June 21, 2025
Blog

हमारा बजाज: दिल के करीब पापा का स्कूटर!

– अनन्या मिश्रा

-बचपन में पापा के बजाज स्कूटर पर सवारी करने का रोमांच ही अलग था।

सामने खड़े होकर, हैंडल के किनारों को ऐसे पकड़ते हुए हम सवारी करते जैसे हम ही स्कूटर चला रहे हों। कभी रियर व्यू मिरर में नज़र डालते, तो कभी टर्र-टर्र वाला हॉर्न बजाते।

भाई बड़ा हुआ, फिर हमारी स्कूटर पर बैठने की व्यवस्था बदल गई। वह आगे खड़ा होने लगा और मैं माँ और पापा के बीच पीछे बैठने लगी। हम चारों ने अनगिनत सवारियाँ की हैं – न सिर्फ़ इंदौर, बल्कि उज्जैन और देवास भी!

फिर एक समय आया जब मुख्य ड्राइवर सीट के साथ एक छोटी ड्राइविंग सीट जुड़ी होती थी। मेरा भाई उस पर बैठता था। और जब स्कूटर पार्क होता था तो वह हमें “घुम्मी करने” ले जाता।

गर्मियों की छुट्टियाँ तो इतनी ग़ज़ब होती थीं जब सभी कज़िन भाई-बहन एक साथ आते थे। और फिर, पार्क किए गए स्कूटर के रोमांच सबसे अच्छे होते थे, जब हम सभी 8 साल से कम उम्र के, बारी-बारी से सवारी करते, ड्राइव करते और कभी कश्मीर तो कभी कन्याकुमारी तक की यात्रा कर लेते – वो भी स्कूटर पर!

जैसे-जैसे हम बड़े होते गए, नए वाहनों ने स्कूटर की जगह ले ली। पापा ने कार चलाना शुरू कर दिया, हमारे नए टू-व्हीलर आ गए, लेकिन स्कूटर वहीं पार्क रहा। फिर एक दिन, हमें उसे छोड़ना पड़ा। ऐसा लगा जैसे हम अपने परिवार का एक हिस्सा खो चुके हैं।

पिछले साल, हमने पापा को 90 के दशक का एक ऐसा ही स्कूटर उपहार में दिया। बजाज ही, फिर से! आज भी, अभी भी पार्किंग में खड़ा है, लेकिन इसे देखकर हर कोई मुस्कुराता है। और हम भी!

ये #PenSketch उसी रोमांच को और मीठी यादों को समर्पित।

चित्र एवं आलेख : अनन्या मिश्रा

चित्र एवं आलेख : अनन्या मिश्रा
Sr.Manager-Corporate Communications & Media Relations at IIM Indore