Book Review कुछ चेहरे कुछ यादें, रेखाचित्र ऐसे कि बोलती तस्वीरें ही लगती हैं
– रूपाली पाटनी
कल्पनाओं में उन चरित्रों को उकेर देते हैं ये रेखाचित्र जैसे आप स्वयं इनसे मिल रहे हों
ज्योति जी जैन का रेखाचित्र संग्रह “कुछ चेहरे, कुछ यादें” पढ़ा. हाल के वर्षों में इस विधा में पढ़ी यह पहली ही पुस्तक रही. इसे पढ़ना कमाल का अनुभव रहा. बचपन में होता था ना! अपनी फेवरेट टीचर को पढ़ाते हुए देख बाल मन कल्पना करता था कि मैं भी इनके जैसा ही पढ़ाऊंगी; यह किताब पढ़ते-पढ़ते मुझमें मौजूद छुटकू लेखक ने भी यही कल्पना की कि कभी मैं भी ऐसे ही रेखाचित्र लिखूंगी. ये रेखाचित्र हैं ही इतने रोचक और सुभीते. जी हां, ज्योति जी के रेखाचित्र पढ़ते हैं तो यूँ लगता है, मानो कोई चलचित्र देख रहे हों. जितने रोचक और सहज अंदाज में, जिस बारीकी के साथ उन्होंने चेतन- अचेतन चरित्रों का चित्रण किया है; उनके रहन-सहन, मुख- मुद्राओं, भाव- भंगिमाओं, चारित्रिक विशेषताओं, क्रिया-कलाप का ब्योरा दिया है, वे हमारी कल्पना में जीवंत हो उठते हैं. इन रेखाचित्रों की जिस बात ने सबसे ज्यादा आकर्षित किया, वह है इनके कहन का अंदाज. ऐसा लगता है; जैसा सोचा, जस-का-तस उतार दिया. बिना बनाव- श्रृंगार की नैसर्गिक सुंदरता जिस तरह मन को भाती है, यहांँ अभिव्यक्ति की सादगी भी हमें कुछ इसी तरह लुभाती है.
भाषा सहज और प्रवाहमयी है. भारी शब्दों के बोझ से प्रवाह कहीं अवरुद्ध नहीं होता. बीच-बीच में आने वाले देशज , घरेलू और मालवी के शब्द, पढ़ने के आनंद को द्विगुणित कर देते हैं. ये रेखाचित्र घटनाओं, लोगों को, अपने आसपास की जिंदगी को देखने की एक नई नज़र देते हैं. इनसे हम बहुत कुछ सीखते हैं. जैसे “काल करे सो आज कर” हमें अपनी भूल स्वीकार करने की सीख तो देता ही है, इसके आगे प्रायश्चित करने की प्रेरणा भी देता है. अपनी माता जी के व्यक्तित्व की जो बानगी ज्योति जी की कलम ने हम तक पहुंचाई है, उसमें उनकी सेवाभाविता ने दिल में भीतर तक छाप छोड़ी. ‘अपने लिए जीये तो क्या जीये’ की फिलॉसफी रखने वालीं माताजी ने अपने विचारों और मूल्यों से स्वयं तो सम्मान व स्नेह पाया ही ,उनके जीवन मूल्यों ने उनके बच्चों के जीवन को भी सुंदर कर दिया. पशु-पक्षियों के प्रति लेखिका बड़ा संवेदनशील मन रखती हैं. ‘—– तालुड़ी’, ‘मां तो मां होती है’, इसका उदाहरण हैं.’—– तालुड़ी’ में लेखिका ने तालुड़ी के प्रति अपनी दुर्भावना की बड़ी सहज और सच्ची स्वीकारोक्ति की है. पर तालुड़ी के चले जाने पर जिस तरह वे रुआंसी होती हैं उससे हमें एहसास होता है कि सच! बाल बुद्धि नादान तो हो सकती है, पर दुष्ट नहीं. अभिव्यक्ति की इस मासूमियत पर हम रीझ जाते हैं. ज्योति जी की स्मरण शक्ति की भी तारीफ करना होगी. उनके बचपन की बहुत- सी यादें आज भी उनकी स्मृति मंजूषा में जस- की- तस रखी हैं. कली वाला, शिवना नदी और काकी साब पर आधारित रेखाचित्र इस बात के गवाह हैं. ये रेखाचित्र तो आजकल के बच्चों की पाठ्य पुस्तक में शामिल किये जाने चाहिए. आज से 30-40 वर्ष पूर्व के बच्चों की सोच और गतिविधियों को ये खूबसूरती से हम तक पहुंचाते हैं.