April 29, 2025
साहित्य समाचार

Pahalgam को लेकर वामा साहित्य मंच ने जताया आक्रोश

-माथे के कुमकुम का रक्षण हर क्षण चाहिए : वामा साहित्य मंच
पहलगाम में हुई आतंकी घटना पर वामा साहित्य मंच ने की ऑनलाइन गोष्ठी

पहलगाम में हुए नृशंस हत्याकांड से सम्पूर्ण देश स्तब्ध है. वामा साहित्य मंच ने ऑनलाइन गोष्ठी के माध्यम से राष्ट्र और समाज के प्रति नैतिक जिम्मेदारी निभाते हुए संवेदना व्यक्त की. सदस्यों ने एकजुट होकर देश के हालात पर दुख,आक्रोश व चिंता जाहिर की. अध्यक्ष ज्योति जैन और सचिव स्मृति आदित्य के संदेश के बाद डॉ.प्रतिभा जैन, वैजयंती दाते,डॉ.शोभा प्रजापति, डॉ. स्नेहलता श्रीवास्तव, चेतना भाटी, अमर चढ्ढा, चंद्रकला जैन, वाणी जोशी, डॉ. दीपा मनीष व्यास,डॉ. पूर्णिमा भारद्वाज,अनुपमा गुप्ता, उषा गुप्ता, रुपाली पाटनी, आशा मुंशी, अवंति श्रीवास्तव, कविता अर्गल, सरला मेहता, वंदना पुणताम्बेकर,सुशीला डांगी, प्रीति दुबे ने प्रतिभागिता की और अपनी प्रतिक्रिया दीं. तकनीकी पक्ष का दायित्व सहसचिव डॉ.अंजना चक्रपाणि मिश्र ने निभाया. अंत में दो मिनट का मौन रखकर सदस्यों ने श्रद्धांजलि अर्पित की. वामा साहित्य मंच के माध्यम से सभी राजनीतिक दलों, साहित्यकारों, पत्रकारों, विचारकों और नेताओं से आह्वान किया गया कि वे व्यक्तिगत सोच से ऊपर उठकर देश को सर्वोपरि रखें,कोई भी वक्तव्य ऐसा ना दे जिससे देश का मनोबल कम हो या सेना की शक्ति में कमी आए.

अध्यक्ष ज्योति जैन ने कहा कि पहलगाम में हुए नीच व कायराना कृत्य की जितनी भर्त्सना की जाए कम है.हम साहित्यकार भले ही शब्दों के साधक हैं, लेकिन अब वक्त आ गया है कि सिर्फ शब्दों से काम नहीं होगा. शस्त्र उठाने होंगे और शत्रु का नाश करना होगा और यही सही वक्त है कि आतंकवाद का समूल सफाया किया जाए.

सचिव स्मृति आदित्य ने कहा कि यह अत्यंत शर्मनाक, खौफनाक और दर्दनाक है. हम सभी निशब्द और स्तब्ध हैं.लेकिन मन में आक्रोश भी है. यह समय देश के साथ खड़े होने का है.

डॉ.अंजना चक्रपाणि मिश्र : मानवता रो-रोकर पुकारती बेकसूरों के,उन निर्मम हत्यारों,आतताइयों का संहार माँगती है कसम लहू के बलिदान का,हे देश के आलाओं को गुहारती,शीश के बदले शीश ही माँगती…शीश ही माँगती ..

डॉ. प्रतिभा जैन : मान सम्मान की हद होती है, लक्ष्मण रेखा की हद होती है,संवेदना की हद होती है,भाईचारे की भी हद होती है हर हद की एक हद होती है और जब यह हद पार होती है तब मर्यादा पुरुषोत्तम का तीर छूटता ही है और रावण ही नहीं राक्षस के पूरे वंश का नाश होता ही है.

अमर खनूजा चड्ढा : देश के सत्ताधारियों, प्रहरियों से आशा है कि अब विवेक व न्याय के लिए वे भीतरी और बाहरी आँखों से काम करे. ज्ञान,अनुशासन और कानून सबके लिए एक समान हो.

शारदा मंडलोई : अब शस्त्र को शस्त्र से कसना है. अन्याय को धर्मयुद्ध से मिटाना है. आज जन जन का पीड़ा,आक्रोश से भरा ,भीगा मन! हंसती खेलती गुम हुई आत्माओं का पुण्य स्मरण,नमन…

डॉ. शोभा ओम प्रजापति : आततायी चाहे कितना भी दम भरे वह हारता ही रहेगा,है अटल सत्य कि कश्मीर भारत का स्वर्ग था,है और रहेगा.

