June 21, 2025
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Travel: बान झाकरी में, झुनका भाकरी

यात्रा संस्मरणशुचि कर्णिक (लेखक, स्वतंत्र पत्रकार)

सुनने में शायद यह अजीब लगे क्योंकि बानझाकरी गंगटोक में स्थित एक वॉटरफॉल है और झ़ुनका भाकरी महाराष्ट्र का एक व्यंजन या कहिए भोजन का एक प्रकार है.

अब इन दोनों में क्या समानता!
इस बारे में हम आगे विस्तार से बात करेंगे.

फिलहाल चलिए अपना सामान पैक कीजिए आज आपको बानझाकरी वॉटरफॉल लिए चलते हैं. ये मेरा दावा है कि आपको भी उतना ही आनंद आएगा जितना हमें आया था. चूंकि हम सुबह से होटल से निकले थे और दार्जिलिंग भी जाना था तो मेरे पति कुछ असमंजस में थे कि बानझाकरी जाएं या नहीं. पर मुझे लगा कि हमें ज़रूर जाना चाहिए. काफी विचार विमर्श के बाद हम चल पड़े. दरअसल बानझकरी वॉटरफॉल गंगटोक में एक सुरम्य पर्यटन स्थल है. बन यानी जंगल और झाकरी कहते हैं पौराणिक उपचारक को.ऐसी मान्यता है वो जंगल में ही रहता है. उसके पास ख़ास शक्तियां हैं और वो आत्मा की पूजा करता है. एक इंदौरी चटोरा कहीं भी जाए खाने-पीने की बातें सबसे पहले करता है. यहां आते ही मेरे पतिदेव झरने की मधुर ध्वनि और फुहारों की ताज़गी से इतने प्रसन्न थे कि अपनी ख़ुशी का इज़हार करने के लिए उन्होंने छोटी सी तुकबंदी रच दी ;
“बनझाकरी में खाओ झ़ुनका भाकरी.”अब इनमें क्या साम्य है ये वो ही जानें!! शायद शब्दों का फेर.

यहां सफर की सारी थकान ताज़े पानी को सौंप दी.हर बूंद सूरज की चमक से और चमकीली दिख रही थी . इस पूरे दृश्य ने मानो क्लांत मन को धोकर आल्हाद से भर दिया. बच्चों ने झरने के पानी में से रंग बिरंगे पत्थर खोजे जो उनके लिए किसी सोविनिर से कम नहीं. यहां से दार्जिलिंग का रूख़ किया पहुंचने में हमें शाम हो गई. भीड़भाड़ के कारण बाजार जाने का मन नहीं हुआ. आराम से भोजन किया और जल्दी सो गए.

…… अगले दिन अलसुबह उठकर हम टाइगर हिल के लिए निकले.ये उन चंद खुशकिस्मत दिनों में से एक था जब हमने उगते सूर्य को देखा.सुबह की ताज़ी हवा, पक्षियों की चहचहाहट के बीच क्षितिज को कोमल नारंगी रंग से प्रकाशवान करते हुए बाल सूर्य का उदय मन के हर कोने को ऊर्जस्वित कर गया. जब दिन की शुरुआत इतनी सकारात्मक हो तो पूरा दिन निश्चित ही खुशगवार बीतेगा यह भरोसा था. टाइगर हिल से लौट कर होटल आए, बढ़िया नाश्ता किया और निकल पड़े घूम मोनेस्ट्री की तरफ़. यहां कुछ सुधार कार्य के चलते मठ में प्रवेश नहीं कर पाए. अलबत्ता मठ के कैम्पस में गर्मा गर्म चाय का मज़ा लिया और समय का सदुपयोग करते हुए थोड़ी शॉपिंग भी कर ली.
इस मॉनेस्ट्री के बाद कुछ ही दूरी पर बतासिया लूप देखने गए. दरअसल बतासिया लूप टॉय ट्रेन का एक स्टॉपेज है.यहां एक सुंदर बगीचा है और गोरखा सैनिकों की स्मृति में बना युद्ध स्मारक है. टॉय ट्रेन इस बगीचे का एक पूरा चक्कर लगाती है. यहां से ज़ू जाने का प्लान बनाया पर अचानक बारिश से थोड़ा व्यवधान आया. पहाड़ों में जैसे बारिश अचानक शुरू होती है वैसे ही कुछ देर में थम भी जाती है.इस हिमालयन जूलॉजिकल पार्क को भारत में सर्वश्रेष्ठ होने का दर्जा हासिल है.

