June 25, 2025
देश दुनिया

Court, Contempt और फैसलों पर सवाल

उपराष्ट्रपति, निशिकांत दुबे पर ही रुक जाएगा एससी पर बयानों का सिलसिला?

जिन्हें लग रहा है कि निशिकांत दुबे सु्प्रीम कोर्ट पर टिप्पणी कर बुरी तरह फंस चुके हैं उन्हें इस बात से बूस्टर डोज भी मिल रहा है कि एक वकील ने उन पर अवमानना की कार्रवाई करने की अनुमति भी मांग ली है लेकिन क्या मसला इतना सीधा है? दुबे सांसद हैं, लंबी राजनीतिक पारी खेलते हुए यहां तक पहुंचे हैं और बहुत अच्छे से जानते हैं कि वे क्या कह या क्या कर रहे हैं. फिर अकेले वो तो हैं नहीं, उनके साथ दिनेश शर्मा ने भी यही बात कही और उनसे कुछ ही दिन पहले देयश के उप राष्ट्रपति के साथ लंबे समय तक अपना समय सु्प्रीमकोर्ट में ही गुजार चुके जगदीप धनखड़ भी ठीक वही बात कह चुके हैं जो निशिकांत दुबे ने कही. ऐसे में यह मान लेना कि दुबे या शर्मा ने अचानक उठ कर बात यूं ही बोल दी, समझ से परे है. जिस तेजी से भाजपा अध्यक्ष ने इस बयान से किनारा किया उससे भी यही लगता है कि स्क्रिप्ट में ऐसा ही था.

इसमें यह बात भी जोड़ लीजिए कि इंदिरा गांधी का वह वीडियो सामने आने में भी देर नहीं लगी जिसमें वो प्रधान न्यायाधीश को लेकर वैसी ही बात कह रही हैं जो निशिकांत दुबे ने कही है. हो सकता है कि कोर्ट दुबे पर अवमानना मामले की अनुमति दे दे और बात आगे बढ़े लेकिन यदि ऐसा हुआ तो नुकसान किसका होना है? जाहिर सी बात है दुबेजी अपने तर्क रखेंगे और तर्क रखने के लिए उनके पास जो फोरम होगा वह खुद कोर्ट का होगा. तीन चार मुद्दे तो वे अपने इंटरव्यू में ही गिना चुके हैं लेकिन जब कटघरे में खड़े होकर उन्हें सुनाने का मौका मिलेगा तो वो जले हुए नोटों के बोरे और शाहबानो तक ही सीमित रहेंगे ऐसा तो संभव नहीं है. राम जन्मभूमि के सबूत मांगने और वक्फ मस्जिदों के ‘कागज कहां से लाएंगे’ वाली बात भी सोशल मीडिया ने लपक ही ली है. बहरी सरकारों को सुनाने के लिए यदि भगत सिंह ने बम फोड़कर अदालत में अपना पक्ष रखने का रास्ता चुना था और इस मामले में दुबे के तेवर वही लग रहे हैं कि अपना पक्ष रखने का मौका तो मिले और वह भी उन्हीं मी लॉर्ड के सामने. यहां एक और बात पर थ्रोउ़ा सोचने की जरुरत है कि अभ्सी तो सिर्लफ एक दो या तीन सांसदों ने इस पर बात छेड़ी है और तर्क दिए हैं लेकिन जितने सांसद अभी सत्तारुढ़ गठबंधन में हैं, यदि उन सभी ने सवाल उठाने शुरु कर दिए तो कितनों पर अवमानना का केस चलेगा और फिर यह सत्तारुढ़ पार्टी की ही बात नहीं है. कई ऐसे फैसले हैं जिनके खिलाफ विपक्ष के पास भी अपने तर्क हैं और वे भी अपनी बात तो रख ही सकते हैं. पिछले दिनों एक के बाद एक आए बयानों या घटनाओं को आप संयोग मान रहे है तो इन्हें इसे प्रयोग मान कर देखिए. यह समझने की कोशिश कीजिए की वक्फ के कानून बनने और उस पर ताबड़तोड़ सोच के लिए अर्जी मंजूर कर लेने से लेकर इन बयानों के बीच फासला इतना ही क्यों है. वक्फ मामले पर संसद में जो कुछ कहा गया उसमें निशिकांत दुबे का भाषण भी खास था क्योंकि उन्होंने जोरदार तरीके से इस मुद्दे पर कई तर्क रखे थे. जाहिर है उनके पास तथ्यों का जखीरा है और मौका मिला तो वो इन्हें कोर्ट रुम में रखने से चूकने वाले तो नहीं हैं. राष्ट्रपति को जिस तरह समयसीमा में बांधने वाला आदेश सुप्रीम कोर्ट से आया है उसने जो सवाल खड़े किए हैं, उसी की अगली कड़ी में अगला एपीसोड तैयार हो रहा है. यह भी तय है कि एक ही मुद्दे पर अलग अलग तरह का रुख रखने और एक ही कानून की अलग अलग समय में बिलकुल विपरीत विवेचना के भी मामले सामने रखे जाएंगे. कई सारी बातों के चलते लग तो यही रहा है कि निशिकांत दुबे ने हवा में तलवार नहीं चला दी है लेकिन यदि वाकई उन्होंने मोदी या शाह की मर्जी के बिना यानी नड्‌डा की अस्वीकृति के बावजूद उन्होंने बयान दे दिए हैं तो जरुर दुबे दिक्कत में होंगे. इस सबके बीच कैलाश विजयवर्गीय ने एक ही वाक्य से कई बातें बता दी हैं. उन्होंने कहा है कि ‘कई बार सत्य नहीं कहना चाहिए’ कमोबेश यही रुख पूरी पार्टी रखने वाली है कि सच तो वही है जो दुबेजी ने कहा है लेकिन बस हम बोल नहीं रहे हैं.