वैजयंती दाते : मां भारती पुकारती,अति हुई,अब रण चाहिए, केसर-क्यारी रक्तरंजित ना हो, बस यही प्रण चाहिए, कोई बेटी कलेवर संग ना लौटे माथे के कुमकुम का रक्षण हर क्षण चाहिए.

वंदना पुणतांबेकर : वक्त आ गया है कि हम अपने आप को छोटे-छोटे धर्मो में विभाजित ना करें और सब एकजुट होकर सिर्फ भारतीय बनें. हम एक होकर अपने आप को मजबूत बनाएं.

अनुपमा गुप्ता : जिन वादियों में खुशी के फूल खिलते है वहां चीत्कार सुनाई दी,कत्ल और खून जैसे कि हो फूल.. मन बहुत व्यथित है लेकिन समाधान जरूरी है, दोबारा ना बने यह कहानी, अपने घर की हर दिवाल हमें मजबूत है बनानी, कोई सुराख ना रह पाए किसी दरार से कोई झांक न पाए…

चेतना भाटी : इस दुख के पहाड़ के सामने तो हिमालय भी बौना है.ईश्वर उन्हें सहने की शक्ति प्रदान करें और आतंकवादियों को ऐसा करारा सबक सिखाया जाए कि आइंदा से कभी कोई ऐसा सोच भी ना सके, उनकी रूह कांप जाए.

स्नेहलता श्रीवास्तव : पहलगाम में घटित नृशंस धार्मिक आतंकी घटना की हम घोर निंदा करते हैं भर्त्सना करते हैं. निर्दोष मृतकों के परिवार के प्रति गहन संवेदना व्यक्त करते हैं.

अनीता जोशी : जागो फिर एकबार सदियां बीत गई जुल्म सहते सहते इतिहास वही क्या फिर दोहराओगे,आने वाली पीढ़ी को तुम कैसा भारत दे जाओगे? वादियों में गूंजती दर्दनाक चीखों पर कब तक तुम शोक मनाओगे?

पदमा राजेन्द्र :कुछ डरा, कुछ सहमा, जन्नत में दरख़्त चिनार का, छांव में उसके पड़ा हुआ है टुकड़ा एक परिवार का
लिद्दर के तट पर बैठी मां अपने आंसू पोछ रही स्वर्ग में अपना बेटा खोकर लौट कैसे सोच रही स्वर्ग देखने के सब सपने
स्वर्ग में ही ध्वस्त हो गए…

डॉ दीपा मनीष व्यास : मणिपुर, बंगाल, मुर्शिदाबाद अब पहलगाम!!!! आखिर कब तक अपने ही देश में हम यूं डरकर जीते रहेंगे ? हम बॉर्डर पर नहीं जा सकते कोई बात नहीं पर देश की आंतरिक व्यवस्था को मजबूत तो बना ही सकते हैं. अपनी लेखनी से जागरूक कर नई चेतना भर सकते हैं सशक्त नेतृत्व का साथ दे राष्ट्र प्रेम दिखाने का अवसर आ गया है. लेकिन हम भाषा की मर्यादा न छोड़ेंगे .

कविता अर्गल : हम साहित्यकारों के अस्त्र-शस्त्र दोनों ही कलम है समय आ गया है कि साहित्यकार एकजुट होकर कलम के माध्यम से ऐसी वारदातों का विरोध करें.

अवन्ति श्रीवास्तव : जब मैं छोटी थी तब हमारे पड़ोस में करीम अंकल और अहमद अंकल रहते थे.. वैसे मासूम लोग अब कहाँ चले गए? इस्लाम का यह रूप कब और कैसे बदल गया? आज की और आने वाली जनरेशन को प्यार का सबक क्यों नहीं सीखा सकें पिछली पीढ़ी के लोग?

प्रीति दुबे: इस बात को हमें समझने की अत्यंत आवश्यकता है-कि बंटेंगे तो कटेंगे…देशवासियों से निवेदन है कि बंटे नहीं, कटें नहीं वरन् जुड़कर दुश्मन को ही बाँटें और काटें और अपने राष्ट्रधर्म की रक्षा करें .

चंद्रकला जैन :निर्दोष पर्यटकों की धर्म के नाम पर निर्मम हत्या से मन दु:खी और क्रोधित भी. आतंकवादियों को बख्शा नहीं जाना चाहिए तथा इस कृत्य में उनका साथ देने वाले स्थानीय लोगों को कठोर दण्ड देना चाहिए. पर्यटन कश्मीर की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है अत: उसे टूटने नहीं देना है.

वाणी अमित जोशी : हद-ए-दरिंदगी, यह क़त्ल था मासूमों का,
मानवता को रौंदा है, कीमत तो चुकाना होगा.
तुम मेघ पुष्प को तरसो, अब सांसों की है बारी,
चाहे सजदे कितने कर लो, सर तन से हटाना होगा..