IAS और एडमिनिस्ट्रेशन की फर्जी एबीसीडी
–आदित्य पांडे
इक जरा सी बात पर …
बात निकल जाए तो पता नहीं कितनी दूर तक चली जाएगी. देखिए न, एक ट्रेनी आईएएस ने सीनियर आईएएस से व्यवहार करने में जरा सी गड़बड़ की और वह सिलसिला दुनिया के सामने आ गया जिससे लाखों छात्र, करोड़ों की जनसंख्या और हमारा सिस्टम या तो अनजान था या अनजान बने रहने का नाटक किया करता था. पूजा खेड़कर यदि उद्दंड न होतीं और गाड़ी पर बीकन या आईएएस जैसे केबिन की डिमांड बदतमीजी के साथ नहीं करतीं तो न सिर्फ ताउम्र आईएएस की तरह बढ़िया निकल जाती बल्कि बाद में भी बड़ी बड़ी कंपनियां अपने डायरेक्टर्स में शामिल करने को बेताब रहतीं. पूजा को पप्पा ने यह तो सिखा दिया कि आईएएस की एक ठसक होती है वह बनी रहनी चाहिए लेकिन शायद यह बताना भूल गए कि यह ठसक किसी सीनियर या मंत्रीजी वगैरह के सामने झाड़ने की कोशिश न करें. इसे यूं समझिए कि एक आईएएस को दुनिया भर की बातें सिखाई समझाई जाती हैं लेकिन पूजा मैडम ने इतनी सी बात भ्ज्ञी नहीं समझी कि यदि इतने घपले घोटाले करते हुए यदि आप यूपीएससी जैसे सिस्टम को धोखा देकर यहां तक पहुंची हैं तो यह डदर हमेशा बना रहना चाहिए कि यदि एक गड़बड़ पकड़ी जाएगी तो आपकी तो सारी जांच हो ही जाएगी न जाने कितने अगले और पिछले भी मुफ्त में पकड़े जाएंगे.
सिस्टम और हम भारतीयों को तो पूजा का धन्यवाद कहना चाहिए कि उसने हमें एक ही साथ इतने सारे लूपहोल्स उस यूपीएससी में बता दिए जिसे हम फूलप्रूफ समझते रहे. हम जब एक ही परिवार के चार छह सदस्यों को आईएएस बने देखते थे तो लगता था कि पूरा परिवार ही बहुत ज्यादा टेलेंटेड है लेकिन अब ऐसा सोचने के बजाए पहले शंका की जाती है कि कहीं यह मामला सेटिंग का ही तो नहीं है. तुलसी बाबा ने लिखा है ‘बिनु पग चले सुनहि बिनु काना’ और वही सब आप दिव्यांग श्रेणी में आए उम्मीदवारों को करते देखते हैं. जिसे डॉकटरों ने दृष्टिबाधित बता रखा है वह सामान्य जिंदगी में अच्छी खासी नजरों का मालिक पाया जाता है. लगभग हर दिव्यांग दृष्टि का यही हाल है. ऐसे ही जिसे दुनिया बड़े बंगलों और महंगी गाड़ियों की वजह से पहचानती है वह प्रमाणपत्रों में इतना गरीब है कि जैसे बेचारे के पास खाने को दो रोटी भी नहीं हों. पूजा के मां बाप मिलकर लूट कंपनी चलाते थे, पिता ने जितनी मेहनत झूठे सर्टिफिकेट्स से बेटी को आइर्एएस बनवाने में की उतने में शायद बेटी मेहनत से भी आईएएस पा जाती लेकिन जाती नहीं है जालिम मुंह से लगी हुई. जिसे हर कहीं घपले सूझते हों उससे यह भोली उम्मीद करना ही बेकार है. वह पहले झूठे सर्टिफिकेट बनवाएगा, फिर हर स्तर पर सेटिंग करेगा, बेटी आईएएस में चयनित हो जाए इसलिए खुद को डिवोर्सी बता देगा और जब ट्रेनिंग के लिए बिटिया जाएगी तो ट्रेनिंग सेंटर के अफसरों को पटाएगा ताकि वे लड़की को वैसा ही मान लें जैसा सर्टिफिकेट बताए बजाए इसके कि वह सामान्य ज्ञान लगा लें कि दिव्यांग प्रमाणपत्र तो झूठा बनवाया गया है.
