June 21, 2025
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5 June World Environment Day पर्यावरण दिवस विशेष ….

– स्मृति आदित्य

5 जून 2025 पर पर्यावरण दिवस की शुभकामनाएं देते हुए जाने क्यों शब्द कांप रहे हैं, मन की नाजुक भावनाएं थरथरा रही हैं.

किसे दें शुभकामनाएं और कैसे दें. पिछले दिनों कई शहरों में विकास के नाम पर बरसों से अटल खड़े पेड़ों की निर्मम हत्या देख रहे हैं.

पेड़ों की ‘लाश’ पड़ी रही लहूलुहान और हम उसे देखते अपनी राह गुजरते रहे. ना याद आई हमें उसकी ठंडी कोमल छांव, ना आंखों को सुहाते रंगीन फूल. हम कितने कृतघ्न और कपटी होते जा रहे हैं.

हमें अंदाजा तक नहीं है कि प्रकृति का पोषण नहीं मिला तो कितनी त्राहि-त्राहि मच जाएगी.

कभी एक तरफ फूटी पाइप लाइन, उससे व्यर्थ बहता पानी देखा और दूसरी तरफ देखा टैंकरों पर पानी के लिए खून का बहना. कुएँ की अतल गहराई में उतर कर पानी को उलीचना देखा… एक तरफ देखे ‘स्मृति-वनों’ पर वृक्षारोपण के ‘हसीन’ दृश्य और दूसरी तरफ कुम्हलाते मुरझाते सूखते नन्हे पौधे.

एक तरफ बड़े-बड़े मॉल्स, शॉपिंग काम्प्लेक्स, दूसरी तरफ कोई कराहता हुआ निष्प्राण सा बुजुर्ग पेड़.

कहीं सुनाई दी कोयल की मीठी तान तो कहीं तरसती रही आंखें नन्ही गौरैया के लिए. कहीं कुनो में शेर के आगमन का जश्न छपा अखबारों में तो कहीं चिड़ियाघर में हाथी छटपटाता रहा जंजीरों में.

कहीं किसी गली के कुत्ते को बचाने और भगाने पर बहस चल पड़ी तो कहीं पोलिथीन खाकर तड़पती गाय की सुध लेने वाला भी कोई ना मिला.

उफ़ कैसा पर्यावरण?

आप बताएं किसे दें बधाई! क्यों हम अपने कर्मों से प्रकृति को कुपित करते हैं?

क्यों‍ उसे आना पड़ता है आपको चेताने ‘सुनामी, नरगिस, साईक्लोन, कैटरीना, टाइफुन, हुदहुद, मोचा, बिपरजॉय, हरिकेन, विली विलीज या फालीन बनकर?

प्रकृति की अपार संपदा पर गर्व करने का हममें से किसी को हक नहीं है. अगर हम नहीं बचा पाते हैं अपने ही आसपास के कोमल ताजे हरियाले वातावरण को.

हम कब सम्हलेंगे पूछें अपने आप से. पर्यावरण दिवस पर बस यही एक गुजारिश है.

अब संकल्पों से नहीं ‘सौगंध’ से सुधरेगा पर्यावरण.

आपको भी एक पेड़, एक पंछी, एक बूंद जल बचाने की सौगंध है. बहुत बड़ी सौगंध है…. इन्हें बचा कर हम अपने आपको बचा रहे हैं… अपनी साँसे बचा रहे हैं अपनी पीढ़ी अपना भविष्य बचा रहे हैं…

सुनो साथी

पर्यावरण को बचाने से पहले अपने आपको बचाने की तुम्हें सौगंध है…..