June 22, 2025
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वेबसीरिज बनाम भाषा : हिंदी को बचाने के यज्ञ में एक आहुति अपनी भी दें..

ज्योति जैन
-हम हिन्दुस्तानी है, यहाँ रहते हैं, जीते हैं और पूरा समय बस अंग्रेजी सीखने में निकाल देते हैं क्यूंकि हमें बताया और दिखाया गया है की अंग्रेजी बड़ी महत्वपूर्ण भाषा है और सुपीरियर जिसको हम वरिष्ठ या बेहतर भाषा मानते हैं, पर जैसे जैसे हम बड़े होते हैं और पढ़ाई के बाद काम करने लगते हैं चाहे वो भारत में हो या विदेश में तो हमे समझ आता है की अच्छी और सही हिंदी आना कितना महत्वपूर्ण हैं.

शायद बच्चों के लिए यह बात समझना बहुत मुश्किल है लेकिन अगर मैं एक उदाहरण बताऊं तो अंतराष्ट्रीय विश्वविद्यालय का हिंदी कोर्स चालू करना और वहां पर लोगों का हिंदी सीखना एक उदाहरण है.अगर एक व्यापारी की बात करें या किसी भी स्तर के कर्मचारी की तो इन्हें भी हमारे देश में हिंदी आना बहुत महत्वपूर्ण है क्यूंकि यदि आपको कुछ बेचना है तो आपको मातृभाषा में ही बेचना पड़ेगा भले ही आपको अंतराष्ट्रीय भाषा कितनी भी आती हो.आज विदेशी कम्पनियां बहुत अच्छे से जानती है- भारत मार्केटिंग का अच्छा बाज़ार है इसलिए वे अपनी कर्मचारियों को हिंदी सिखा रही है और यह हमारे लिए गर्व की बात है.

एक बहुत सामान्य उदाहरण बताया जाए तो टेलीविज़न पर यदि अंग्रेजी चैनल आते हैं तो उसमे भी अब हिंदी भाषा करने का विकल्प आने लगा है, आज दुनिया हमारी भाषा का सम्मान कर रही है तो हमें भी अपनी भाषा के महत्व को जानना चाहिए .


और आप कोई भी भाषा सीख रहे हो उसको पूरा सीखिए और ईमानदारी से सीखिए आज की सच्चाई ये है की ना हमें हिंदी ढंग से आती है न ही अन्य भाषा, हमारे यहाँ एक साधारण व्यक्ति अंग्रेजी बोलना चालू करता है तो अपने आप हिंदी बीच बीच में बोलने लगता है या दो लाइन अंग्रेजी बोलने के बाद हिंदी पर आ ही जाता है.

एक बात अपने आप से पूछिए और ध्यान रखिये की हम सपने कौन सी भाषा में देखते हैं ? शायद हम सभी हिंदी में ही देखते होंगे.अपनी भाषा की इज्ज़त करिए और सीखिए क्यूंकि वो आपके अस्तित्व का एक बड़ा हिस्सा है.

यदि हमे हिंदी अच्छे से आती हो तो अंग्रेजी समझना काफी आसन हो जाता है क्यूंकि अंग्रेजी में 26 अक्षर होते हैं और हिंदी वर्णमाला में कुल 49 वर्ण हैं… इसमें 11 स्वर , 33 व्यंजन, 2 आयोगवाह व 3 संयुक्ताक्षर है.

आज हम हिंदी को भी रोमन अक्षरों में लिखते हैं ना की देवनागरी में.इससे हमारे दिमाग और भाषा पर बुरा असर पड़ता है. मराठी, नेपाली और गुजराती ये तीनों देवनागरी में लिखी जाती है, बस बनावट का फर्क है.

हम अपनी भाषा पर गर्व करते हैं परन्तु इसका कारण लोगों को बताइए. इतनी वैज्ञानिक दुनिया की कोई भाषा नही है. एक मज़ेदार बात आप को बताती हूँ, संस्कृत आधारित सभी भाषाएँ जैसे-हिंदी, बंगला, ओडिया, तमिल , कन्नड़, मलयालम आदि सभी भाषाओँ में व्यंजन “क से ज्ञ ” और स्वर “अ से अ: ” ही होता है , बस उनकी लिपि और बोली अलग होती है और पढ़ाया भी उसी क्रम में जाता है जिस क्रम में हम हिंदी सीखते हैं.

आप टूथपेस्ट को पेस्ट बोलते हैं आप उसको पेस्ट ही रहने दीजिये आपको रोज़ दंतप्रलेप बोलने की ज़रुरत नहीं, आप कंप्यूटर को कंप्यूटर ही बोलिए संगणक मत बोलिए, आप कैमरा को कैमरा बोलिए प्रतिबिम्ब लेने की पेटी मत बोलिए , लेकिन आपको जानकारी और ज्ञान होना चाहिए की हमारी भाषा में इन चीजों के लिए क्या शब्द है लेकिन रोज़मर्रा की भाषा में ज़रूरी नहीं है की आप शुद्ध हिंदी में बोलें.

