April 19, 2025
कविताएं

सहबा जाफ़री की कविता : फूल खिलते हैं…

-सहबा जाफ़री की कविता : फूल खिलते हैं…

जब उड़ती हैं बेटियां तितलियों सी

बहती हैं नदियों सी

और उड़ा देती हैं पानी के छीटे

शराराती झरनों सी

फूल खिलते हैं

जब गूँजती हैं बेटियां

हवाओं में सरगम सी

फिज़ाओं में मद्धम सी

बारिशों में रिमझिम सी

आँगनो में छम छम सी

फूल खिलते हैं जब

खुलती हैं बेटियां

सुबहों में शंख सी

उड़ानों में पँख सी

फागुन में रंग सी

बारिशों में अंग सी

फूल खिलते हैं कि

जब नहीं होती जंजीरें

बेटियों के इर्दगिर्द

बजते हैं मंजीरे

बेटियों के इर्दगिर्द

बहती हैं पुरवाई

बेटियों के इर्दगिर्द

गूँजती हैं शहनाई

बेटियों के इर्दगिर्द

फूल खिलते हैं

जब बढ़ती हैं बेटियां

जंगल के बन्फशाँ सी

अरबीयों के रम्शां सी

माथे पर अफ़शां  सी

अम्बर में कहकशां सी

फूल खिलते हैं जब नहीं होती

खरीफ की फसलों  सी

बेटियों की कटाई

बागड़ की बल्लर सी

बेटियों की छंटाई

ड्रॉइंग रूम के गमले सी

बेटियों की बोन्साई

पीटने पर बेटों को

बेटियों की पिटाई

फूल खिलने दें  कि यही होंगी

बिगड़ गए ज़माने में उम्मीद का साज़ 

आखिरी  वक़्त का मीठा सा अलफ़ाज़

माँ के बाद लोरी की आवाज़ 

बिस्तरे मर्ग पर कलमे का एहसास

इसीलिये ए अज़ीम इंसानो! 

आज की बेटियों को उड़ने दो

वक़्त के बाज़ से भी लड़ने दो

चांदनी भेड़िये की जंग में

नारा ए इंक़लाब पड़ने दो

कि बेटियों के लहू के छीटें

जब कभी भी ज़मी पे पड़ते हैं

फूल खिलते हैं …