Parliament: आगे आगे देखिए होता है क्या
लोकसभा चुनाव के दौरान इस बार जिस तरह से भाषा की मर्यादाएं भंग हुईं वह शुरुआत भर थी, गालिंब के शब्दों में कहें तो ‘इब्तिदा ए इश्क, रोता है क्या…आगे आगे दिखए होता है क्या… ‘ हो भी वही रहा है जिसकी शंका थी. पहले ही दिन से सांसदों ने जो मर्यादाएं तोड़ना शुरु की हैं उसका अंत कहीं नजर नहीं आता. इंडी सांसदों ने उसी पार्टी के कहने पर हाथ में संविधान की प्रतियां लहराने की शुरुआत की जिसने आपातकाल लगाया था और मजे की बात यह ठीक उसी दिन यानी 25 जून को हुआ. भाजपा क्यों पीछे रहती उसने प्रोटेम स्पीकर के लिए परंपरा छोड़कर के सुरेश से किनारा कर मेहताब को सांसदों की शपथ दिलाने के लिए चुना. गुस्साए इंडी गठबंधन ने ओम बिरला के सामने चुनाव जैसे हालात खड़े कर दिए और अब भी इंडी के कुछ सदस्य कह रहे हैं कि हमने वोटिंग का विकल्प चुना ही नहीं वहीं कुछ सांसद कह रहे हैं कि उनके प्रस्ताव को प्रोटेम स्पीकर ने सुना ही नहीं. अगली कशमकश डिप्टी स्पीकर के लिए है ये बातें तो पार्टियों और गठबंध्नों की थीं लेकिन इस बीच चुने हुए सांसद जिस तरह अमर्यादित व्यवहार करते नजर आए वह भी कम चिंताजनक नहीं है. राजस्थान के एक सांसद महोदय ने जिद कर ली कि दिल्ली की सड़कों के यातायात का कुछ भी हो हम तो ऊंट से ही संसद तक जाएंगे तो यहीं के दूसरे सांसद ट्रैक्टर से संसद पहुंचने पर अड़ गए और कुछ सांसदों ने तो ये सड़कछाप हरकतें सड़कों से उठाकर गरिमामयी संसद भवन के अंदर तक जारी रखीं. असदुद्दीन औवेसी को लगा कि यह सही मौका है जब वे मुस्लिमों के एक और इकलौते रहनुमा बनकर दुनिया के सामने खड़े हों तो उन्होंने देश की संसद में जय फिलिस्तीन के साथ नारा ए तकबीर भी लगा डाला. एक सांसद अपनी लिखी हुई शपथ छज्ञेड़कर बाला साहेब ठाकरे के नाम पर शपथ लेने लगे तो एक ने शपथ से पहले धारा 370 की बात उठाकर स्पीकर की डांट खाई. एनडीए के सांसदों ने भी कोइ्र कसर नहीं छोड़ी बेकाबू व्यवहार बतााने में, जय हिंदू राष्ट्र से लेकर जय हेडगेवार तक वे भी स्तर का प्रदर्शन करते रहे. एक तरफ से जयश्रीराम कहा गया तो दूसरी तरफ से अयोध्या से जीते सांसद की जय बोलते हुए उन्हें अयोध्याय का राजा कहे जाने के नारे लगाए गए.जो असंतुलत व्यवहार करते नजर आए उनमें जहीन समझी जाने वाली हरसिमरत कौर से लेकर ठेठ लट्ठ अंदाज वाले पप्पू यादव और शहीद चंद्रशेखर आजाद का नाम रखकर उसे लजाने वाले आजाद समाज पार्टी के मुखिया भी शामिल हैं. विपक्ष के नेता बने राहुल गांधी भी इसी सिंड्रोम का शिकार रहे हैं और आंख मारने से लेकर पीएम के गले तक पड़ जाने की अपनी हरकतों पर वे कुछ हद तक तो काबू करते दिखे लेकिन अध्यक्ष चुने जाने पर बिरला जी को जिस सीख या कहें चेतावनी वाले लहजे में उन्होंने बधाई दी उसे ठीक तो नहीं कहा जा सकता है. अभी तो सत्र शुरु हुआ है, अभी तो सिर्फ सदस्यों की शपथ हुई है, अभी तो सिर्फ राष्ट्रपति ने संयुक्त अधिवेशन में अभिभाषण ही किया है और इतनी मर्यादाएं टूटती दिख रही हैं. जाहिर है, ये शुरुआत भर है, इब्तिदा… यह सत्र ही नहीं पूरा कार्यकाल जो कुछ देखने जा रहा है वह अब तक के संसदीय इतिहास के स्तर का बना रहे इस बात की दुआ कीजिए क्योंकि हालात तो अच्छे नहीं लग रहे हैं और शुरुआत तो कतई अच्छी नहीं रही है…