यह खेल न जाने कब से चला आ रहा है और अभी कुछ दिन की सख्ती के बाद फिर न जाने कब तक यूं ही चलता रहेगा. चयन करने वाले आईएएस, घपले में मदद करने वाले आईएएस, यूपीएससी में बेठे अफसर आईएएस और मंत्रालयों में काम संभालने वाले आईएएस, जो रिपेार्ट बनाएगा वो आईएएस और जिसके पास रिपोर्ट जानी है वो भी आईएएस. कोई किसी का सीनियर तो कोई जूनियर, किसी ने कहीं मदद की थी तो कोई किसी का मददगार था. जिसे आप अदालतों का कॉलेजियम सिस्टम कहते हैं वह प्रशासनिक सेवाओं में थोड़ा अलग तरह से काम करता है. बाहरी कोई आ ही जाए तो कॉलेजियम सिस्टम वाले उसे निपटा डालें और यदि कोई ‘अपना’ वाला हो तो उसे बचाने किससी हद तक चले जाएं. पूजा मामला भी इसलिए उछला क्योंकि बदतमीजी सीनियर आईएएस से की गई थी और शिकायत आईएएस ने ट्रेनी की कर दी थी वरना ऐसी खबरें आपके सामने आ ही नहीं पातीं. आप अपने बच्चे के पीछे पड़े रहते हें कि पढ़ो, और पढ़ो…बच्चों को दिल्ली के मुखर्जीनगर जैसे इलाकों में रखकर महंगी कोचिंग में मोटी फीस भर कर मानते हैं कि बस एक बार आईएएस बन गया या बन गई तो जीवन सुधर जाएगा लेकिन आपको पता ही नहीं होता कि किन बड़े अफसरों की कौन सी सेटिंग आपके बच्चे का भविष्य खा रही है. आपके बच्चे को पहले प्रिलिम्स और फिर मेन्स में ही पास होना पर्याप्त नहीं होता, उसे कभी कभी तो इंटरव्यू में सिर्फ पोश्चर सही न होने की वजह से रिजेक्ट कर दिया जाता है तो कभी सेल्फ अटेस्टेशन में जरा सी चूक पर बाहर कर दिश्या जाता है और इन्हें बाहर करने की वजह यह होती है कि किसी को अंधों की तरह नियुक्ति देने के सोदे हो चुके होते हैं. आपको लगता है कि पूजा के महाराष्ट्र में बने प्रमाण पत्रों से लेकर एम्स तक के सफर मं गड़बड़ियां सामने आई ही नहीं होंगी? आपको लगता है कि मां और बाप को डिवोर्सी बताने वाली पूजा के मां बाप की संयुक्त लूट की कहानी किसी को नहीं पता रही होगी?आपको लगता है कि दिव्यांग कोटे से आई पूजा को सामान्य देखकर भी आपत्ति न जताने वाले निर्दोश हैं? आपको लगता है कि इतने झूठ, इतने स्तरी पर झूठ और पूरे परिवार के झूठ से यूपीएससी जैसी माइक्रो लेवल की जांच करवाने वाली एजेंसी से चूक की वजह से छूट गए? ऐसे हजार सवाल हैं जिनके जवाब जाहिर हैं और यदि आप फिर भी मानते हें कि ऐसे झूठे सर्टिफिकेट, बिलो पॉवर्टी लाइन होने दावे जैसे झूठ पर यूपीएससी से गलती हो गई है तो यह आपकी गलती है.
एक मित्र के शहर में घर होने के बाद भी अलग कमरा लेकर पढ़ाई करता रहा कि डिस्टर्ब न हो, मेहनत इतनी कि उसे दिन रात तो छोड़िए कितने दिन गुजर गए इसका भी भान नहीं होता था क्योंकि कमरे में घड़ी या कैलेंडर तक उसने नहीं रखा था, सिर्फ किताबें और किचन में कामचलाऊ पेट में डालने की सामग्री. प्रिलिम्यस और मेन्स ‘फ्लाइंग मार्क्स’ से निकाल कर भी इंटरव्यू में बोर्ड के बेतुके व्यवहार की वजह से बाहर हो गया, अब खेती करता है और खेती की जमीन भी सिफ्र उतनी ही जितने वह क्रीमी लेयर में गिना जाए. जरुरी नहीं कि पूजा खेड़कर के लिए ही उसे रिजेक्ट किया गया हो क्योंकि न जाने कौन सी ‘पूजा’ के फेर में वह बाहर कर दिया गया.