पिछले कुछ साल पहले की दो बातें बताती हूँ… एक ….हिंदुस्तान टाइम्स की दो लोकप्रिय पत्रिकाएं कादंबिनी और नंदन को बंद कर दिया गया। ध्यान रहे कि धर्मयुग, साप्ताहिक हिंदुस्तान, सारिका, पराग ,दिनमान ,माधुरी व लोटपोट जैसी पत्रिकाएं जिन्होंने हमारे बचपन में वाचन संस्कृति का बीज बोया… वह पहले ही बंद हो चुकी हैं.यह तो हुई एक बात।

दूसरी बात ….कि पिछले दिनों बिटिया के वर्क फ्रॉम होम के चलते नेट लगवाया गया जिसका एक फायदा यह भी बताया गया कि इसे टीवी से भी कनेक्ट करके काफी सारी वेबसीरिज़ व मूवी भी कनेक्ट कर देख सकते हैं। मुझे लगा यह तो अच्छा है… तो अगले दिन कोई एक शो लगाकर उस पर क्लिक कर दिया। 9 वर्षीय भतीजी साथ बैठी थी मुश्किल से 5 मिनट बाद के सीन में निर्दोष व सम्मानीय मां और बहन को लेकर गालियां शुरू हो गई.यहां तक की स्त्री-पुरुष के जननांगों को भी खुलेआम जोर जोर से बोला जा रहा था उस वक्त तो मैंने फौरन टीवी बंद कर दिया.बाद में तीन चार शो और टटोले तो सब पर वही हाल था। एक वेदना से गुजर रही थी सो वही वेदना शब्द रूप ले पन्नों पर उतर गई।हम कहां व क्यों जा रहे हैं …?क्या हम इस बारे में सोच भी रहे हैं….?

मैंने कहीं पढ़ा था कि किसी राष्ट्र को समाप्त करना है तो उसकी संस्कृति और भाषा को समाप्त कर दो,राष्ट् राष्ट्र स्वतः ही नष्ट हो जाएगा. कहीं सब मिलकर यही तो नहीं कर रहे….?स्तरीय पुस्तकें बंद होना और एक क्लिक पर पॉर्ननुमा शो अपनी बैठक तक आ जाना… यह षड्यंत्र नहीं तो और क्या है..? कुछ सवाल उभरे, जिनके जवाब किसी के पास नहीं थे. यह शो इतनी आसानी से क्यों पास हो गए ….?क्यों लोग इसके खिलाफ आवाज नहीं उठा रहे…? कहीं ऐसा तो नहीं कि सोने की थाली में परोसा यह जहर लोग धीरे-धीरे हजम करने लगे हैं….? धड़कनें तो चल रही हैं, मगर जिंदा नहीं हैं…

नंदन पराग जैसा वह स्तरीय बाल साहित्य जिनसे मैंने वर्ग पहेली सीखी.. चंदा मामा की वह प्रेरणादायी व श्रेष्ठ संदेश देती कहानियां …व धर्मयुग सारिका जैसी समृद्ध पत्रिकाएं बंद होना और इस तरह की निकृष्ट भाषा के शो शुरू होना … हमारी भाषा एक बड़े खतरे में है यही इंगित करता है। जब एक श्रेष्ठ व स्वस्थ साहित्य की सत्संग में हम रहते हैं हमारी भाषा भी वैसी ही होगी।

अबोध मन पर शब्दों ,भावों, कल्पना और विचारों की जो छाप बाल साहित्य ने हम पर छोड़ी और संस्कारों की थाप से जिस तरह से गढ़ा है …हम यह कह सकते हैं कि आदर्श नागरिक ने हमारे भीतर आकार लिया है ..वहीं, दूसरी ओर यह वेब सीरीज की विकृत और अनावृत (नग्न) भाषा बच्चों का बचपन झुलसा रही है… यह ना सिर्फ चिंता का विषय है अपितु अक्षम्य अपराध की श्रेणी में रखा जाना चाहिए. कोरे कच्चे मन को भाषिक संस्कार, मर्यादा और तमीज़ सिखाने का दायित्व अगर इन माध्यमों ने भी अपने ऊपर नहीं लिया तो आखिर अभिभावक भी बेबस रह जाएंगे और कुछ नहीं कर पाएंगे.

हमें मानव जीवन मिला है हम कुछ नहीं कर सकते,यह सोचना गलत है तो आइए हम सब प्रण करें कि अपनी अस्मिता,अपनी संस्कृति और अपनी भाषा को बचाए रखने के यज्ञ में एक आहुति अपनी भी दें….।

ज्योति जैन
1432/24,नंदानगर
इन्दौर 452011

लेखिका जानीमानी साहित्यकार हैं. अब तक 16 कृतियां प्रकाशित हो चुकी हैं.