यही नहीं, मध्यवर्गीय परिवारों के रहन-सहन, जीवन दर्शन, सोच को भी दिखाते हैं. महज 30- 40 वर्षों में यह लगभग नदारद हो गया है. ये रेखाचित्र एक तरह से उस समय के दस्तावेज हैं. ‘मरद है तो पीटेगा तो सही’, ‘बद्दुआ में ध्वनित होती दुआ’ में लेखिका आत्मविश्वासी होने की सीख देती हैं और बेवजह संकोच छोड़ने को प्रेरित करती हैं. संजापर्व से मैं स्वयं भी अधिक परिचित नहीं थी, पर ज्योति जी का यह रेखाचित्र पढ़ ऐसा लगा मानों मैं भी उस संजा पर्व में ज्योति जी की सहेलियों में से एक बन गई हूं. बिना कचरे वाले गोबर का किस्सा तो बहुत ही मजेदार लगा. ‘देवत्व से मनुजता की यात्रा’, ‘कमजोर हाथों से—-,’—– ताम्रकर सर’ और ‘—– मालवी दादा नरहरि पटेल’ में लेखिका ने अपनी जिंदगी में अपने वरिष्ठ, अपने गुरुजन के योगदान को याद किया है. और उन्हें अपनी आदरांजलि दी है. ‘काश फोन रिसीव कर लिया होता’ का काश शायद अधिकांश लोगों के मन में होता है. लेखिका ने इस “काश” वाले तीन-चार अनुभव हमसे साझा किये. जहांँ सबक लेने की गुंजाइश थी, वहां सबक लिया, तो कभी प्रायश्चित की राह ली; पर इस काश का कोई विपरीत असर जिंदगी पर ना आए, इसे लेकर सजग रहीं .यही यथेष्ट भी है. जीवन के अंत तक जिसका साथ हम चाहते हैं, पुस्तक का अंतिम चित्र उस जीवनसाथी को समर्पित हो; यह स्वाभाविक भी है और गरिमा पूर्ण भी. एक स्वस्थ, समृद्ध रिश्ते की मिठास को महसूसते हुए पुस्तक का पठन समाप्त होना; बढ़िया सुस्वादु भोजन के उपरांत परोसी गई मिठाई-सा आनंद देता है. रेखाचित्र के पात्रों का चयन करते हुए उन्होंने इस बात का ध्यान रखा या यह अनायास हुआ पता नहीं, पर हर किरदार अपने आप में बहुत अनूठा और अलहदा है. ज्योति जी के रेखाचित्र इसलिए भी बहुत प्रभावी बन पड़े हैं कि उसमें बातों को, घटनाओं को, स्मृतियों को जस- का- तस बता दिया गया है. अपने वर्णन से वे अच्छे- बुरे, सही- गलत का निर्णय नहीं देतीं. हर रेखाचित्र में लेखिका स्वयं भी मौजूद हैं, पर अपने विचारों ,अपनी क्रिया- प्रतिक्रिया को बताने में वे बहुत ईमानदार लगीं. कहीं कोई दुराव- छिपाव नहीं है.आसान नहीं यह साफगोई, पर ज्योति जी ने सफलतापूर्वक ऐसा किया है. यूं तो “खुली किताब की तरह होना” कहावत है. पर यहां इसका शाब्दिक अर्थ लिया जाए, तो भी सही बैठेगा. इस किताब को खोलेंगे, तो आप ज्योति जी को जान लेंगे. 102 पृष्ठों में 22 रेखाचित्रों को समेटे ज्योति जी के अनुभवों का यह खजाना, किसी- न- किसी स्तर पर हर पाठक को समृद्ध करेगा.
-जानें लेखिका ज्योति जैन को इन तथ्यों के साथ
जन्म – 21/08/1964 (मंदसौर)
शिक्षा – स्नातक (जी.डी.सी. इन्दौर)
रुचि – अच्छा साहित्य पढ़ने में रुचि, विद्यार्थी जीवन में साहित्यिक प्रतियोगिताओं में विजेता,कला मे रुचि, एन.सी.सी. एयरविंग की केडेट, बेडमिंटन खिलाड़ी।
प्रकाशन ( तीन )लघुकथा संग्रह…जलतरंग. बिजूका,निन्यानवे का फेर
( तीन)कहानी संग्रह..भोरवेला,सेतु व अन्य कहानियां व नजरबट्टू
( चार )कविता संग्रह..मेरे हिस्से का आकाश ,माँ-बेटी , जेब मे भरकर सपने सारे व चुस्कियां।
दो उपन्यास, एक-एक आलेख संग्रह, यात्रा वृत्त, रेखाचित्र व एक मालवी लघुकथा संग्रह *गोदभराई
( दो पुस्तकें प्रकाशाधीन)
सहित–अहा ज़िन्दगी, फेमिना, विभोम स्वर,समावर्तन, कथाबिंब,रविवार.. आदि पत्रिकाओं व समाचार पत्रों मे सतत् प्रकाशित।
अनुवाद गुजराती, मराठी, पंजाबी व तेलुगु मे कहानी व लघुकथा अनुवादित…
लघुकथा संग्रह- मराठी, बांग्ला व अंग्रेजी मे व कहानी संग्रह सेतु व कविता संग्रह मां-बेटी मराठी मे अनुवादित..।
विशेष *आकाशवाणी से वार्ताओं, रचनाओं का निरंतर प्रसारण..
