July 31, 2025
लाइफस्टाइल

Obesity के और भी नए कारण आ रहे हैं सामने

प्रदूषण और प्लास्टिक की मौजूदगी भी कर रही है शरीर को प्रभावित

विश्व की जो एक अरब आबादी मोटापे से जूझ रही है, उसमें हर उम्र वर्ग के लोग शामिल हैं. तीन दशकों में किशोरों में यह समस्या चार गुना बढ़ी है. नीति आयोग और ‘राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे की रिपोर्ट इस मामले में एक जैसे तथ्य सामने रखती हैं कि भारत में 24 प्रतिशत महिलाएँ व 22 प्रतिशत पुरुष मोटे हो चुके या होने की राह पर हैं. फास्टफूड से लेकर संतुलित भोजन की कमी तक और मेहनत में कमी से लेकर मानसिक तनाव या नींद की कमी तक को मोटापे का कारण माना जाता है. इसमें एक ट्विस्ट तब आ गया जब डेनमार्क के वैज्ञानिकों ने बताया कि वायुमण्डल के कॉर्बन कण मानव मस्तिष्क के ‘हार्मोन ओरक्सीजीन’ की कार्यक्षमता घटा देते हैं, नतीजा यह होता है कि भूख अस्वाभाविक तौर पर महसूस होती है और ज्यादा भूख का अहसास होता है. एक अन्य शोध ने भी इस बात को आगे बढ़ाया कि कॉर्बन हार्मोन उत्सर्जन को सीधे प्रभावित करता है. कार्बन प्रदूषित क्षेत्रों में हार्मोन लैप्टिन की दर 27 प्रतिशत ज्यादा देखी गई है.

यह वह चीज है जो हमारे दिमाग को भूख लगने का अहसास कराता है. कॉर्बन के चलते भूख की सही स्थिति यह नहीं दे पाता तो ज्यादा भूख का अहसास हमें ज्यादा खाने पर मजबूर करता है, जिसकी परिणति मोटापे में होती है. वायु प्रदूषण के चलते दिमाग ही नहीं इंटेस्टाइन के वो जीवाणु जो खाना पचाते हैं, वे भी प्रभावित होते हैं. जिससे पाचन क्रिया भी अस्थिर होती है और फैट ज्यादा जमा होने लगता है. यह भी देखा गया है कि वाहनों से निकली नाइट्रोजन का असर भी आंतों के जीवाणुओं को प्रभावित करती है. एक अन्य शोध ने मोटापे में सोडियम की भूमिका को भी सामने रखा है कि कैसे ज्यादा सोडियम लेना मोटापा दस गुना तक बढ़ाता है. महिलाओं में मोटापे के लिए ‘डीडीटी’ जैसे कीटनाशक भी जिम्मेदार माने गए हैं, वहीं मोटापे में प्लास्टिक की भूमिका पर भी बात तो चल ही रही है. मोटापा जिस तेजी से बढ़ रहा है उसी तेजी से इस पर अध्ययन भी बढ़े हैं और एक आंकड़ा यह भी दिया गया है कि यदि सभी मोटे लोग 10 किलो वजन कम करने का प्रण्ण ले लें तो हर साल लगभग पचास मीट्रिक टन कार्बन उत्सर्जन कम होगा.