पद भर नहीं है बल्कि एक ऐसा पद है जो पद से परे अपने तीखे अंदाज़ और तीक्ष्ण नज़र से प्रदेश की पारियां बदलने में माहिर है… फिर कब और कैसे… क्यों और क्या होता है कि वह नाखून झरे हुए शेर की तरह अपनी ही श्रद्धांजलि का पेज अपनी ही सहकर्मी से मांग कर देखना चाहता है…. यह जीवन का मर्मांतक सच है जिसे कांपते हाथों से संपादक ने देखा पर लेखक ने सधे हाथों उनके माध्यम से पाठकों के लिए उघाड़ा है…

रिपोर्टिंग की निर्मम दुनिया में निहित स्वार्थों और अंदरुनी रिश्तों के चलते अरमानों की स्टोरी का इतनी खामोशी से कत्ल होता है कि उसे रचने वाला दो दिन भले डिप्रेशन में डूबता रहे पर तीसरे दिन कोई दूसरी कहानी को जन्म देने चल ही पड़ता है… बिना यह जाने कि उसका भविष्य क्या होगा? वह अकाल मृत्यु को प्राप्त होगी, टेबल पर ही सड़ सड़ कर दम तोड़ देगी या पहले पेज पर चमकदार करियर की मुनादी करेगी… उसके अख्तियार में बस स्टोरी को लाना है, प्रकाशित होना उन बड़े चालबाज़ों के हाथ में है जो यह तय करते हैं कि इस स्टोरी से कौन से समीकरण बनेंगे-बिगड़ेंगे….

नवागत हो या स्थापित पत्रकार अगर बहुत ईमानदारी से समाज को बदलने का बिगुल लेकर निकला है तो वह याद रखें कि उसे विचित्र जीव-जंतुओं से भरे दरिया को भी पार करना है….आप कह सकते हैं कि यही तो जीवन की फिलॉसफी है पर नहीं पत्रकारिता के मामले में इस बात को अतिरिक्त गंभीरता से देखना होगा…यहाँ आपको अपने ही कर्म, कमाई और करियर के खिलाफ काम करते क्रूर, कुंठित व कपटी कातिलों के साथ कॉफी और कचोरी लेनी पड़ सकती है…

एक नग्न सच लेखक विजय ने आंखों में अंगुली डाल कर निकाला है और पन्नों पर सलीके से संजोया है…हर पत्रकार और अखबारी घराने के नामों को इस किताब को उठाकर पढ़ने की हिम्मत करनी चाहिए.

वैभवशाली वर्चस्व से विषमताओं का शिकार होकर विनाश की कगार पर पहुंचा एक अखबार और बाद में सिर्फ यादों की जुगाली के साथ विलाप करता पाठक… इस कहानी को कुछ काल्पनिक और कुछ वास्तविक किरदारों के साथ पढ़ना रुचिकर और कष्टप्रद दोनों है… विजय की शब्द सम्पदा अकूत है और अभिव्यक्ति अचूक … एक पठनीय और संग्रहणीय उपन्यास है -स्याह रातों के चमकीले ख्वाब…

उपन्यास: स्याह रातों के चमकीले ख्वाब
लेखक: विजय मनोहर तिवारी
प्रकाशक : प्रभात प्रकाशन
कीमत : 500 रुपए