June 21, 2025
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Nathu la और चांगू लेक के सफर पर ले चलते हैं आपको

यात्रा संस्मरणशुचि कर्णिक (लेखिका, स्वतंत्र पत्रकार)

पिछली किश्त में आपने पढ़ा– कैसे जीवन की तमाम प्रतिकूलताओं को पार करके हमने अपने ख़ूबसूरत सफ़र की शानदार शुरुआत की.

अब देखते हैं – मंजिल तक पहुंचते पहुंचते कितना कुछ खजाना प्रकृति ने हमारे लिए राहों में बिखेर रखा है.

वैसे सही पूछिए तो मंजिल से ज्यादा मज़ा तो सफर में होता है. ऐसी यात्राओं में हमें रास्ते के हर मोड़ पर एक नया अनुभव मिल जाता है. इसीलिए शायर कहते हैं धूप में निकलो घटाओं में नहा कर देखो जिंदगी क्या है किताबों को हटाकर देखो. गंगटोक में एमजी रोड पर लोगों का मेला- सा लगा था . यही सड़क आमतौर पर हर शहर की धड़कन होती है. इसीलिए यहां चहल-पहल थोड़ी ज्यादा होती है. स्थानीय भोजन के रूप में यहां मोमोज़ और नूडल्स प्रचुरता में मिलते हैं, वैसे आजकल सभी तरह का भोजन हर कहीं उपलब्ध हो जाता है. रोल्स और मोमोज़ ट्राई करके कुछ जरूरी सेल्फियां लेकर होटल के लिए निकलते ही बारिश शुरू हो गई. थोड़ा भीगते भीगते आखिर टैक्सी मिल ही गई. यहां मोल भाव करना ज़रूरी है वरना ठगे जाने की पूरी संभावना है.

रास्ते में कुछ स्थानों पर खड़ी चढ़ाई भी थी इसलिए उतरते वक्त ड्राइवर काफी सावधानी से गाड़ी चला रहा था. पहाड़ों में कभी भी अचानक से बारिश हो जाती है इसलिए वहां के ड्राइवर उन परिस्थितियों में भी कुशलता से ड्राइविंग करने के लिए ट्रेंड होते हैं. अगले दिन सुबह आराम से सो कर उठे. ख़ुद को वार्म-अप किया. हमें नाथुला (दर्रा) यानी भारत और चीन की सीमा पर जाना था. तिब्बत में ला यानी दर्रा.यहां एक बजे के बाद जाने की अनुमति नहीं है. चौदह हज़ार फीट की ऊंचाई पर स्थित इस दर्रे पर जाने से पता चलता है कि अपना स्टेमिना कितने गड्ढे में है. हांलांकि मोटरेबल रोड है तो पैदल ज़्यादा नहीं चलना पड़ता पर ऑक्सीजन घटने की संभावना होती है. पिछले सालों में दो मर्तबा कोरोना को झेलने के बाद स्टेमिना कम हो चुका था. हमारी गाड़ी जैसे-जैसे ऊपर चढ़ती जा रही थी तापमान घट रहा था, ठंड की सिहरन बढ़ रही थी पर हमारी हिम्मत में कोई कमी नहीं आई थी. फिर भी मेरे पति ने एक ऑक्सीजन कंटेनर लेकर रख लिया. हालांकि ईश्वर की कृपा से इसकी जरूरत नहीं पड़ी.

