Natraj Shiv और सबसे बड़ी प्रयोगशाला का क्या है संंबंध
सबसे बड़े प्रयोग वाली साइट पर विशेष रुप से लगाई गई है नटराज प्रतिमा
स्विटजरलैंड के सर्न में लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर (एलएचसी) को दुनिया के सबसे बड़े प्रयोग के लिए स्थापित किया गया था और इस परिसरस में जो सबसे चौंकाने वाली चीज आपको नजर आएगी वह होगी बाहर ही लगी भगवान शिव की नटराज वाली विशाल प्रतिमा. अत्याधुनिक विज्ञान की अत्याधुनिक प्रयोगशाला में नटराज मूर्ति महज सौंदर्य के नाते नहीं लगाई गई है बल्कि शिव के ब्रह्मांडीय नृत्य और भौतिकी के मूलभूत सिद्धांतों के बीच गहरे संबंधों को समझकर लगाई गई है. 2004 में भारत सरकार ने भगवान शिव की मूर्ति इस प्रयोगशाला को उपहार में दी थी, जिसमें तांडव नृत्यरत शिव की प्राचीन प्रतिमा दोबारा साकार हो उठी है और यह प्रतिमा सृजन, संरक्षण और विनाश के चक्र को दर्शाती है यानी ब्रम्हा, विष्णु और देवाधिदेव महेश की अवधारणा को सामने रखती है. द ताओ ऑफ फिजिक्स में भौतिक विज्ञानी फ्रिट्जॉफ कैपरा ने इस मूर्ति और प्रयोगशाला के बीच संबंध बताते हुए कहा है कि आधुनिक भौतिकी के साथ इस प्रतिमा का जुड़ाव पदार्थ और ऊर्जा के लगातार गतिशील रहने और अवस्थाओं के बदलते रहने का प्रतिबिंब रखने से है. वे लिखते हैं कि मैंने बाह्य ऊर्जा के झरने नीचे आते देखे, जिसमें लयबद्ध स्पंदन के बीच कण बन भी रहे थे और नष्ट भी हो रहे थे यहीं मुझे लगा कि दरअसल हर पदार्थ में मौजूद यह स्पंदन ही शिव का नृत्य है.
शिव के नृत्य और क्वांटम यांत्रिकी के बीच जो समानताएं हैं वो आश्चर्य में डालती हैं. क्वांटम भौतिकी में, कण निरंतर परिवर्तनशील अवस्था में रहते हैं, प्रकट होते हैं और गायब हो जाते हैं, बिल्कुल उसी तरह जैसे शिव शाश्वत चक्र का प्रतीक हैं. यह प्रतिमा ब्रह्मांड के रहस्यों की स्वीकृति है. प्रसिद्ध मूर्तिकार ऑगस्टे रोडिन ने कांस्य की इस नटराज प्रतिमा को “मानव मस्तिष्क द्वारा निर्मित कला की अब तक की सबसे महान कृतियों में से एक बताया है क्योंकि लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर जैसे वृहद प्रयोगों के बावजूद जो रहस्य नहीं खुल सके वे इस लयबद्ध नृत्य में कहीं छुपे हैं. शिव के ब्रह्मांडीय नृत्य को तांडव कहा जाता है और वह विनिर्माण से लेकर विनाश तक को अपने आप में समेटे हुए है.