July 25, 2025
साहित्य समाचार

डॉक्टर शरद पगारे; प्रत्यक्ष का यूं बीत कर अतीत हो जाना

ख्यात साहित्यकार डॉ. शरद पगारे का 92 साल की उम्र में शुक्रवार को निधन हो गया. उपन्यासों के लिए ख्यात रहे शरद पगारे को ‘पाटलिपुत्र की साम्राज्ञी’ के लिए व्यास सम्मान दिया गया था. उनके उपन्यास ‘गुलारा बेगम’ और ‘बेगम जैनाबादी’ भी बहुत
चर्चित हुए. मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी के पुरस्कार से सम्मानित डॉ. शरद पगारे को श्रद्धांजलिस्वरूप श्री नर्मदाप्रसाद उपाध्याय ने शब्दांजलि इस तरह दी है…

महाप्रयाण जब सुनिश्चित है तो उसकोi लेकर क्यों दु:खी होते हैं? इसलिए कि इस सुनिश्चित का घटना अनिश्चित होता है और कल जब सर के महाप्रयाण का समाचार मिला तो इस अनिश्चित के अकस्मात घट जाने ने मन को विकल कर दिया.इसलिए भी कि इतनी दूर हूं दिल्ली में कि उनके अंतिम दर्शन भी नहीं कर पाया.इस समाचार ने पीड़ा के घनों को कहीं और घना कर दिया. कुछ दिनों पहिले ही स्नेह नगर में घर पर मिलने गया था.कोई साहित्य की बात नहीं हुई.खंडवा की स्मृतियों से भी और बहुत दूर उस दिन वे मेरे शहर हरदा पहुंच गए थे जहां उनकी ननिहाल थी,जहां उनका बचपन बीता और फिर यादों के गलियारों में टहलते उन्हें बुरहानपुर और उसके पास के जैनाबाद और फिर गुलारा की बारादरियां याद आईं ,झरने याद आए,और याद आईं कुछ कलियां,कुछ फूल,कुछ सुगंध ,कुछ रंग और अधीर उमंग. कहने लगे संबंध पहिले है ,साहित्य तो उसकी बुनियाद पर खड़ा होता है. वह दिन साहित्य को नहीं संबंध को समर्पित दिन था.
उस दिन उन्हें फ्रांस के वार्साय की भी बहुत याद आई.वहां के उन महलों की जो कला के शोकगीत हैं.वे फ्रांस की क्रांति और मेरी एंटीयोनेट की चर्चा करते रहे और मैने जब उन्हें पेरिस में रखी उस पेंटिंग के बारे में बताया कि जब उसे उस समय के राजकीय वाहन में जेल से फांसी पर चढ़ने,जिसे गिलोटीन करना कहते थे ले जाया जा रहा था ,तो वह उस रथ पर राजकीय ऐंठ के साथ ऐसे सवार हो रही थी जैसे वह कोई कैदी न हो बल्कि अपने लाव लश्कर के साथ सैर करने जा रही हो ,तो उसका विवरण सुनकर वे विव्हल हो उठे थे.
सर ,इतिहास के प्राध्यापक रहे लेकिन उन्होंने इतिहास पढ़ाया ही नहीं जिया और इस तरह जिया कि उनके उपन्यासों के पात्र जीवंत हो गए और बीते कल , आज हो गए ,अभी हो गए. यह सृष्टि का विचित्र विधान है कि स्मृतियां चिर बिछोह के समय और अधिक प्रखर होने लगती हैं.मुझे साठ का वह दशक याद आया जब नई दुनिया में ऐतिहासिक विषयों पर रविवारीय में बहुत लिखा जाता था और लिखते थे डॉक्टर शरद पगारे,डॉक्टर सोलोमन,शिवनारायण जी यादव और बालकृष्ण पंजाबी.तभी से इतिहास का विद्यार्थी होने के नाते मैंने भी नई दुनिया में लिखना आरंभ किया,ललित निबंध की शैली में.मुझे याद हैं तब पूरे मन से वे हरेक आलेख की प्रशंसा करते थे. उस समय मैं भोपाल में पढ़ता था लेकिन जब भी इंदौर आता और वे यहां होते तो मैं ज़रूर उनसे मिलता. मेरा लंबा कालखंड बुरहानपुर और खंडवा में बीता जहां की पृष्ठभूमि में उनके उपन्यास हैं.मेरा सौभाग्य रहा कि जब ये उपन्यास लिखे जा रहे थे तब इनके महत्वपूर्ण अंश उन्हीं से सुनने के अवसर मुझे मिले. दो माह ही हुए होंगे और तब भी मैं दिल्ली में ही था, मैंने उनसे स्नेहनगर में ही उस आत्मीय भेंट के समय कहा था कि मैं आपके समग्र कृतित्व पर जल्दी ही लिखूंगा. मैंने लिख भी लिया लेकिन अब एक नई समस्या है कि मैं, है की जगह थे कैसे लिखूं? जिसने बीते कल को अभी अभी में बदल कर आंखों के सामने प्रत्यक्ष कर दिया हो उसे कैसे कहूं कि वह बीत कर अब अतीत हो गया है.
उनकी स्मृतियों की जीवन्त देह को प्रणाम.