नाथुला पहुंचने का रास्ता बहुत ही खूबसूरत है. रास्ते में दो-तीन झीलें नजर आती हैं, इनमें से कुछ कृत्रिम हैं और कुछ प्राकृतिक. चांगू लेक बहुत प्रसिद्ध है और खूबसूरत भी.यह झील चीनी सीमा से मात्र पांच किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. सर्दियों में ये झील जम जाती है. झील के पानी में बादल इस तरह झुके थे मानो अपना सुन्दर रुप निहार कर ख़ुद ही पर इठला रहे हों. झील, बादल और पहाड़ों के दिलकश बैकग्राऊंड में रंग बिरंगे सजे हुए सुंदर याक एक कतार में खड़े अपनी सवारियों का इंतजार कर रहे थे.
नाथुला से लौटते वक्त बच्चों ने यहां याक राईडिंग का लुत्फ उठाया. पूरे रास्ते में गहरी खाइयों ऊंचे पहाड़ों के बीच से गुजरते हुए लगता रहा कि हम कितने तुच्छ हैं फिर भी कितना अभिमान करते हैं.पहाड़ों में हमेशा ही अपने छोटेपन का एहसास होता है.
हर जगह प्रकृति ने हमारा साथ दिया और बाहें फैला कर हमारा स्वागत किया. बादल तो हमें हौले से छूकर गुज़रते रहे. कहीं-कहीं तो हमारे गालों पर ठंडा सा बोसा देते हुए आगे निकल गए. इसी रास्ते पर बाबा हरभजन सिंह का मंदिर भी है.बाबा भारतीय सेना में जवान थे.कहा जाता है आज भी बाबा सेना की ड्यूटी पर हैं. बहुत दिलचस्प है उनकी कहानी! आर्मी के जवान बाकायदा वर्दी में उनकी मूर्ति के सामने सेल्यूट करते हैं.

नाथुला से हम उतर रहे थे, बुखार चढ़ रहा था.पर रास्ते की खूबसूरती में मैं इतना डूब गई कि मुझे बुखार महसूस ही नहीं हुआ. होटल पहुंच कर सभी आराम करना चाहते थे.ख़ैर कुछ देर का आराम, फिर डिनर और उसके बाद सभी नींद के आगोश में चले गए. बुखार की वजह से मुझे थोड़ी बेचैनी रही पर थकान से चूर हो रही थी इसलिए कुछ ही देर में निद्रा देवी ने अपनी गोद में स्थान दे दिया. अगली सुबह मुझे बुखार के साथ पेटदर्द भी होने लगा.अब ये तय था कि हम नहीं जाएंगे या सब जगह नहीं जा पाएंगे.पर मैंने हिम्मत जुटाई और होटल से निकल ही गये….हमने सबसे पहले रूख़ किया नामग्याल इंस्टिट्यूट ऑफ तिब्बेतोलॉजी का, फिर डोड्रूल मठ, फ्लॉवर शो और बानझाकरी वॉटरफॉल. नामग्याल इंस्टिट्यूट तिब्बती साहित्य और शिल्प का अनूठा भंडार है. यहां धर्म, संस्कृति और कला शिल्प से संबंधित संग्रहालय है. एक पुस्तकालय भी है जहां प्राचीन तिब्बती साहित्य को सहेजा गया है. डोड्रुल मठ में प्रवेश से पहले कुछ सीढ़ियां चढ़ना होती है. प्रार्थना चक्र घुमाते घुमाते मन में चल रहा विचार चक्र स्वत: ही थमने लगता है.
भीतर एक साथ कई सारे दीये जल रहे थे. आत्मा को प्रसन्न करने वाला दृश्य! मुझे व्यक्तिगत तौर पर मठ बहुत अच्छे लगते हैं यहां एक अलग तरह की शान्ति पसरी होती है, कुछ रहस्यात्मक- सी.

यहां से फ्लॉवर शो की तरफ चले. फूलों को बहुत ही रचनात्मक तरीके से सजाया गया था.बरबस ही दर्शकों का ध्यान खींच रहे थे सुंदर रंग-बिरंगे पौधे. एक और ख़ास बात गंगटोक में महसूस हुई कि हर घर में सुंदर फूलों वाले पौधे दिख जाएंगे. घर छोटा हो या बड़ा,अमीर या गरीब कुछ मायने नहीं रखता.घर में प्रवेश करते ही सबसे पहले ख़ूबसूरत फूल मुस्कुराते मिलेंगे. और इस तरह हमने इस यात्रा का भरपूर आनंद लिया. बुखार और अन्य कई तकलीफों को नज़रंदाज़ करके. जैसे हरि अनंत हरि कथा अनंता…… वैसे ही जीवन की परेशानियां और ज़िन्दगी से हमारी शिकायतें कभी ख़त्म नहीं होतीं. इनके बीच में से ही रास्ता निकालना होता है.

बस एक बात भूल गए,
इस पूरी ट्रिप के पहले अपनी गाड़ी पर “बुरी नजर वाले तेरा मुंह काला” लिखवा लेना चाहिए था. या नींबू मिर्च ही टांग लेते!!

अगली और आख़री किश्त का इंतजार कीजिए