June 22, 2025
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Environment पौधे लगाने के साथ मौजूदा प्रकृति को भी बचाइये

साल की शुरुआत में चेतावनी थी कि यह सबसे गर्म साल होगा. इसमें सागर की ऊपरी सतह को उबालने वाले ‘अल नीनो’ या उसके नीचे की ठंडी लहरों को सहेजने वाली ‘ला नीना’ का क्या भूमिका हैयह समझने की कोशिशें जारी हैं. मौसम का यूं बदलना हम पर कितना असर डालेगा यह अभी साफ नहीं है. बारिश आ जाए तो हम गर्मी के मुद्दे को भूल जाएंगे. पूरी पृथ्वी के जीवों का संकट बने इस मुद्दे के लिए सीधे-सादे आम व्यक्ति इस सबके लिए खुद को ही दोषी मानते हुए हर नागरिक एक पेड़ लगाने निकल पड़ता है. पेड़ पौधे लगाना अच्छी बात है लेकिन यह पर्यावरण के मुद्दे का एकमात्र हल नहीं है. जंगलों को काटकर पौधे लगाना क्या है?
‘खाद्य एवं कृषि संगठन’ (एफएओ) के मुताबिक़ वर्ष 2015 से 20 के बीच भारत में प्रति वर्ष 6 लाख 68 हजार हेक्टेयर वनों का विनाश किया गया. यह दुनिया में दूसरे नम्बर का वन-विनाश था. लगभग इसी दौर में 4 लाख 14 हजार हेक्टेयर ऐसे प्राकृतिक वनों, जो बारिश के लिए जलवायु तैयार करते थे, को रौंद दिया गया. इन्हें अब कभी दोबारा उगाया नहीं जा सकता. इनके अलावा पिछले दो दशकों में 2 करोड़ 33 लाख हेक्टेयर वृक्ष-आच्छादित क्षेत्र उजाड़ दिए गए. इनमें लगे सभी पेड़ उखाड़ दिए गए. यह भारत की कुल वृक्षआच्छादित भूमि का 18 फीसदी होता है. एक और रिपोर्ट के हिसाब से पिछले तीस वर्षों में कोई 14 हजार वर्गकिलोमीटर वनों को माइनिंग, बिजली और डिफेन्स की परियोजनाओं के लिए लिया गया है.
अब तक भले दिखावे की कागजी शर्तें, कुछ बाध्यताएं हुआ करती थीं लेकिन अब वो भी ढीली होते होते खत्म हो रही हैं.

बड़े-बड़े और कई बार अनुपयोगी हाईवे, सुपर एक्सप्रेस हाईवे, एक्स्ट्रा सुपर एक्सप्रेस हाईवे के नाम पर किये गए विनाश को विकास बताया गया. जल-जंगल जमीन से जुड़े सारे क़ानून ताक पर रखकर कार्पोरेट्स को वन-भूमियाँ थमा दी गयीं. नतीजे में
जंगल नेस्तनाबूद हो गए, नदियाँ सूख गईं, धरती खोद दी गई, सिर्फ आदिवासियों और परम्परागत वनवासियों को ही नहीं पशुपक्षियों को भी उनके घरों से बेदखल कर दिया गया, पारिस्थितिकी (इकोलॉजी) मटियामेट कर दी गई. बर्बादी कितनी भयावह है इसे देखने के लिए देश के किसी भी हिस्से में देख लीजिए आपको यही इबारतें मिल जाएंगी.