June 21, 2025
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देश जल रहा है,हम बांसुरी बजा रहे हैं…


सावधान!! रील्स-शॉर्ट फिल्म तबाही ला रहे हैं
-सोनाक्षी, दीपिका, बिग बॉस,वेज-नॉनवेज के अलावा भी दुनिया में झांक लीजिए

डॉ.छाया मंगल मिश्र (लेखिका जानी मानी शिक्षाविद हैं)

-तुर्की शासक बख्तियार खिलजी ने नालंदा विश्वविद्यालय में आग लगवा दी थी जिसके पुस्तकालय में इतनी पुस्तकें थीं कि पूरे तीन महीनों तक आग धधकती रही. आयुर्वेद विभाग के प्रमुख आचार्य राहुल श्रीभद्र के ज्ञान, काबिलियत और बुद्धिमत्ता से उसे जलन हुई और फल स्वरूप ज्ञान के भंडार को ही नष्ट कर दिया. नालंदा का अर्थ होता है “ज्ञान रुपी उपहार पर कोई प्रतिबन्ध न रखना.” उस समय खिलजी था आज ये फ्री के डेटा मोबाइल और उनके रील्स, शॉर्ट फिल्म, नंगे नाच के वीडियो हैं जो मानवीयता पर कब्ज़ा कर के इंसानियत पर कालिख पोत रहे.

सबको चिंता है सोनाक्षी की, सूटकेस, फ्रिज की. दीपिका के नकली असली बेबी बंप की. बिग बॉस के छ्परियों की. ऐसी अनेक मूढ़ता पूर्ण राष्ट्रीय समस्याओं का सामना कर रहे हैं हम. सभी को रील्स,वीडियो इन्फ़्लुएन्सर के मिलियन, बिलियन फ़ॉलोवर्स आकर्षित कर रहे.

जिस देश के संचार साधनों का अधिकांश हिस्सा बॉलिवुडियों से भरा रहता हो. देश के चुने हुए प्रधानों को अबे तुबे किया जा सकता हो. बड़े बूढ़े, छोटे जवान सभी टूट पड़े हों. एडल्ट एजुकेशन के मायने बदल गए हों. स्टैंडिंग माइक कॉमेडी ने इसकी जगह ले ली हो. सारा जगत इसमें स्वाहा होने को तत्पर हो तो ऐसे में यदि छोटे बच्चे आत्महत्या कर रहे हैं तो करने दो. (!)

बंद कमरे में मोबाइल, गेम, टास्क कर रहे तो क्या? उनके मन की उथल-पुथल से अपने को क्या? हमने ठेका थोड़ी लिया है?

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शिक्षा जगत के हाहाकार में युवाओं के भविष्य की चढ़ती बलि से किसी को क्या लेने देना? हो जाए परचा लीक तो हो जाए अपनी बला से. साल बिगड़ जाए तो बिगड़े. नामुराद हैं बेचारे फिर से पढेंगे. विश्वविद्यालयों की दुर्दशा से किसी को कोई लेना देना नहीं. चिकित्सा जगत की लूटमार, देश में फैले भ्रष्टाचार, पैर फैलता व्यभिचार किसी को नजर ही नहीं आ रहा. बस पाकिस्तान, क्रिकेट, अयोध्या से आगे देश वासियों को और कुछ नजर ही नहीं आ रहा. ये कैसी माया है सोशल मीडिया की भाई कि बुद्धि तक हर गई सभी की.

लगातार छोटे छोटे रील्स देखने से, चैनल्स पर चलते वीडियो से कितना मानसिक दिमागी नुकसान हो रहा है कोई जानता नहीं. धैर्य और स्थिर मति से नाता खत्म हो रहा है. समझदारी आती नहीं. व्यवहारिकता से मुंह मोड़ के बैठे हैं. अधूरी, गलत जानकारियां भी हो सकती हैं. फैक्ट कौन चैक करे? फुर्सत ही कहां? ट्रेंडिंग चीजें न छूट जाए कहीं का जूनून ऐसा सर पर सवार रहता है कि जैसे इन्हें ऑक्सीजन मिलना बंद हो जाएगी.

दिनरात मेहनत से पढने लिखने वाले बच्चों के जीवन से खुले आम खिलवाड़ हो रहा है उसकी किसी को फिक्र नहीं. परीक्षाएं निरस्त हो रहीं, चिंता किसी को नहीं. फ्री के डेटा पर इतने लटूम पड़े हैं कि बेरोजगारी की सूझना पड़ना बंद हो गई. इनसे उत्पन्न मानसिक अस्थिरता के कारण जन्मते अपराधों से किसी को कोई मतलब ही नहीं. ये सभी के मस्तिष्क में अपने कीटाणु छोड़ चुका है. इन्सान नाम के जीव इसकी चपेट में आ कर होशोहवास खो चुका है. सभी को दूसरों की पड़ी है.

अरे अपने घरों में देखें अँधेरा तो नहीं पैर पसर रहा? कोई खिलजी आपके वहां भी तो नहीं मोबाइल में छुपा बैठा. वरना नालन्दा की आग की तरह आपके जीवन में भी ऐसी आग लगेगी कि उसमें पीढियां राख हो जायेंगी. सावधान रहें सतर्क रहें…गलत के विरोध में आवाज बुलंद करें.