*लघुकथाकार श्रंखला”पड़ाव और पड़ताल” मे लघुकथाएं शामिल.
- विश्व हिंदी लघुकथाकार कोष मे शामिल..।
*दो लघुकथाएं महाराष्ट्र स्टेट बोर्ड के कक्षा नौ के *पाठ्यक्रम मे शामिल..। - चार लघुकथाएं बी.ए.द्वितीय वर्ष के पाठ्यक्रम मे शामिल
*UGC द्वारा मुम्बई व पुणे मे आयोजित सेमिनार मे प्रपत्र प्रस्तुत..।
शोध पूना कॉलेज हिन्दी विभागध्यक्ष द्वारा लघुकथाओं पर शोधपत्र..।
2018 में पूना कॉलेज में ‘‘हिन्दी लघुकथा के विविध आयाम’’ (अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी) में वक्ता। - मारीशस की विद्यार्थी द्वारा कहानी संग्रह नजरबट्टू पर शोध तैयार।
- महाराष्ट्र मे विद्यार्थियों द्वारा ज्योति जैन के साहित्य मे जीवन मूल्य व ज्योति जैन के समग्र साहित्य का अनुशीलन विषय पर पी.एच डी..।
पुरस्कार :- - 2007 में हिन्दी दिवस पर हिन्दी लेखन हेतु स्टेट बैंक ऑफ इंडिया द्वारा सम्मान।
- हिमाक्षरा नारी गौरव सम्मान (वर्धा) 2013 शब्द प्रवाह (उज्जैन) द्वारा अ.भा. शब्द विभूषण साहित्य सम्मान-2014।
- 2016-17 प्रेमचन्द्र सृजनपीठ (म.प्र. संस्कृति परिषद्-संस्कृति विभाग भोपाल) द्वारा कर्मभूमि सम्मान।
- 2019 में हिन्दी लेखिका संघ म.प्र. द्वारा ‘‘श्रीमती अंजना मगरे स्मृति सम्मान’’।
- लघुकथा शोध केंद्र समिति भोपाल द्वारा श्री पारस दासोत स्मृति लघुकथा कृति सम्मान
- भारतीय वांग्यम पीठ कोलकाता द्वारा- ‘‘गुरुदेव रविन्द्रनाथ ठाकुर सारस्वत सम्मान’’।
- ढीगंरा फाउण्डेशन अमेरिका व शिवना प्रकाशन द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय शिवना कृति सम्मान 2019
- अंतरराष्ट्रीय हिंदी साहित्य प्रवाह-फिलाडेल्फिया (अमेरिका) द्वारा *साहित्य गौरव सम्मान 2023
- सलिला साहित्य रत्न सम्मान (राजस्थान)
- मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी द्वारा शब्द साधिका सम्मान (2021)
*हिन्दी सेवी सम्मान-(2022) - ऑल इंडिया शाह बेहराम बग सोसायटी(मुम्बई) द्वारा भाषा सेवी सम्मान
- क्षितिज साहित्य भूषण सम्मान 2024
- मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी द्वारा अखिल भारतीय विष्णुकांत शास्त्री पुरस्कार।
- -सहित अनेक अखिल भारतीय व राज्य स्तरीय पुरस्कार
अन्य:-पारम्परिक माँडना कलाकार,*वामा साहित्य मंच की वर्तमान अध्यक्ष प्रतिष्ठित साहित्य संगठनों,व भारत विकास परिषद की सदस्य… समाज के पिछड़े वर्ग के लिए कार्य…
सम्प्रति वर्तमान मे डिज़ाइन, मीडिया व मैनेजमेंट कॉलेज मे अतिथि व्याख्याता..।
निवास – 1432/24, नन्दानगर, इन्दौर-452011 (म.प्र.)
मोबाइल.: 9300318182, e-mail : jyotijain218@gmail.com