यहां सबसे दुर्लभ रेड पांडा देखा और बंगाल रॉयल टाइगर के भी दर्शन हुए. ज़्यादा बात तो नहीं हो पाई. टाइगर महोदय कुछ सोच विचार की मुद्रा में थे . चहल कदमी करते हुए बस हाय हेलो ही हो पाया और वह भी जाली के इस तरफ से.
जू का लैंडस्केप बहुत ही खूबसूरत था यहां पर हिमालयन माउंटेनियरिंग की एग्जी़बिशन और कुछ एडवेंचर एक्टिविटीज़ भी थीं जिसका पूरा लाभ बच्चों ने उठाया. जैसा कि अपेक्षित ही था बच्चों को ज़ू में बहुत आनंद आया. एडवेंचर एक्टिविटीज़ में ज़िप लाइनिंग और ऑब्सटेकल वॉक भी किया..यही सही मायनों में गर्मी की छुट्टी हुई. हां बच्चों को कुछ दिनों के लिए ही सही बैग बस्तों से और यूनिफॉर्म से मुक्ति मिली. दार्जिलिंग में सबसे खास है चाय. यहां चाय के बागान नहीं देखे तो क्या देखा. हमने बागान भी देखे और चाय का मज़ा भी लिया.
अब हमने दार्जिलिंग के सबसे आख़री डेस्टिनेशन जापानी पीस पगोडा की तरफ अपनी गाड़ी मोड़ दी. चूंकि अगले दिन हमें फिर से बागडोगरा के लिए निकलना था इसलिए हम चाहते थे कि शाम को जल्दी फ्री हों ताकि हमें बैग जमाने और आराम करने को पर्याप्त समय मिले. हम प्रवेश कर रहे हैं एक बहुत ही शांत और सुंदर जापानी मंदिर या मठ की तरफ इसे जापानी पीस पगोडा कहा जाता है. सौभाग्य से हमें संध्या आरती में शामिल होने का अवसर भी मिल गया.
मौसम ने फिर करवट ली और थोड़ी तबियत नासाज़ थी इसलिए हमें थोड़ा जल्दी ही यहां से विदा लेनी पड़ी. फोटोशूट के लिए पर्याप्त समय नहीं मिल पाया. होटल पहुंच कर थोड़ा आराम किया. फिर कमरे में फैला ज़रूरी सामान समेटा,मन में सारी यादों को समेटा और एयरपोर्ट के लिए निकले. जब हम सब हवाईजहाज़ में अपनी सीट पर बैठ गये तब इस ट्रिप की कैसेट को पूरा रिवाइंड करने की प्रक्रिया शुरू हुई. नाथुला जाने के दौरान रास्ते में चाय की टपरी पर बादलों के बीच जिस चाय का हमने मज़ा लिया उससे ज्यादा स्वादिष्ट कोई चाय हो ही नहीं सकती. वो अद्भुत स्वाद हमारी बेशकीमती यादगार है. पूरी यात्रा के दौरान रास्ते में भूटानी नेपाली और सिक्किम के गीत संगीत को सुनते हुए जो आनंद हमें मिला वह भी हमारे लिए किसी सोविनिर से कम नहीं है.

और हां सिक्किम और दार्जिलिंग के सोविनिर लेना नहीं भूले.ये हमेशा की तरह एक जरूरी औपचारिकता है.पर इसके अलावा और भी कई यादें हैं जो मेमेन्टो की तरह हम अपने साथ ले आए; बनझाकरी झरने को देखने के बाद वाली मुस्कान,
घने जंगलों से गुज़रते वक्त का रोमांच, नाथुला दर्रा पहुंच पाने की अनुभूति, शांत और सुंदर मठ और स्तुपों को देखने के बाद वाली संतुष्टि ये सब वो सोविनिर हैं जो हमारे ज़ेहन में हमेशा जीवंत रहेंगे.