साइकिल दिवस के बहाने यादों के फूल
रीमा दीवान चड्ढा
– जगदलपुर में हमारा कॉलेज धरमपुरा में था.जो लगभग 8 कि.मी. दूर था.अपनी साइकिलों पर हम सब कॉलेज जाया करते थे .जब अनुपमा चौक वाले घर में थे तब भावना,सुषमा और उनकी सहेलियाँ सब मिलकर जातीं थी.आठ-दस युवा लड़कियों का झुण्ड जब सड़क से जाता तो रंग बिरंगे परिधानों में अलग ही छटा नज़र आती.
फिल्मी गीतों में लड़कियों के समूह साइकिलों में जाते नज़र आते थे जैसे,वैसा ही दृश्य दिखता था.फिर बहन विम्मी और उसके बाद मेरी बारी आई.मैं बचपन से ही ज़रा जुनूनी रही.लड़कों की आज़ादी और अपनी बंदिशों से थोड़ी खुंदक मन में थी .साइकिल चलाते हुए भी लड़कों से तेज़ चलाने की कोशिश रहती.
लंबे रास्तों में सुंदर बहनों और सखियों को छेड़ने वाले भी टकरा जाते कभी और मैं अपना बैडमिंटन का रैकेट लिए सबको धमकाती .एक-दो को तो पहले ही पीटने का अनुभव भी था.मेरे पीछे किसी को आने की हिम्मत न थी.आज साइकिल के वह कॉलेज के दिन और उनकी ये खट्टी-मीठी यादें फिर गुदगुदा गयीं.बाद में हम लूना से जाने लगे उसकी कहानी फिर कभी …..
साइकिल दिवस के बहाने यादों के फूल खिला रही हैं सृजनबिम्ब प्र्काशन की निदेशक रीमा दीवान चड्ढा…