Ex CJI को लेकर अब नया मामला लाए सांसद निशिकांत दुबे
पूरा मामला सोशल मीडिया पर बताते हुए कहा कि बिना कानून की डिग्री वाले भी बने हें देश में सीजेआई
इधर सुप्रीम कोर्ट कह रही है कि निशिकांत दुबे पर मानहानि का केस चलाने के लिए उसकी रजामंदी जरुरी नहीं है यानी खुला ऑफर है कि जो चाहे उन पर मानहानि का केस लगाए लेकिन दुबे जी भी रुकने का नाम नहीं ले रहे हैं. उनके प्रधान न्यायाधीश पर दिए गए बयान से उनकी पार्टी ने भले किनारा कर लिया हो लेकिन दुबेजी का तेवर नरम नहीं पड़े हैं और अब उन्होंने एक मुद्दा और उठा दिया है जिसमें उन्होंने एक ऐसे व्यक्ति के चीफ जस्टिस बन जाने पर सवाल उठाए हैं जिनके पास कानून की डिग्री तो नहीं थी लेकिन सरकार का समर्थन उन्हें जरुर हासिल था. सोशलन मीडिया पर कैलाशनाथ वांचू के विषय में लिखते हुए निशिकांत दुबे ने याद दिलाया है कि वांचू दसवें सीजेआई बने थे और उन्होंने सरकार के पक्ष में बड़े फैसले भी दिए. उन्हें बिना कानून की डिग्री के 1937 में जिला जज बतौर नियुक्ति मिली. 1947 में उन्हें इलाहाबाद हाईकोर्ट भेज दिया गया. इसके बाद वो राजस्थान हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस बने. राजस्थान हाईकोर्ट में 7 साल रहने के बाद वांचू सुप्रीम कोर्ट में जज बने जहां अप्रैल 1967 में वो सीजेआई तक बन गए. दरअसल तत्कालीन सीजेआई सुब्बाराव राष्ट्रपति चुनाव लड़ना चाहते थे इसलिए उन्होंने एकाएक इस्तीफ़ा दे दिया था. तब ताबड़तोड़ वांचू सीजेआई बने थे.
वे अब तक के पहले और अकेले ऐसे चीफ जसटिस रहे हैं जिनके पास न कानून वकालत की डिग्री थी और न कभी उन्होंने वकालत की. वांचू दस महीने चीफ जस्टिस रहे. इस दौरान उन्होंने कई संवैधानिक मामले भी सुने. उनके चीफ जस्टिस बनने से पहले जब सुब्बाराव ने एक मामले में फैसला दिया था कि संसद संविधान के दिए मूल अधिकारों में संशोधन नहीं कर सकती, तब सुनवाई की बेंच में शामिल जस्टिस वांचू फैसले से असहमति जताते हुए कहा था कि संसद नागरिकों को मिले मूल अधिकारों में बदलाव कर सकती है. यह बात सरकार के पक्ष में कही गई थी और इस असहमति दिखाने के कुछ ही दिनों में उन्हें सीजेआई बना दिया गया था.