Tennis में पुरुषों के मैच ज्यादा मजेदार होते हैं- एमेली मोरेस्मो
– मयंक मिश्रा
ग्रैंड स्लैम टूनमिंट्स में देर रात के मैच खास रहे हैं, क्योंकि यह प्राइम टाइम है. जब स्टेडियम भरा होता है और टीवी व्यूअरशिप भरपूर होती है. समय स्लॉट्स में उन मैचों को रखा जाता है, जिनमें सबसे ज्यादा दिलचस्पी हो, फिर चाहे वो खिलाड़ियों की लोकप्रियता की वजह से हो या उनके बीच होड़. इसके लिए मैच सेलेक्शन कमेटी है, जो तय करती है कि कौन-सा मुकाबला देर रात का बनेगा. जब तक सेरेना, मारिया शारापोवा और वीनस विलियम्स जैसी कोर्ट पर थीं, तब तक महिलाओं के मैच भी नाइट सेशन में होते रहे. हालिया समय में, खासकर फ्रेंच ओपन में, महिलाओं के मैच को प्राइम टाइम से लगभग बाहर ही कर दिया गया है. यही सवाल अब बहस में है. फ्रेंच ओपन की टूर्नामेंट डायरेक्टर एमेली मोरेस्मो खुद खिलाड़ी हैं. ऐसे में उम्मीद की जाती है कि महिला टेनिस को बढ़ावा देंगी. उनकी बातें मगर साथ देती दिखाई नहीं दे रही हैं, उनके बयान से साफ है कि ‘पुरुषों के मैच ज्यादा मजेदार होते हैं.’ हालांकि बाद में उन्होंने सफाई की कोशिश की, लेकिन तब तक बहस शुरू हो चुकी थी. मोरेस्मो ने कहा था कि चूंकि सबालेंका से उम्मीद है
महिला मैच दो सेट में भी खत्म हो सकते हैं, वहीं पुरुषों के मुकाबले कम से कम तीन सेट तक चलते हैं, तो टिकट के पैसे की ‘पूरी कीमत’ देने के लिए पुरुषों के मैच नाइट स्लॉट में रखना ठीक है. उनके इस तर्क में टेनिस को लंबाई से ही अच्छा मान लिया गया है, मगर इस सोच में महिला टेनिस गहराई होड़ को कम आंकने गलती भी है. सच्चाई यह भकि नाइट सेशन सिर्फ जेंडर बैलेंस से नहीं, बल्कि खिलाड़ी की ब्रांड वैल्यू से भी तय होते हैं. फेडरर, नडाल, जोकोविच, सेरेना, शारापोवा या ओसाका की बात करें तो ये खिलाड़ी ऐसे हैं, जिन्होंने खेल से बांधे रखा है. इनका कोर्ट पर होना खुद में इवेंट हो जाता आज अगर किसी महिला खिलाड़ी को नाइट स्लॉट नहीं मिल रहा, तो यह वजह हो सकती है कि महिला टेनिस में दबदबा कम हो गया है. वैसे देखा जाए तो प्राइम टाइम केवल लोकप्रियता नहीं है, यह जिम्मेदारी भी है खेल को लोगों तक पहुंचाने, नई पीढ़ी को, प्रेरित करने और उस मंच को जस्टिफाई करने की, जो लाखों नजर में होता है. इसलिए, चाहे खिलाड़ी पुरुष हो या महिला, अगर लगातार बेहतरीन खेल रहा है, तो उसे नाइट सेशन से रखना किसी के बस में नहीं होगा. सिर्फ एक मैच या टूर्नामेंट अच्छा खेलना ही काफी नहीं होता, लगा चमकना पड़ता है और जब चमक टिकाऊ हो जाती है, मंच अपने आप बड़ा हो जाता है