April 19, 2025
Blog

Teachers Day : गुरु सिर्फ एक ही मिले ताम्रकर सर

जिनके सिखाए पाठ हमेशा साथ हैं…

ज्योति जैन

” तुम डांस में भाग नहीं ले सकती…. शक्ल देखी है अपनी ….सींकिया कहीं की …..यह शब्द सुन मैं हीन भावना के गहरे गड्ढे में जा गिरती, उससे पहले दर मैडम (शायद रंजना नाम था उनका) मेरी तारीफों के पुल बांध देतीं.. कितनी प्यारी बेटी है ….क्या खो-खो खेलती है…. यह थे गुरु….!

गणित के नाम से ही मेरी रूह कांपती थी. पहाड़े तो मुझे पहाड़ से ही लगते थे .इन सब की परिणिति गणित में सप्लीमेंट्री ही हुई. गणित शिक्षक ने कान खींच कर कहा था कि “तुम जिंदगी में कभी कुछ नहीं कर सकती “.मैं सचमुच कुछ नहीं कर पाऊंगी यह सोच… यह डर ….मेरे अंदर जड़ तो नहीं जमा पाया, क्योंकि मेरे माता-पिता व भाइयों का दिया आत्मविश्वास मुझ में था…. फिर भी कभी-कभी यह डर सिर उठा लेता था.

लेकिन कुछ समय बाद ही मेरी अन्य विषयों में रूचि पहचान….समुद्र में प्रकाश स्तंभ की तरह मुझे राह दिखाने वाले श्री श्री राम ताम्रकर सर ने इस डर को हमेशा के लिए खत्म कर दिया.यह थे गुरु… बाकी सब तो सिर्फ शिक्षक थे.

आज अक्सर सुनते हैं कि मैथ्स ब्रेन शॉर्पनर है लेकिन शॉर्पनर ना सही तो चाकू या पुरानी रेजर पत्ती से ही पेंसिल की नोक करवा ले…. वही तो सच्चा गुरु है. ताम्रकर सर ऐसे ही गुरु थे.वे सर ही थे, जो नकारात्मकता की कंटीली झाड़ियों में फंसी मेरी रुचि को सहजता से बाहर निकाल लाए थे.

अच्छी बुरी टिप्पणियों को पाकर, नकारात्मकता-सकारात्मकता के बीच गोते खाती मेरी नैया तब दसवीं तक आ पहुंची थी…. उस वर्ष 1979 यानि आज से 41 वर्ष पूर्व मुझे दो बातों की सबसे ज्यादा खुशी थी. एक तो अब आगे मुझे गणित नहीं पढ़ना था ,क्योंकि उसके आगे अनिवार्य नहीं था दूसरे ताम्रकर सर ने पिछले 1 वर्ष में मेरी छोटी छोटी तुकबंदियों को लगातार सराहते हुए मुझे कविराज कहना शुरू कर दिया था.

वह सदा पीठ थपथपाते हुए कहते ..”और कविराज …आज क्या लिखा….? उनके यह शब्द मेरा हौसला बढ़ाते.सर का गुरु मंत्र था कि केवल लिखने तक सीमित नहीं रहो इसे अखबार में छपने भेजो …तुमने क्या लिखा है दुनिया को मालूम हो. इसे छपास की भूख नहीं कहते ..यह तुम्हारी कला है… प्रतिभा है …विचार हैं… जो लोगों को पता होना चाहिए.

दूसरे बोलना भी सीखो.अपनी बात कहने का एक तरीका होता है. तुम कर पाओगी.और इसी भरोसे के चलते सर ने मुझे मंच संचालन की ओर धकेला…

यही वह दौर था जब किशोरवय की लड़कियों के बीच (मेरा गर्ल्स स्कूल था )फिल्मों की बातें वर्जित मानी जाती थी.

खुसरपुसुर के रूप में ही की जाती थी या रिसेस में… लेकिन ताम्रकर सर वह गुरु थे जो पीरियड में भी फिल्मों की रोचक बातें इतनी शालीनता के साथ बताते थे कि आश्चर्य होता था कि लोग ऐसी बातें करने से कतराते क्यों हैं …

फिल्म समारोह से लौट कर सर सितारों की बातें बताया करते. जब ऋषि कपूर से मिलकर आए तो अपने सपनों के राजकुमार का वर्णन सर के मुंह से सुनकर हम लड़कियां निहाल हो उठी. एक तरह से पगला ही गई थी .ओ….वाह… सर ऋषि कपूर से मिलकर आए. सर खुलकर हंसे थे, फिर हमें सितारों व उनकी जमीनी हकीकत की बातें समझाईं…

उस दौर में फिल्मों से प्रभावित लड़के-लड़कियों की घर से भाग जाने की कई घटनाएं हुआ करती थी. बाद में मुझे समझ में आया कि सर हमें कितना और कितने बेहतर तरीके से समझाते थे.भटकाव की तो गुंजाइश ही नहीं थी. वैसे तो सर हमें नागरिक शास्त्र पढ़ाते थे लेकिन शायद कोई विषय ऐसा नहीं था जो उन से अछूता रहा हो और इन सबके अलावा हम लड़कियों में आत्मविश्वास नैतिकता व ईमानदारी का तो वह पाठ पढ़ाया, जिसे मैं आज तक नहीं भूली.

हायर सेकेंडरी पास होते-होते वह सारा नैराश्य सर खत्म कर चुके थे. सांझ ढलती थी तो मुझे पता रहता था कि कल सिंदूरी सूरज फिर समुद्र से नहा कर निकल आएगा मुझे लगता है यही तो एक गुरु की सफलता है… सर आज इस दुनिया में नहीं है.. लेकिन उनके सिखाए पाठ सदा मेरे साथ रहते हैं. जीवन में शिक्षक तो बहुत मिले पर गुरु सिर्फ एक ही मिले और वह थे ताम्रकर सर…

ज्योति जैन

शिक्षक दिवस