यमुना दर्पण, छवि मनमोहन! रुप पे तेरे वारी है
-लोरी अली
तेरी एक मुस्कान में लल्ला, मात यशोदा वारी है
सारा गोकुल वारी है, ग्वाले, गैया वारी है
नटखट तेरी खटपट पर, सारा निज़ामे बिरज टिका
आम के झुरमुट वारी हैँ और कदम्ब की छैया वारी है
बंसी तेरे अधर रखी तो मिसरी घुल गई तानों में
जिस रस्ते से दिल में आया
तुझ पर वो दिल वारी है
रे मनमोहन, सारा गोधन, बांट सी जोहता जाग रहा
आजा राधा जाग रही है, तुझ पर नींद भी वारी है
देख कमाल कि सारे तमाल भी
अपना रूप सजाये है
यमुना दर्पण, छवि मनमोहन! रूप पे तेरे वारी है
देख जरा इस मन को छलिया
कैसी खिली तेरी प्रीत की कलियाँ!!
मन का गुलशन वारी है
और सारा तन मन वारी है…
