June 21, 2025
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सुनो…कायदे से रहोगे तो फायदे में रहोगे…


-डॉ. छाया मंगल मिश्र


-एक देवीजी जो रिश्ते में चची थीं भतीजी के घर बिदाई के तुरंत बाद जायजा लेने पहुंचीं जैसे सी.बी.आई. ने भेजा हो. उन्हें अपनी नई-नवेली ब्याही भतीजी के कमरे में सीधे पहुंचना था. उस पर आश्चर्य यह कि बेटी के मां/बाप, भाई/भोजाई और अन्य घर के बड़े बुजुर्ग भी उन्हें रोकने का साहस नहीं कर पा रहे. उनकी उद्दंडता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वे जबसे शादी पक्की हुई थी तभी से लगातार फूहड़ और बेहूदगी का प्रदर्शन करती जा रही थी.

चूंकि भतीजी के ससुराल पक्ष से वे पुरानी परिचित रहीं सो वे लगातार निंदा का पुलिंदा लिए बरगलाने पहुंचती. पर वे ये भूल गईं कि ये वही लोग हैं जिनकी तारीफ करते करते इनका गला नहीं सूखता था. उनकी कृपा से उनका जीवन भी थोडा बहुत आसान रहा. पर वे तो ठहरीं अहसान फरामोश नमक हराम. कायदा सीखा नहीं. सास-ससुर की रोटियां गिनतीं, बेहूदगी और भद्दे रहन-सहन पर सासू के रोकने टोकने पर उनका कहना होता कि ‘अपने मन मर्जी से रहने के लिए क्या इनके मरने का इंतजार करें?’ यही नहीं अपनी सासू के अंतिम समय में उन्हें बिस्तर पर छोड़ विदेश यात्रा पर निकल पड़ीं. वो सासू जिसने इनका करियर बनाया. इन्हें पढने-लिखने में मदद की. इनका सब जगजाहिर मामला रहा अपनी भतीजी के ससुराल में. बावजूद इसके वे पहुंची ससुराल बिदाई के ठीक चंद घंटों के अंदर ही.

अब ससुराल में उनके रीत-रिवाज, पूजा-पाठ चल रहा. उनके अपने परिवार/मेहमान से घर भरा. बीच में ये पधारे. बस जिद पकड़ ली कमरे में जाना है. भतीजी से मिलना है. ये वही है जिसकी लम्बे समय से अपनी भतीजी से बातचीत बंद रही. पूरी शादी के दौरान इनकी कोई मदद नहीं रही. नौकरी से छुट्टी तक नहीं ली थी. व्यवहार के नाम पर टालने वाली ये मोहतरमा अचानक प्यार का सागर ले कर आ टपकीं क्योंकि ये शादी रोक न पाई और खुलासा अलग हो गया इनके चरित्र का.

ससुराली इनकी आवभगत करें कि अपने घर को अबेरें. ये हैं कि बस बैठे हैं जाने का नाम नहीं ले रहे. शर्म नाम की चीज ही नहीं है. दिनभर के काम काज से निपटे थके लोग, नई बहू तैयार हो रही, इन्हें कमरे में जाना. ससुर/सास ने मना किया. अभी बहू नीचे आ जाएगी मिलने . नहीं जी इन्हें उसका कमरा देखना कैसा सजाया/ तैयार किया? कौन करता है ऐसा? बेटियों के कमरे झाँकने की बेशर्मी?

अरे तुम होते कौन हो? पूरी शादी को बर्बाद करने के लिए तुमने अपने सारे दुर्गुण अपना लिए. जमके बुराइयों का वमन किया. संबंधों में जहर घोला. किसी को नहीं छोड़ा अब उसी घर में तुम मुंह उठा के चले आये. निर्लज्जता की हद है. इसका असर रिश्तों पर क्या होगा? बेचारी बहू कितनी शर्मिंदा होगी पहले दिन ही. आपको जरा ख्याल नहीं रहा? ऐसा करके आपने अपनी और पूरे परिवार के सम्मान की धज्जियां बिखेर दीं.

इनकी मूर्खता यहीं खत्म नहीं हुई. बड़ी मुश्किल से इनकी रवानगी के बाद भी इन्हें संतोष नहीं हुआ तो भतीजी को लम्बे लम्बे मेसेज करने लगीं. मानने तैय्यार नहीं. इतना परेशान किया कि इनके नम्बर ब्लॉक करने पड़े. जब इन्सान हार से तिलमिला जाता है तो आँखों में ढीठता के बाल उग जाते हैं. कुछ अच्छा बुरा दिखाई नहीं देता. उनकी हरकतों से पूरे परिवार के औरतों के आचरण और कायदों पर एक बड़ा सा प्रश्नचिह्न लग गया. ऐसे लोग एक या अनेक आपके परिवार में भी होंगे जिन्हें केवल अपनी रोटी सेंकने का पागलपन सवार रहता है भले ही उसके लिए उन्हें रिश्तों की चिता में कायदे लिहाज की आग ही क्यों न लगानी पड़े.