April 30, 2025
लाइफस्टाइल

UPSC में 551 वीं रैंक और कागल जंगल में भेड़ चराने वाले बीरदेव

जब रिजल्ट आया तब भी अपने काका की भेड़ लेकर जंगल में भी गए हुए थे बीरदेव

बीरदेव सिद्धप्पा धोने, कनार्टक के एक धनगर परिवार से आने वाले ऐसे युवा की कहानी है जिसके परिवार का जीवन छोटी सी जमीन के साथ नहीं चल पाता तो भेड़ बकरी चराने का काम भी करना पड़ता है. एक भाई सेना में नायक के पद तक पहुंच गया तो हालत थोड़े ठीक हुए लेकिन भेड़ चराने का काम बदस्तूर जारी रहा. दसवीं तक की पढ़ाई कोल्हापुर के कागल तालुका में ही जिला परिषद के सरकारी स्कूल में हुई. पुणे के कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग से पैसा पैसा बचाकर ग्रेजुएशन किया और फिर दिल्ली में भी संभावनाएं तलाशीं.

नौकरी भी मिली लेकिन इच्छा थी कि आईएएस बनूं तो तैयारी करने के लिए नौकरी छोड़ दी. जब 22 तारीख को यूपीएससी का रिजल्ट आया उस समय बीरदेव जंगल में अपने काका की भेड़ बकरियां चरा रहे थे. एक दोस्त ने जब खबर दी कि यूपीएससी में तेरी रैंक 551 बनी है तो भेड़ बकरियों को लेकर वापस घर पहुंचे. परिवार स्वागत की क्या तैयारी रखता? थोड़ी सी हल्दी लेकर मंगल तिलक किया गया, पूरे परिवार ने आशीष दिए और दोस्तों ने कुछ फूल लेकर पंखुड़ियां बीरदेव पर बरसाईं. बीरदेव कहते हैं कि मैं इस तरह काम करना चाहता हूं कि सबकी सुन सकूं, यदि हो सके तो किसी की मदद कर सकूं. भेड़ बकरियां चराने के लिए जंगल से जो नाता रहा है उसका भी वास्ता है और जिस तरह मेरे अपनों ने मुझ पर भरोसा किया उसका भी ध्यान रखना है. कागल के जंगलों से आईएएस की नौकरी तक के सफर की बीरदेव की कहानी उनके लिए भी है जो अक्सर सुनते हैं कि पढ़ोगे नहीं तो भेड़ बकरियां चराओगे अब इसमें जोड़ा जा सकता है कि यदि भ़ेड बकरी चराते हुए भी पढ़ाई में ध्यान लगाया तो यूपीएससी में बेहतरीन रैंक भी ला पाओगे.