June 22, 2025
तीज त्यौहार

Pitru Paksh सिर्फ कर्मकांड नहीं वैज्ञानिक सोच भी है

पितृपक्ष में नही कर पाए पितरों को याद तो सर्वपितृ मोक्ष पर जरुर करें

पितृ पक्ष अब समाप्ति की ओर है लेकिन इसका सबसे महत्वपूर्ण माना जाने वाला दिन यानी सर्वपितृ मोक्ष विसर्जनी अमावस्या आना बाकी है और इस दिन हम उन सभी पूर्वजों के निमित्त श्रद्धा से श्राद्ध अर्पित करते हैं जिनके लिए हम पूरे श्राद्ध पक्ष में तर्पण न दे सके या जिन्हें हम याद न कर सके. इस बार पितृ पक्ष 2 अक्टूबर को समाप्त होंगे. पूरा पितृ पक्ष पितरों को तर्पण, पिंडदान, श्राद्ध, ब्राह्मण भोज आदि के लिए होता है लेकिन इसका अंतिम दिन और भी विशेष माना जाता है. आइये सनातन धर्म के इस आयोजन के आधार भी जानने की कोशिश करें क्योंकि हमारे हर तीज त्यौहार या परंपरा के पीछे धार्मिक के साथ वैज्ञानिक आधार भी हैं. हमारी ज्ञान विज्ञान परंपरा स्थापित परंपरा और मानदंड, विज्ञान के सिद्धांतों को स्थापित करते हैं और उसके मानकों पर खरे भी उतरते हैं.

पितृपक्ष या पितरपख या श्राद्धपक्ष को16 दिन की अवधि में माना जाता है इसीलिए इसे पक्ष/ पख से जाना जाता है जो पखवाड़े का ही रुप है. जिसमें हिन्दू परंपरा से पितरों को श्रद्धापूर्वक स्मरण कर उनके लिये पिण्डदान किया जाता है. ‘सोलह श्राद्ध’, ‘महालय पक्ष’, ‘अपर पक्ष’ आदि नामों से भी इसे पुकारा जाता है. दरअसल भारी वर्षा के कारण जो पशुपक्षी और अन्य जीव अपने स्थान से बाहर नही जाते वे भाद्रपद के पितृ पक्ष में आसमान से बादल हटने पर आए सूर्य किरणों के स्वागत में बाहर आते है. हमारी अन्न दान की प्राचीन परंपरा के अनुरुप ही इन जीव-जंतुओं के लिए हमारे पूर्वज अन्नदान करते थे. आज भी पितृपक्ष में अन्नदान का अत्यंत महत्व है. दरअसल यह ऋतु और यह काल जीव जंतु खासतौर पर पक्षियों का गर्भकाल रह है. उनके पेट में गर्भ के चलते उन्हें भी अच्छे भोजन की जरूरत होती है, इसीलिए पक्षियों को भोजन की बात का विशेष महत्व बताया गया है.

श्राद्ध पक्ष में जो पंच बलि निकाली जाती हैं उसमें एक भाग कौए का होता है. कौवों का भी गर्भ काल भी यही होता है. कौवों को विशेष स्थान की बात भी समझिए कि वट वृक्ष और पीपल के उगने में कौवों की विशेष भूमिका होती है. वो ही बरगद और पीपल के फल खाकर बीट के जरिए इन्हें विभिन्न जगहों पर फैलाते हैं जो बाद में विशाल बरगद और पीपल बनते हैं. प्रकृति को कौए के इस उपहार के बदले उन्हें धन्यवाद स्वरूप हम भोग तो अर्पित कर ही सकते हैं. कौए के नवजात शिशु भी आगे सृष्टि में ऐसे महत्वपूर्ण पेड़-पौधे फैलाते रहें यही उन्हें एक भाग देने का महत्व है. 15 दिनों का पितृपक्ष मनाने की वजह तो और रोचक है, दरअसल पितरों का संबंध चंद्रमा से है. चंद्रमा की पृथ्वी से दूरी 385000 किलोमीटर मानी जाती है. आश्विन मास में जिस समय पृथ्वी पर हम पितृपक्ष मना रहे होते हैं, उन पंद्रह दिनों तक चंद्रमा के पृथ्वी के सर्वाधिक निकट होने की बात विज्ञान भी स्वीकारता है, इस दौरान पृथ्वी व चंद्रमा की दूरी लगभग 381000 किलोमीटर ही मानी जाती है यानी सामान्य दूरी से कम. यह भी कहा जाता है कि पितर वायु रुप में इन दिनों हमारे इर्द गिर्द होते हैं और यह वह समय भी होता है जब हमें अपने खानपान पर विशेष ध्यान देना होता है. इन सारे तथ्यों को श्राद्ध के नियमों से जोड़कर देखें तो पाएंगे कि हर कदम के पीछे वैज्ञानिक सोच जोड़ी गई है.