सहबा ज़ाफरी की कविता : औरत हो तुम, पहले जी लो, बाद में मर लेना
सहबा ज़ाफरी
-खुश न हो तो, खुश रहने का नाटक कर लेना
औरत हो तुम, जीते रह लो, बाद में मर लेना
तुम से मुमकिन है रंगीनी, तुम ही रौनक हो
जीवन अमृत देती रहना, सब विष हर लेना
कहीं राधा की सखी तुम्ही हो, जनक दुलारी हो
सीता, सलमा, हीर, ज़ुलेखा मरयम प्यारी हो
तुम्ही जसोदा, हसना तुम हो, यक़ी तो कर लेना
औरत हो तुम, पहले जी लो, बाद में मर लेना
पैर में तेरे नीलगगन हैँ, माथे चंदा हैँ
चुनरी में झालर के झल से सूरज मंदा है
ज़ुल्फ झटक कर, भरे जून को, सावन कर लेना
औरत हो तुम, पहले जीलो, बाद में मर लेना
घोर अँधेरे, तम के घेरे अगर डराते हों
क़दम तुम्हारे प्यारे प्यारे, गर घबराते हों
याद के दीपक बात के जुगनू, ख़ुद से जलाकर तुम
इनको प्यारी! चुनर तुम्हारी, ख़ुद ही कर लेना
औरत हो तुम, जी लो पहले, बाद में मर लेना