कविता : हां सच है, मैं अभी जिंदा हूँ
– स्नेहा काले
-हां सच है मैं अभी जिंदा हूँ ना
आप सबके सामने आज लिखी अक्षरों में
विश्वास करो ऑंखों से देखकर
कभी मुलाकात से फोन की बातों से
मैं अभी जिंदा हूँ ना
भूली नहीं मैं 11 तारीख का सखियों का मेल मिलाप
अरे
कहना तो भूल गई दस तारीख के रात की बात
शहर जाना पहचाना
वायुयान का आधी रात को पंहुचना
अचानक युवा दोस्तों का सहेलियों से मिलना
A.J.का मिलना B.B.का हलका सा मुस्कराना
फिर मुझे दादी बनाना और प्यार देना
मैंने मजाक से कहना दादी मत कहो ना
उनका ओके ऑंटी कहना
घर के बड़े बुजुर्ग सा संभालना
पागनीस पागा घर तक छोडना
चाबी ले ताला खोल बिठाकर पानी पिलाना
अच्छा ऑंटी कहकर चरण स्पर्श करना
और कहना ऑंटी ये फोन नंबर रखो
चौबीस घंटे में कभी भी फोन करना
खुद को अकेला मत समझना
हम आपके नाती पोते है
मैंने भी कहां कुछ खाने की फरमाईश करो
तो हक्क से आ जाना घर
मेरा दिन बन जाएगा
और वो निस्वार्थ मोहक हंसी की खिलखिलाहट का
दिल को खुश कर जाना
ये घटना का सुवर्ण याद बन जाना
एक और दिन जीने का सहारा बन जाना
याद है ना अभी तक मन की तिजोरी में
आज भी इतने संस्कारी बच्चों का साथ मिलना
तकदीर की बात है ना
तभी मेरा आनंद से दो ऑंसू टपकाना याद है
क्योंकि स्नेहा का स्नेह अभी जिंदा है तन और मन से
स्वरचित : स्नेहा काले, पागनीस पागा इंदौर