August 2, 2025
इंदौर

पर्यावरण के लिए कमिश्नर को सौंपा ज्ञापन

मिल परिसरों का इको सिस्टम बचाने की गुहार

प्रशासन की सकारात्मक प्रतिक्रिया, प्राकृतिक वनों को बचाने व सिटी फॉरेस्ट के लिए करेंगे विशेष प्रयास

इंदौर के सक्रिय पर्यावरणविदों ने मिलकर जिला प्रशासन के प्रमुख, कमिश्नर एवं कलेक्टर को पर्यावरण संरक्षण को लेकर एक ज्ञापन सौंपते हुए बताया कि यदि मिल क्षेत्र में स्थित जल स्त्रोतों का संरक्षण करना कितना आवश्यक है. अब भी हालात पर ध्यान नहीं दिया गया तो पर्यावरण की स्थिति बदतर हो जाएगी. इंदौर शहर में बंद कपड़ा मिलों के विशाल परिसरों में जल स्रोतों का संरक्षण तो जरुरी है ही साथ ही इन क्षेत्रों के इको सिस्टम को भी बचाना बेहद जरुरी है. ज्ञापन में आंकडों के माध्यम से बताया गया है कि इंदौर में पर्यावरणीय स्थिति चिंताजनक है. जल और वायु की गुणवत्ता इस वजह से कम होती जा रही है क्योंकि हरित आवरण और जल संसाधनों पर हम ध्यान नहीं दे रहे हैं. शहरी क्षेत्र का हरित आवरण 9 प्रतिशत तक रह जाना चिंताजनक है क्योंकि एक अध्ययन में पाया गया कि शहर का 91 प्रतिशत क्षेत्र ग्रे एरिया हो चुका है जबकि सिर्फ नौ प्रतिशत क्षेत्र में ही हरियाली कायम रह पाई है. 2023 में जारी ग्रीन सिटी इंडेक्स भी 9 था.


स्मार्ट सिटी के एक अनुमान में यह बताया गया कि शहर में 10 लाख पेड़ हैं, जिनमें से सिर्फ 3 लाख देशी पेड़ बचे हैं जबकि विशेषज्ञ कह रहे हैं कि पिछले पांच सालों में लगभग पंद्रह लाख पेड़ तो विकास के नाम पर ही काट दिए गए हैं. शहर की 1700 किमी लंबी सड़कों के दोनों ओर ही 7 लाख पेड़ होने चाहिए, जबकि सड़कों के किनारे महज 34 हजार पेड़ बच सके हैं. शहर में 31 लाख पंजीकृत वाहनों के बीच सिर्फ 10 लाख पेड़ होना चिंता की बात है. खुद निगम मानता हैँ कि आवासीय क्षेत्रों को देखते हुए शहर में कम से कम 2300 बगीचे होने चाहिए लेकिन शहर में इसके आधे भी बगीचे नहीं हैं, और जो 1100 के रीब बगीचे हैं भी उनमें से 620 विकसित नहीं हैं और 200 से अधिक अतिक्रमण के शिकार हैं.

राष्ट्रीय नीति आयोग के अनुसार भारत के जो शहर अगले पांच साल में गंभीर जल संकट का सामना करेंगे, उनमें इंदौर भी शामिल है. आईआईटी, इंदौर ने 99 शहरों में जल संकट पर जो अध्ययन किया उसमें इंदौर को दसवां स्थान दिया गया है. 2023 में शहरी सीमा में केवल 550 कुएं और बावड़ियां बताई गईं और इनकी भी हालत अच्छी नहीं है. कपड़ा मिलों मालवा, हुकुमचंद, कल्याण, स्वदेशी, राजकुमार और होप (भंडारी) मिलों के क्षेत्र में कम से कम छह मानव निर्मित तालाब और पत्थरों से बने 20 बड़े टैंक हैं, जो सुंदर उदाहरण हैं. इंदौर की छह कपड़ा मिलों में पहली होप टेक्सटाइल्स 1888 में स्थापित की गई थी यहां तक कि सबसे बाद में शुरु हुई राजकुमार मिल्स की स्थापना को भी सौ साल हो चुके हैं. 1986 से 2003 के बीच सभी मलें पूरी तरह बंद हो गईं. तब से ये मिल परिसर जंगल में बदल चुके हैं. इन परिसरों के कई बड़े पेड़ तो सौ साल से भी ज्यादा पुराने हैं. शहर के बंद पड़े मिल परिसरों में प्रस्तावित योजनाओं के कारण यह अत्यंत आवश्यक है कि यहां हरियाली एवं जल स्रोतों को संरक्षित करने के लिए तत्काल कदम उठाए जाएं तथा इन्हें नगर वन/शहर घोषित किया जाए. जंगल. इनसे भविष्य में मौसम की चरम घटनाओं से निपटने में भी मदद मिलेगी. मिल परिसर में लगे पेड़ इंदौर के फेफड़े और जीवन रेखा हैं. मिल क्षेत्र में घनी बस्ती होने के कारण यहां जनसंख्या घनत्व भी अधिक है.

इसलिए घनी हरियाली होना बहुत जरूरी है राज्य के नगरीय विकास एवं आवास विभाग ने अमृत 2.0 मिशन के तहत प्रदेश के 390 शहरों में पार्क और नगर वन विकसित करने की योजना को मंजूरी दी है, जिस पर एक साल में 118 करोड़ खर्च करने होंगे कृपया इन योजनाओं के तहत बंद कपड़ा मिलों के हरे क्षेत्रों को नगर वन/नगर वन घोषित करें. यह ज्ञापन इंदौर के पर्यावरणविद पद्मश्री जनक पलटा मगिलिगन, ओपी जोशी, श्याम सुंदर यादव, अम्बरीश केला, दिलीप वाघेला, जयश्री सिक्का और राजेंद्र सिंह ने हस्ताक्षर कर कमिश्नर को सौंपा.