किताबें- मुहब्बत की दुनिया मगर किताबें ही बसाती हैं…
-डॉ. सहबा जाफरी
पुस्तक दिवस पर
ज़मी जब भी किताबों की फसल से रीत जाती है
बंदूकों ओ बारूदों की नस्लें जीत जाती हैं
शमशीरों ओ तीरों से तो जंगे हैं बहुत मुमकिन
मुहब्बत की मगर दुनिया किताबें ही बसाती हैं
भला काग़ज़ की खुशबू और हरफों की महक से भी
बड़ी खुशबू है कोई जो दुनिया भर को भाती है !
आहिस्ता पलटना तुम बयाज़े दर्दे दिल जाना!
तुम्हे मोबाइल पे बस अंगुली चलाना ही तो आती है
नई नस्लों को दुनिया फतह करना तकनीकी सिखाती है
मगर तालीम ए फतह ए दिल किताबों से ही आती है