केजरीवाल की यादों की रील…(भाग -2)
केजरीवाल के जीवन में यह फंडा बेहद कारगर रहा है कि जिन सीढ़ियों से ऊपर चढ़ो उन्हें सबसे पहले जला दो. यह कहते ही यदि आपके दिमाग में सबसे पहले अण्णा हजारे का चेहरा आता हो तो दिमाग को थोड़ा और पीछे जाने के लिए कहिए. जिस व्यक्ति का नाम संदीप दीक्षित है न, वह इनका अण्णा से कहीं ज्यादा पुराना साथी रहा है, जिनकी मम्मी यानी शीला दीक्षित पर ट्रक भर कर सबूत होने का दावा करते हुए केजरीवाल ने भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे. फिर जब केजरीवाल को लगा कि किसी पर भी कुछ भी आरोप जड़ कर भाग जाना और सीढ़ियों को जला कर आगे चढ़ जाने की कला उसने सिद्ध कर ली है तो उसने बड़ा दांव चला. अनशन, राजनीति में नहीं उतरूंगा की कसम, झाड़ू लेकर राजनीति में आने की जिद, कुमार विश्वास, मयंक गांधियों सहित सभी फाउंडर काे रास्ते से हटा देना, योगेंद्र यादव की पिटाई से लेकर कितने ही क्षण और कितने ही चेहरे आज जब केजरीवाल की यादों वाली रील से गुजर रहे होंगे तो उन्हें एक सबक जरुरर याद आ रहा होगा कि वक्त रहता नहीं कहीं टिक कर, इसकी फितरत भी आदमी सी है. भ्रष्टाचार मिटाने आए व्यक्ति के बारे में यदि कोर्ट ऐसी टिप्पणी करे जैसी आज आई हैं तो यकीन मानिए कोई भी गैरत वाला व्यक्ति न जाने कौन सा अति वाला कदम उठा ले लेकिन केजरीवाल उस मिट्टी का है ही नहीं. केजरीवाल वह है जो पांच रुपए बचाने के लिए टैक्सी में यात्रा का नाटक करता है लेकिन हकीकत में उसकी एक एक दीवार के लिए पर्दा न्यूनतम 3 लाख और कुछ महंगे पर्दे तो आठ आठ लाख के खरीदे जाते हैं.
केजरीवाल के बेटे की जिस ट्रेडमिल जो अपने ही घर में लगाकर लाखों का किराया वसूला जा रहा था, उयकी भी याद तो आती ही होगी न. यह वही व्यक्ति है जिसने एक नीली वैगन आर को भुनाया और अब उसके बेड़े की गाड़ियां फॉर्च्यूनर और इनोवा क्रिस्टा से नीचे की नहीं होतीं. यकीनन आज जब वकील ने कोर्ट की टिप्पणियां बताई होंगी और फिर संजय सिंह के भगवंत मान से झप्पी वाले फोटाे उनके सामने पड़े होंगे तो न जाने कौन सी कुमार विश्वास की कविता उन्हें साल रही होगी, न जाने किस शीला की आत्मा उनके आसपास मंडरा रही होगी, न जाने किस मनीष सिसोदिया की हाय उन्हें लग रही होगी कि कहां उपमुख्यमंत्री बनाकर साल भर से जेल में सउ़वाया और निकालने की कोशिश तक नहीं की.मयंक गांधी से लेकर एडमिरल रामदास तक के चेहरे उन्हें आक्रांत कर रहे होंगे और योगेंद्र यादव की जहर बुघ्झाी धीमी आवाज उन्हें काटते मच्छरों से ज्यादा चुभ रही होगी. जेल में ये छोटे छोटे ट्रेलर ही यदि केजरीवाल को हैरान किए हुए हैं तो उन्हें एक बार यह भी सोच लेना चाहिए कितब क्या होगा जब शहीद भगत सिंह ने सवाल पूछ लिया कि किस हैसियत से मेरे बराबर तस्वीर लगाने की हिम्मत हो गई? मेरे सामने एक पुराने अखबार की खबर है कि किसी कैदी ने पाजामे के नाड़े से फांसी लगाकर आत्म हत्या कर ली लेकिन यह भी तो तभी संभव है जब उस कैदी के पास कोई आत्मा मौजूद हो.