May 2, 2025
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World Press Day (3 may)- शब्द हिंसा का बेलगाम समय!

जरूरी है मीडिया का भारतीयकरण

sanjay dwivedi writer
sanjay dwivedi

-प्रो.संजय द्विवेदी

यह ‘शब्द हिंसा’ का समय है. बहुत आक्रमक, बहुत बेलगाम. ऐसा लगता है कि टीवी न्यूज मीडिया ने यह मान लिया है कि शब्द हिंसा में ही उसकी मुक्ति है. चीखते-चिल्लाते और दलों के प्रवक्ताओं को मुर्गो की तरह लड़ाते हमारे एंकर सब कुछ स्क्रीन पर ही तय कर लेना चाहते हैं. यहां संवाद नहीं है, बातचीत भी नहीं है. विवाद और वितंडावाद है. यह किसी निष्कर्ष पर पहुंचने का संवाद नहीं है, आक्रामकता का वीभत्स प्रदर्शन है.
निजी जीवन में बेहद आत्मीय राजनेता, एक ही कार में साथ बैठकर चैनल के दफ्तर आए प्रवक्तागण स्क्रीन पर जो दृश्य रचते हैं, उससे लगता है कि हमारा सार्वजनिक जीवन कितनी कड़वाहटों और नफरतों से भरा है. किंतु स्क्रीन के पहले और बाद का सच अलग है. बावजूद इसके हिंदुस्तान का आम आदमी इस स्क्रीन के नाटक को ही सच मान लेता है. लड़ता-झगड़ता हिंदुस्तान हमारा ‘सच’ बन जाता है. मीडिया के इस जाल को तोड़ने की भी कोशिशें नदारद हैं. वस्तुनिष्ठता से किनारा करती मीडिया बहुत खौफनाक हो जाती है.
सूचना और खबर के अंतर को समझिए- हमें सोचना होगा कि आखिर हमारी मीडिया प्रेरणाएं क्या हैं? हम कहां से शक्ति और ऊर्जा पा रहे हैं. हमारा संचार क्षेत्र किन मानकों पर खड़ा है. पश्चिमी मीडिया के मानकों के आधार पर खड़ी हमारी मीडिया के लिए नकारात्मकता, संघर्ष और विवाद के बिंदु खास हो जाते हैं. जबकि संवाद और संचार की परंपरा में संवाद से संकटों के हल खोजने का प्रयत्न होता है. हमारी परंपरा में सही प्रश्न करना भी एक पद्धति है. सवालों की मनाही नहीं, सवालों से ही बड़ी से बड़ी समस्या का हल खोजना है, चाहे वह समस्या मन, जीवन या समाज किसी की भी हो. इस तरह प्रश्न हमें सामान्य सूचना से ज्ञान तक की यात्रा कराते रहे हैं. आज ‘सूचना’ और ‘ज्ञान’ को पर्याय बनाने के जतन हो रहे हैं. सच यह है कि ‘सूचना’ तो समाचार,खबर या न्यूज का भी पर्याय नहीं है. सूचना कोई भी दे सकता है. वह कहीं से भी आ सकती है. सोशल मीडिया आजकल सूचनाओं से ही भरा हुआ है. किंतु ध्यान रखें खबर, समाचार और न्यूज के साथ जिम्मेदारी जुड़ी है. संपादकीय प्रक्रिया से गुजरकर ही कोई सूचना,समाचार बनती है. इसलिए संपादक और संवाददाता जैसी संस्थाएं साधारण नहीं है.

हर व्यक्ति नहीं हो सकता पत्रकार-
यह कहना आजकल बहुत फैशन में है कि इस दौर में हर व्यक्ति पत्रकार है. हर व्यक्ति फोटोग्राफर है. हर व्यक्ति कम्युनिकेटर, सूचनादाता, मुखबिर हो सकता है, वह पत्रकार कैसे हो जाएगा? मेरे पास कैमरा है, मैं फोटो ग्राफर कैसे हो जाऊंगा. विशेष दक्षता और प्रशिक्षण से जुड़ी विधाओं को हल्का बनाने के हमारे प्रयासों ने ही हमारी मीडिया या संवाद की दुनिया को बहुत बड़ा नुक्सान पहुंचाया है. यह वैसा ही है जैसे कपड़े प्रेस करने वाले या प्रिंटिंग प्रेस वाले अपनी गाड़ियों पर ‘प्रेस’ का स्टिकर लगाकर घूमने लगें. मीडिया में प्रशिक्षण प्राप्त और न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता के बिना आ रही भीड़ ने अराजकता का वातावरण खड़ा कर दिया है. लोकमान्य तिलक,महात्मा गांधी, सुभाष चन्द्र बोस, बाबासाहेब आंबेडकर, पं.जवाहरलाल नेहरू, मदनमोहन मालवीय, माधवराव सप्रे जैसे उच्च शिक्षित लोगों द्वारा प्रारंभ और समाज के प्रति समर्पित पत्रकारिता वर्तमान में कहां खड़ी है. भारत सरकार के आग्रह पर प्रेस कौंसिल आफ इंडिया ने पत्रकारों की न्यूनतम शैक्षिक योग्यता के निर्धारण के लिए एक समिति भी बनाई थी, जिसके समक्ष मुझे भी अपनी बात रखने का अवसर मिला था. बाद में उस कवायद का क्या हुआ पता नहीं.

समाज की रूचि का करें परिष्कार –
समाज की रुचि का परिष्कार और रूचि निर्माण भी मीडिया की जिम्मेदारी है. अपने पाठकों, दर्शकों को समय के ज्वलंत मुद्दों पर अपडेट रखना, उनकी बौद्धिक, नागरिक चेतना को जागृत रखना भी मीडिया का काम है. जबकि देखा यह जा रहा है कि पाठकों की पसंद के नाम पर कंटेंट में गिरावट लाने की स्पर्धा है. ऐसे कठिन समय में मीडिया के दायित्वबोध और सरोकारों पर बातचीत बहुत जरूरी है. प्रिंट मीडिया ने भी साहित्य, कलाओं, प्रदर्शन कलाओं और मनुष्य बनाने वाली सभी विधाओं को अखबारों से निर्वासन दे दिया है. मीडिया सिर्फ दर्शक बना रहे यह भी ठीक नहीं. उसे राष्ट्रीय भावना और जनपक्ष के साथ खड़े रहना चाहिए.
देखा जाए तो समाज में फैली अशांति, स्पर्धा, लालसाओं और संघर्ष के बीच विचार के लिए सकारात्मक मुद्दे उठाने ही होंगे. मीडिया खुद अशांत है और गहरी स्पर्धा के कारण सही -गलत में चुनाव नहीं कर पा रहा है. ऐसे में मीडियाकर्मियों की जिम्मेदारी है कि खुद भी शांत हों और संवाद की शुचिता पर काम करें. वसीम बरेलवी लिखते हैं –
कौन सी बात कहां, कैसे कही जाती है.
वो सलीका हो तो हर बात सुनी जाती है.
(लेखक माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल के जनसंचार विभाग में आचार्य और अध्यक्ष हैं.)