April 19, 2025
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WOKE लोगों का अड्‌डा तो नहीं बन गया ओलिंपिक

-आदित्य पांडे

यह ओलिंपिक है या…
एथेंस, ग्रीस में जब ओलिंपिक खेलों की शुरुआत हुई थी तो शर्तिया यह खेलों से ज्यादा कुछ नहीं थे लेकिन कल फ्रांस में जिस तरह से ओलिंपिक की शुरुआत हुई है उसने यह सवाल तो सामने ला ही दिया है कि यह ओलिंपिक खेल हैं या वोक लोगों का अड्‌डा बन गया है. जरा सोशल मीडिया खोलें तो आपको बाकी ट्रेंडिंग के बीच वोकलिंपिक भी ट्रेंड करता नजर आएगा. ड्रैग क्वीन्स के हाथों में बैटन मशाल देने तक तो ठीक था लेकिन उद्घाटन में जो इनका शो कराया गया वह बेहूदा था और अब तक कराए जाने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों से ठीक उलट था. इन खेलों की मेजबानी मिली तभी से पेरिस न जाने कितने पड़ाव देख चुका था. फिर खेल शुरु होने वाला दिन आया तो उससे ठीक पहले ऑस्ट्रेलियाई लड़की से सामूहिक रेप की खबर ने सरकार को मुश्किल में डाल दिया लेकिन यह तो शुरुआत भर थी. यहां के शरणार्थियों ने मैचे शुरु होने और उद्घाटन वाला कार्यक्रम होने के बीच में जो हंगामा मचाया वह शब्दों से परे है.

ऐसा मानने वालों की कमी नहीं है कि ओलिंपिक कमेटी ने ईसा मसीह की इस त्सवीर से प्रेरित होकर ड्रैग क्वीन्स वाला सीक्वेंस तैयार कराया और यह ईसा का अपमान है…

उलझन तब भी हुई जब उसी नदी पर परेड और प्रतियोगिता करवाने की बात हुई जिस पर 100 साल से तैराकी प्रतिबंधित थी, इसे रोकने की कोशिश करने वाले परंपराओं में जकड़े लोग कहे जाने लगे और जिद करने वाले प्रगतिशील हो गए. पेरिस में मौजूद शरणार्थियों के अधिकारों की बात करने वाले वोक भी सक्रिय रहे और कहते रहे कि सरकार की जिम्मेदारी है कि वह इनके इंतजाम करे, यह बात तब सही होती जबकि वे वाकई शरणार्थी होते लेकिन जो लोग देश छीनने के इरादे से आए हों उनके साथ क्या व्यवहार होना चाहिए इस पर वोक चुप हैं. बसों में भरकर जब इन कथित शरणार्थियों को दूसरे शहरों में भेजा जाने लगा ताकि पेरिस की छवि थोड़ी तो ठीकठाक लगे तो फिर इन लोगों ने हंगामा किया और उद्घाटन वाले दिन तो जो तोड़फोड़ ट्रेनों में हुई है उसने सारे हिसाब ही गड़बड़ा दिए लेकिन अभी भीजिद नही बनी हुई है कि आंख बंदकर मान लीजिए खतरा टल जाएगा. इस बार कई कायदे तोड़े गए और यहां परेड स्टेडिया यानी स्टेडियम में न कराने की बात नहीं हो रही. परेड में सबसे आगे ग्रीस को रखा गया क्योंकि इसी देश से ओलिंपिक की शुरुआत मानी जाती है लेकिन दूसरे नंबर पर कौन सी टीम रखी गई?जीहां, ये थी शरणार्थियों की टीम. इसके बाद यानी तीसरे नंबर पर आया अफगानिस्तान का नंबर यानी तालिबान की सरकार ने जिन्हें चुन कर भेजा.इससे आगे भी बहुत कुछ था जो लोगों को पसंद नहीं आ रहा था लेकिन चूंकि ओलिंपिक कमेटी और उसके मेंबर्स सर्वेसर्वा होते हैं इसलिए उनके निर्णय अंतिम होते हैं वरना दो सौ से ज्यादा देशों वाली इस खेल प्रतियोगिता में ड्रैग क्वीन्स को शामिल कर जो प्रदर्शन कराया गया उससे कितने देश सहमत होते? कमेटी का तर्क है कि वे एलजीबीटी समुदाय को प्रतिनिधित्व दे रहे हैं लेकिन ओलिंपिक किसी समुदाय को प्रतिनिधित्व देने या न देने की जगह है ही नहीं वहां तो खेल हैं और खिलाड़ी हैं. ओलिंपिक कब से राजनीति, समुदाय, शरणार्थी और लिंगभेद जैसे मुद्दे का मंच हो गया. यदि खेल कमेटी इतना सोचने लगी है तो यह भी बताए कि फ्रांस में अभी चुनावी नतीजों में दक्षिणपंथी ली पेन जिस तरह जीतते जीतते हार गईं और उसके बाद जो हंगामा पेरिस की गलियों ने देखा क्या उसको नजरअंदाज किया जाना ठीक है? यदि ओलिंपिक का हर कदम कोई संदेश देता है तो कोई बताए ड्रैग क्वीन्स से नाच करवाने का क्या संदेश जाता है, शायद यह कि आप सिर्फ जेंडर (या नॉन जेंडर) के आधार पर यहां शामिल हो सकते हैं और इसमें आपकी किसी योग्यता की जरुरत नहीं होगी. फ्रांस में जिस तरह मजदूर ज्यादा कमाई के लिए अड़ गए, जिस तरह पेरिस के लोग शहर छोउ़कर दूसरी जगहों पर चले गए, जिस तरह हर पल यहां चोरी, लूट और डकैतियों की खबर आ रही हैं, जिस तरह यहां की व्यवस्थाएं कथित शरणार्थियों ने ठप कीं उसके बाद भी यदि आप शरणार्थियों की टीम को शाल कर या ट्रांसजेंडर्स से नाच करवाकर कोई संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं तो इसे क्या कहा जाए. वोक माइंड्स ने इन खेलों पर कब्जा कर लिया है और आप देखेंगे कि यह पूरा आयोजन इसी तरह के संदेशों से भरा रहने वाला है. फिलिस्तीन के झंडे लेकर चल रहीर टीम की तस्वीरें वायरल होने और इजराइल की टीम के उद्घोष के समय होने वाले हंगामे सिर्फ शुरुआत हैं.