April 16, 2025
लाइफस्टाइल

Narmada Parikrama नर्मदे हर का उद्घोष और मां का साथ

-राजश्री दिघे

उत्तरवाहिनी परिक्रमा को पूरी नर्मदा परिक्रमा के बराबर ही माना जाता है

भारत और हिन्दू धर्म में हम नदियों को माँ कहते हैं और मानते भी हैं. किसी माँ के रक्त से सींचने जैसा ही नदी का अपने पानी से करोड़ों संतानों को सींचना ही होता है. धार्मिक मान्यताएं और शास्त्र पुराण नदी की आरधना और परिक्रमा का महिमा कहते हैं. ऐसी ही पावन नदी माँ नर्मदा. जिसके दर्शन मात्रा से पुण्य मिल जाते हैं. ऐसा भाग्य रहा की माँ के गर्भ में रहते हुए से ही माँ नर्मदा ने अपने जल से सींचा होगा. किन्तु उसी माँ नर्मदा की उत्तरवाहिनी परिक्रमा करने का योग अपने भाई स्वरूप मित्र के प्रोत्साहन से पिछले दिनों बन ही गया.
उत्तरवाहिनी नर्मदा परिक्रमा 22 किलोमीटर की पावन यात्रा जो नर्मदा के उत्तर दिशा में बहने वाले भाग में की जाती है. गुजरात राज्य के रामपुरा से लेकर तिलकवाड़ा तक… आध्यात्मिक और पौराणिक महत्व से इस परिक्रमा का फल 3000 किलोमीटर लम्बी नर्मदा परिक्रमा के बराबर माना जाता है. यानि आध्यात्मिक पुण्य की प्राप्ति और सामूहिक भक्ति और साधना से नकारात्मक ऊर्जा का शुद्धिकरण. प्राकृतिक सौंदर्य और पावन नदी का संग. माँ नर्मदा का ऐसा आशीर्वाद रहा कि इस दिव्य अनुभव को लेते हुए आत्मिक बल बना रहा.
आज के दैनंदिन जीवन में सतत 22 किलोमीटर की पैदल यात्रा हो सकेगी, कैसे शुरुआत होगी, अंत कहाँ होगा, कितना समय लगेगा, रास्ता कैसा होगा जैसे कई कई सवालों के जवाब सामूहिक ‘नर्मदे हर!’ के साथ विलीन हो गए. हर कोई अपनी धुन में, अपनी गति से माँ के दर्शन और परिक्रमा को आतुर. धुन एक ही, ध्येय एक ही. फिर कोई नंगे पैर कोई एक अपंग पैर… ऐसो को देखकर जो नमन निकले उनका कोई मेल नहीं. कितना प्रेम कितनी श्रद्धा माँ का एक चक्कर लगाने की. रास्ते में हर नियत अंतराल पर पानी, चाय, कोई नाश्ता लिए स्वयंसेवी खड़े हुए. ‘नर्मदे हर!’ का जाप और ‘खाकर जाना आप’ की गूंज. किसी शारीरिक कष्ट का त्वरित निवारण हो जाये ऐसे छोटे मेडिकल सेंटर्स. रास्ते में आते मंदिरों और आश्रमों में बैठने. आराम करने और स्वल्पाहार की व्यवस्था….. माँ नर्मदा ने इन भाविकों को पैदल चलते भाविकों को सहारा देने का काम दिया है.
चैत्र माह में सूर्य की उपासना, उसकी शक्ति और ऊर्जा का ध्यान होना चाहिए. तो इस परिक्रमा में नर्मदा माँ ने एक पंथ अनेक काज के चलते ये भी करवा लिया. अँधेरे में सूर्योदय से पहले प्रारम्भ की इस यात्रा में सूर्योदय की छटाओं का भी अनुभव किया और सूर्य की शक्ति और ऊर्जा का सेवन भी करते चले गए.
सारा कुछ मिल जुल कर किया लगा….. सबने एक दूसरे की मदद की और यात्रा पूर्ण हो गयी. 15 साल के बेटे ने अपेक्षाओं से कही अधिक आगे जाकर यात्रा आन्दित होकर पूर्ण की. कही एकाध बार जब.. अब और नहीं जैसा भाव जागा तो अपने को प्रेरित करने और धकेलने का काम भी उसने स्वयं ही किया. तब लगा ये पाने की होड़ नहीं परिसर की जोड़ है. नदी अपने बहाव में हमें सहने,बहने और आगे चलने का संकेत दे रही है. तो रुकना मना है…..
कभी कोई आगे निकला तो बाद में पीछे छूट गया और अंतिम पड़ाव में नांव के सफर में फिर साथ हो लिया. साथ चलने, साथ छूटने लेकिन साथ होने का गहरा आध्यात्म यहां भी हल्के से मन में झांक कर मुस्कुरा देता है.