April 19, 2025
BlogWomen

क्या चाहती है एक स्त्री?


-औरतों को अपने लिए स्वयं ही सोचना है

रीमा दीवान चड्ढा, स्वतंत्र पत्रकार, प्रकाशक,सृजनबिम्ब

– विश्व पुस्तक मेले 23 में सहभागिता के लिए दिल्ली जाना और वहां से लखनऊ, चंडीगढ़, पटना और विराट नगर (नेपाल) तक की यात्रा में बहुत सुख मिला था पर साथ ही लोगों की दबी छुपी प्रतिक्रिया भी सुनने को मिल रही थी।बहुत घूमती हो ! स्त्री होकर घर से बाहर निकलना मतलब घूमना है। घर वालों की सदैव यही चाहत रहती है कि स्त्री अपने घर में रहे और घर की जिम्मेदारी बखूबी निभाए.. स्त्री की अपनी चाहत, आकांक्षा, सपने ये कहां महत्व रखते हैं?

स्त्रियों को ही मेरा घूमना खटक रहा था और उनकी ही भाषा में मुझे ऐसी नज़र लगी कि साल भर घर में ही बंध कर रह गयी । सासू मां की तबियत काफी खराब रही और महीनों अस्पताल के चक्कर लगते रहे। पापा भी 91 वर्ष के हो रहे हैं। दो बुजुर्गों को सम्भालना आसान काम नहीं है जब वे डिमेंशिया और अलजाइमर से पीड़ित हों। नागपुर के आयोजनों में भी दस में कोई एक में जा पाती। अपने बच्चों की सुध भी नहीं ले सकी साल भर।

 अब कुछ स्थिर हुईं मम्मी तो सारी व्यवस्था कर भोपाल और दिल्ली 5 दिवसीय पूर्ण रूप से मेल मिलाप का ट्रिप बना लिया मैंने। घर में बंधे रहना मुझे पिंजरे में कैद की सी अनुभूति देता है। बहुत कुशलता से घर के कामों को चुटकियों में निपटा कर अन्य गतिविधियों में सक्रिय रहा जा सकता है पर जब बच्चे बहुत छोटे थे तब और आज मम्मी पापा बहुत बुजुर्ग हैं तो घर में जिम्मेदारी बहुत ज्यादा हो जाती है। केयर टेकर तो थी पर कम समय के लिए आती थी। 

नई केयर टेकर का इंतजाम कर उसे ट्रेन किया और सब मैनेज कर मैं निकल पड़ी अपनी उड़ान पर। घर में रहते एक प्रकार के अवसाद से घिर रही थी मैं। समय से पहले मैं चुक न जांऊ इसलिये ये कदम तो उठाना ही था। घर में पीछे कोई असुविधा नहीं हुई। फोन से बाई को हिदायत देती रही और काम सुचारु रूप से हो गया।

औरतों को अपने लिये स्वयं ही सोचना होता है। भारतीय व्यवस्था केवल जिम्मेदारी देना जानती है। बेटी, बहन, माँ, पत्नी और बहू … बस यही आपकी पहचान होती है और इसकी परिधि में घिरे रहने की आपकी नियति तय कर दी जाती है। आज़ादी के मायने उच्श्रृंखलता नहीं होती लेकिन एक स्त्री के लिए अपने लिए स्वयं निर्णय लेने की आज़ादी तो उसके अपने हाथ में होनी चाहिए। विशेष कर तब जब आपने अपनी एक पूरी उम्र घर परिवार को ईमानदारी से दे दी हो। अपना मान सम्मान, आत्मविश्वास, निर्णय लेने की आज़ादी और अपनी पसंद के काम करने की छूट हर स्त्री को मिलनी ही चाहिए। यदि न मिले तो उसे छीन कर लेनी होगी पर लेनी होगी…। जी लो जी भर के…