June 21, 2025
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AI का पत्रकाारिता पर बदलाव किस दिशा में

आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस पर आई रिपोर्ट ने कुछ शुरुआती संकेत ही दिए हैं

एआई अब पत्रकारिता को भी बदल रही है. जितने प्रयोग, चिंतन, बहस और चर्चा विकसित देशों में है, उतनी हमारे यहां अभी नहीं है. यह देखना दिलचस्प है यह नई तकनीककिस कदर प्रभाव डालने में सक्षम होती है. थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन’ ने एक रिपोर्ट जारी करते हुए बताया है कि ‘एआई’ का उपयोग कैसे हो रहा है, न्यूजरूम के सामने क्या चुनौतियाँ आ चुकी हैं या आने वाली हैं, पत्रकारों, न्यूजरूम लीडर्स, और कर्ता धर्ताओं के लिए इसके क्या निहितार्थ हैं? इस रिपोर्ट के मुख्य बिंदुओं में ‘एआई’ को अपनाने सर्वव्यापकता पर सवाल हैं क्योंकि कुछ देशों में जहां 81 प्रतिशत से ज्यादा पत्रकार ‘एआई’ टूल्स काम में ले रहे हैं वहीं कुछ देशों में इसका प्रभाव अभी शुरु ही हुआ है. 70 देशों के पत्रकारों से पूछे गए सवालों के जवाब में पाया गया कि विकसित देशों में से कुछ के पत्रकारों के लए इसका रोजाना का उपयोग पचास प्रतिशत का आंकड़ा छू रहा है. कंटेंट का प्रारूप बनाने से संपादन, ट्रांसक्रिप्शन, फैक्टचेक और रिसर्च के लिए इस तकनीक का उपयोग कर रहे हैं. ‘चैटजीपीटी,’ ‘ग्रामरली,’ ‘ओटर’ और ‘कैनवा’ इनकी आवचश्यकता में शामिल हैं.
औसत विकसाशील देश के पत्रकार मानते हैं कि सीमित पहुंच के अलावा उच्च लागत और प्रशिक्षण न होने के चलते वे एआई का उतना बेहतर इस्तेमााल नहीं कर पा रहे हैं जितना पश्चिम के उनके साथी कर पाते हैं. कम संसाधन वाले न्यूजरूम में ‘एआई’ को अपनाना चुनौतीपूर्ण है. मजेदार बात यह भी सामने आई है कि वे लोग जो ‘एआई’ उपयोग कर रहे हैं उन्होंने इसका प्रशिक्षण नहीं लिया है बल्कि खुद ही इसे सीखा है.
भारत में ‘एआई’ की गति, डाटा-विश्लेषण और दक्षता पत्रकारिता की पहुंच और ताकत को काफी बढ़ा सकते हैं, लेकिन शुरुआती दौर में तो इसका फेकन्यूज में ही उपयोग ज्यादा नजर आया है. मीडिया संगठनों, डेवलपर्स और निवेशकों के बीच साझेदारी से मीडिया से जुड़े एआई टूल कमाल कर सकते हैं यदि वे पत्रकारिता की सही दिशा से मिल सकें.