June 14, 2025
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Social Media के बेताज बादशाह और चुनी हुई सरकारें

इधर व्हॉट्सएप ने भारत सरकार के खिलाफ मुकदमे में कहा है कि वह नए आईटी एक्ट का पालन करने में असमर्थ है क्योंकि उसकी इन्क्रिप्टेड तकनीक वह नहीं हटा सकता वही एलन मस्क के सोशल मीडिया ‘एक्स’ ने ऑस्ट्रेलिया के कायदे मानने से इंकार किया है. यहां भारत से व्हॉट्सएप ने हट जाने की धमकी दी है तो एक्स ने कहा है कि वह ऑस्ट्रेलिया से हट सकता है. ऐसे एक नहीं सैकड़ों उदाहरण मिल जाएंगे जहां राष्ट्र की सत्ता से इन सोशल मीडिया की विश्वव्यापी दुनिया के वर्चुअल महाराजा टकराते हैं. मस्क या जुकरबर्ग को महाराजा कहीना पहली नजर में भले अजीब लगे लेकिन सच यही है कि ये एक विशाल सत्ता के मालिक हें और इनकी सत्ता इतनी बड़ी हो चुकी हैं कि न जाने कितने देशों की जनसंख्या मिलकर भी इनके राज की जनसंख्या का मुकाबला नहीं कर सकती. 112 भाषा वाले फेसबुक की हर महीने लॉगइन होने वाली आबादी जल्द ही 3 बिलियन का आंकड़ा छूने वाली है यानी इस दुनिया की आधी आबादी जुकरबर्ग की रियाया बन चुकी है और उनके कायदे मानती है. उधर ट्विटर से एक्स हुए सोशल मीडिया के मालिक एलन मस्क की प्रजा में 500 मिलियन की आबादी है, इसके बाद इंस्टा का नंबर आता है जो फिर जुकरबर्ग की ही रियासत है और यह सब तब है जब चीन अपने यहां अपने खुद के सोशल मीडिया को बढ़ावा देता है और किम जोंग जैसों के देश में इसकी पहुंच बेहद सीमित है. इन आंकड़ों से समझा जा सकता है कि ये नए और वर्चुअल महाराजा कितने ताकतवर हैं और अपने एलगोरिदम में जरा से बदलाव से ये किसी भी देश की सत्ता को सीधी चुनौती देने में किस हद तक सक्षम हैं, इससे भी बढ़कर यह कि अब इन सारे प्लेटफॉर्म पर एआई यानी कृत्रिम बुद्धि हावी है. एक जुकरबर्ग या मस्क की सनक और उस पर इस सुपर पॉवर कृत्रिम बुद्धि का साथ दुनिया का रुख बदल देने के लिए पर्याप्त हैं. इसलिए यदि आप किसी एक सरकार या देश के खिलाफ इन्हें खड़े होते देखते हैं तो इसका फलक थोड़ा और व्यापक कर देखिए. यदि आज भारत में नए आईटी एक्ट के अनुसार इन्हें फेक न्यूज का मूल बताने की बंदिश बुरी लग रही है तो कल को यह बात बढ़कर दूसरे मुद्दों तक जानी तय है, ऑस्ट्रेलिया वाला मामला ही देखिए. एक सिरफिरे ने चर्च में घुसकर पादरी पर चाकू से हमला कर दिया. इसका वीडियो एक्स पर वायरल हो गया, ऑस्ट्रेलियन सरकार ने कहा कि एक्स को अपने प्लेटफॉर्म से इसे हटा देना चाहिए क्योंकि इससे मामला बढ़ सकता है और मस्क ऐसा करना नहीं चाहते थे. क्षेत्र में दंगे फैल गए और आगजनी होने लगी लेकिन ढकस् की ओर से एक ही दलील थी कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता होनी चाहिए. यही बात भारत के मामले में कही जा रही है कि इन्क्रिप्शन हम नहीं हटा सकते हैं यानी दो लोगों के बीच हुई बात उन्हीं दो लोगों तक रहेगी चाहे वे देश के खिलाफ साजिश ही क्यों न कर रहे हों वहीं सरकार का कहना है कि ऐसा कंटेंट जो वैमनस्य फैला सकता हो, फेक न्यूज की श्रेणी में आता हो या संवेदनशील हो, उसे तो डीकोड करना ही होगा. इन सारी बातों के साथ अब एप्पल को भी जोड़ लीजिए जो भले सोशल मीडिया वाला एंपायर न हो लेकिन दुनिया की सबसे महंगी कंपनी है और उसने भी प्राइवेसी के नाम पर ऐसा ही पेंच डाला हुआ है. केजरीवाल ने अपने मोबाइल का पासवर्ड बताने से इंकार कर दिया और एप्पल ने जवाब दे दिया कि हम प्राइवेसी भंग नहीं कर सकते, ऐसे में जांच एजेंसियों का काम दुष्कर होता जा रहा है. यह उस मामले की बात है जिसमें एक मुख्यमंत्री एक अपराध में शामिल साबित है या नहीं, इस बात का फैसला हो सकता है. इससे पहले भी देश विरोधी काम करने वाले ऐसे एप और सोशल मीडिया का सहारा लेते रहे हैं जो बुरी से बुरी स्थिति में भी उनका प्राइवेसी की दुहाई देकर बचाव कर सकें. अब यही बचता है कि चुनी हुई सरकारें इन बेताज बादशाहों के सामने गिड़गिड़ाएं कि मालिक हमारे देश की सुरक्षा के मामलों में तो साथ दे दीजिए. तब मस्क, जुकरबर्ग या टिम कुक शाही अंदाज में अपने फैसले दें, जो सरकार के हक में या खिलाफ कुछ भी हो सकता है.