स्मृति शेष: ‘एक धागा सुखाचा’ लेकर ‘बकुल फिर आना’
आत्या मालती जोशी को सादर…
राजश्री दिघे
कोई प्रसंग मस्तिष्क में अपनी छाप छोड़ जाता है… और फिर कभी उससे मिलता प्रसंग पहले प्रसंग की याद और कड़ी दोनों के लिए छोर जोड़ने का काम करता है और कहानी अपना रूप ले लेती है… ये कहना आसान है लेकिन इस तरह से प्रसंगों से मिली कहानियां और कथाएं अद्भुत रूप लेती हैं… ये चमत्कारी लेखन केवल वो कर सकते हैं जिनकी लेखनी पर स्वयं माँ सरस्वती विराजमान होती हैं और वो भी बड़े ही सात्विक भाव से… आदरणीय पद्मश्री मालती जोशी जी, उनके लेखन की बात करने का मेरा कोई सामर्थ्य नहीं. हाँ, उन्हें याद करते रहना अनवरत रहेगा. उनका साहित्यिक वर्णन मैं क्या ही कर पाऊँगी किन्तु उनकी उपस्थिति का अलग तेजोवलय और भावलय जरूर याद करेंगे. मैं उन भाग्यशाली व्यक्तियों की सूची का हिस्सा हूँ जो उनका परिवार है. पारिवारिक प्रसंगों पर उनका साथ और उनकी चुटकियां लेकर किस्से कहने को आजीवन याद करुँगी. अपने पिताजी से आज भी उनके बचपन के सयुंक्त परिवार के किस्से सुनते हैं जहां माई(मालती जोशी जी), दादा, बाबा, जयंता, चंदू, बबड़ी के साथ का लड़कपन आज भी उतना ही नवीन लगता है…
गहरी बात लेकिन अंदाज हलका-फुलका
उनकी कहानी के किरदार की तरह सलीके से साड़ी पहनी हल्की नीली मेल खाती चूड़ियां …. वाकई, उनकी सुन्दर साड़ियां और मेल खाती कांच की चूड़ियाँ मेरे लिए हमेशा आकर्षण रही. अपनी बात और चुटकी फिर हसीं हंसी में धीरे से कह जाना कोई गहरी बात.
आत्या आप चरित्रों के नाम इतने अलग अलग कैसे चुनती हैं वो चुटकी वाली हसीं में कह जाती परिवार के बाहर के नाम चुनो फिर कोई दिक्कत नहीं. बाबा (पिताजी) के लिए उनकी नयी पुस्तक भेंट स्वरुप आना नियम है. ऐसी ही एक नयी पुस्तक ‘एक धागा सुखाचा’ मैंने एक ही बैठक में पढ़कर उन्हें फ़ोन करके बताया था. ओह तो तुमने किताब एक ही बार में पूरी खा ली कह कर मेरी ही चुटकी ले ली. आपकी कहानियां छपती थी तो आप बहुत खुश होती होंगी न….न छपने पर शुरुआती दौर में मैं नाराज भी रहती थी खुद ही से….मेरी कहानियां अस्वीकार भी होती थी बेटा….कितनी सहजता….मेरा उर्मिला पर लिखा एक आलेख उन तक पहुंचा तो मैथिलीशरण गुप्त जी के आशीर्वचन भी पहुंच गए. हमारे सुपुत्र ने उनसे हिंदी में फ़ोन पर अभिवादन किया तो उनका बाल साहित्य हम तक पहुंच गया. वो बाल साहित्य हमारे लिए अमूल्य निधि से कम नहीं. सरलता के साथ कह देती मुझ पर इतने शोध पत्र किये जाते हैं अर्थात हिंदी पढ़ी जाती हैं यही आनंद का विषय है.
काश, आप लौटें और हम फिर मिलें
हम ईश्वर का आभार व्यक्त करते हैं कि हमें बुआ का सामीप्य और स्नेह मिलता रहा. कभी उनकी साहित्यिक ऊंचाई ने परिवार के प्रति प्यार और कर्तव्य को नजरअंदाज नहीं किया. परिवार में सभी के पास उनसे जुड़ा यादों का भरा पूरा भंडार है. भावुकतावश और संकोचवश शब्दों की साम्राज्ञी के विषय में कुछ लिखना समझ और सामर्थ्य से परे है. आपके पद्मश्री प्राप्ति पर आपसे पूछ कर आप पर लेख लिखा था….आज आपसे पूछे बिना ही अपनी मित्र के आग्रह पर ये साहस…क्षमस्व आत्या…
आपकी अत्यंत भावुक कर उेने वाली कहानी… बकुल ! फिर आना…की तरह आप लौटें और हम फिर मिले कभी कहीं….तब तक अपना ध्यान रखियेगा…