Book Review उम्मीदों की कविताएं समेटे ‘चींटियां झूठ नहीं बोलतीं’
आभा निवसरकर का काव्य संग्रह- चींटियां झूठ नहीं बोलती
बोधि प्रकाशन
कीमत : 199 रुपए
उदास खिड़की से झांकती उम्मीद की कविताएं
स्मृति आदित्य
संवेदनशील कवयित्री आभा निवसरकर के ताजा और पहले कविता संग्रह का नाम है-‘चींटियां झूठ नहीं बोलती’… 128 पृष्ठ के इस संग्रह में सजी नाजुक और नुकीली कविताएं पाठक मन को बांध लेने में पूर्ण समर्थ हैं. इन कविताओं से गुजरते हुए महसूस होता है कि उनकी किताब एक उदास सी खिड़की है जिसमें से खुशी, सपने और उम्मीद की आंखें पनीली होकर आकुल मन से झांक रही हैं दुनिया,समाज, रिश्ते और अपने आप को देखने के लिए…. किताब के पन्ने मानों खिड़की के पर्दे हैं, फरफराते हैं,लहराते हैं और सुंदर भावों की मीठी बयार आप पर तारी हो जाती है….
आभा की भाषा में प्रबल सम्मोहन है. कवयित्री अपनी अधिकतर कविताओं में कभी शब्दिक तेज से तो कभी तीखे तेवर से, कभी महकती ताजगी से तो कभी सीधे तर्कों से चकित करती हैं…
‘जब भी गुस्सा आता है
मुस्कुराती हूँ
जब भी रोना आता है गाती हूँ
जब कभी सब फेंक देने का मन होता है
कपड़े इस्त्री कर के रखती हूँ या घर साफ करती हूँ…
इस प्यारी सी कविता से संग्रह आरंभ होता है और अंत भी उतनी ही भावपूर्ण कविता से जिसमें वे लिखती हैं-एक मोनालिसा दिखती है मुझे तुम्हारे चेहरे में,होठों में मुस्कान, आंखों में नमी…’
कई भाषाओं की जानकार आभा के पास गहरी अनुभूति को कोमलता से अभिव्यक्त करने का सलीका है, शिल्प है और सबसे खास कि परिवेश से रंग और रस अंजुरी में भरने का हुनर वे जानती हैं. उनकी कविताओं को पढ़ते हुए हम भाव रंगों से सराबोर होते हैं और रस मन को भीगोकर आंखों की कोर से छलक जाते हैं…
‘एक नहीं लिखी जा रही कविता में
वो सब है जो मैं लिखना चाहती हूँ…
संग्रह की कविताएं मन को बार बार बुलाती है एक बार में तृप्त होने के बाद भी…यह उनकी कलम की सफलता कही जाएगी…कुछ कविताओं में छुपे कोमल किस्से इतने मारक और मोहक है कि ठहर कर उन्हें सुनने की मंशा जाग्रत होती है… उनके शब्दों की मिठास से झांकती दर्द की गहराई एक लकीर खींच देती है दिल पर….
वो जो बात अटकी है
तुम्हारे शर्ट की बटन में,
मेरे बालों में
वो जो बात अटकी है
सिलवटों में, नज़रों में ,
आईने के कोनों पर लगी बिंदी में
उसे आने दो न…
दृश्यों का इंद्रधनुषी प्रतिबिम्ब खींचने में कुशल उनकी ऐसी ही कई मासूम कविताएं हैं जो पाठक के मन के उस कोने को नम करने में सक्षम है जो अतीत की मंजूषा में रखा विस्मृत और शुष्क हो चुका है…
जैसा लिखता है वैसा नहीं है वो
ये भी नहीं पता कि कैसा नहीं है वो
लेखनी से झरती है मुहब्बत की स्याही
पर मुहब्बत ही कर ले वैसा नहीं है वो
धार इतनी कि लगते ही बहा दे खून
पर खून ही बहा दे ऐसा भी नहीं है वो….
कवयित्री प्रेम के रूप को जिस प्रभाव और प्रवाह से प्रस्तुत करती हैं वह पारदर्शी भी है और सुपुष्ट भी…
प्रेम इस संग्रह का सिर्फ एक अंश है उनकी लेखनी समाज, स्त्री, देश, रिश्ते, क्रांति, परंपरा, बचपन, मौसम, संगीत, नृत्य, विज्ञान और अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों को भी अभिस्पर्श करती है और सबसे अहम वे मन के भीतर तक उतरती हैं… मस्तिष्क की सूक्ष्म कोशिकाओं से गुजरती हैं… और किताब को रख देने के बाद बहुत देर तक ठहरती हैं…. ठहरी रहती हैं…
अपनी प्रतिनिधि कविता में वे कहती हैं
मौसम उम्मीद से है
चींटियां फिर मेहनत कर रही हैं
इन दिनों
काली, छोटी अपने से बड़ा बहुत कुछ उठाए
न जाने कहाँ से निकलती हैं कतारबद्ध
फिर घर पार करती हुई
किसी और दरार से गायब हो जाती हैं…
इसी कविता का अंतिम अंश है
किसानों तक खबर पहुंचा दो कि
चींटियां इन दिनों उम्मीद में है बारिश की
और किसानों के पास मौका है
बोने का
जीने का
खुशहाली का
कि मौसम उम्मीद से है
और मुझे उम्मीद है कि
चींटियां झूठ नहीं बोलती….
हिंदी,मराठी,अंग्रेजी, उर्दू,जर्मन,स्पैनिश भाषा की विदुषी आभा की यह पहली पुस्तक कई आकर्षक संभावनाओं को जन्म देती है कि मर्म को स्पर्श कर लेने वाली अभी और सहज-सरल लेकिन सशक्त कविताएं इस लेखनी से झरना शेष है…