Green House Effect में बढ़ती नाइट्रस ऑक्साइड भी चिंताजनक
दुनिया कॉर्बन डाइ ऑक्साइड को लेकर तो चिंता कर रही है लेकिन जिस तेजी से नाइट्रस ऑक्साइड का उत्सर्जन बढ़ रहा है वह भी कम चिंताजनक नहीं है. ग्लोबल वॉर्मिंग कम करने केलक्ष्यों पर यह पानी फेर रही है. बीते चार दशक में नाइट्रस ऑक्साइड में 40 फीसदी बढ़ी है. 15 देशों के 55 संगठनों की रिपोर्ट कहती है कि नाइट्रस ऑक्साइड के टॉप टेन उत्सर्जक में चीन, भारत और अमेरिका मुख्य हैं. इसे लाफिंग गैस भी कहते हैं और ग्रीन हाउस इफेक्ट में कार्बन डाई ऑक्साइड और मीथेन के बाद यह तीसरी प्रमुख कारक गैस है, जो इंसानी गतिविधियों से पैदा
होती है. जीवाश्म ईंधन, कूड़ा, गंदा पानी और बायोमास जलाने जैसी आम गतिविधियों से यह गैस बनती है. उर्वरकों व पशु अपशिष्ट से भी यह बनती है. इसकी बढ़ोतरी का मूल कारण नाइट्रोजन आधारित उर्वरक का बढ़ता उपयोग है. नाइट्रस आक्साइड कार्बन डाई-ऑक्साइड या मीथेन से भी
अधिक शक्तिशाली और घातक है. 2020 में कृषि उत्सर्जन 1980 में 48 लाख मैट्रिक टन से 67 फीसदी की वृद्धि के साथ 80 लाख मैट्रिक टन तक पहुंच गया. 2021 में यह सबसे ज्यादा वायुमंडल में गई. अतिरिक्त नाइट्रोजन के प्रयोग से मिट्टी, पानी और वायु प्रदूषण होता है और ओजोन परत भी नष्ट होती है. 2022 में नाइट्रस आक्साइड की वायुमंडलीय सांद्रता 336 भाग प्रति करोड़ तक पहुंच गई, जो पूर्व-औद्योगिक स्तरों की तुलना में 25 फीसदी की वृद्धि है. 1980 में दुनिया के किसानों ने 600 लाख मैट्रिक टन वाणिज्यिक नाइट्रोजन उर्वरकों का इस्तेमाल किया. 2020 तक इस क्षेत्र ने 1070 लाख मैट्रिक टन का इस्तेमाल किया. उसी वर्ष पशु खाद ने 1010 लाख मैट्रिक टन का योगदान दिया, जो 2020 के संयुक्त उपयोग 2080 लाख मैट्रिक टन के बराबर है.इस बारे में बहुत कम कोशिशें हो रही हैं जबकि नाइट्रस ऑक्साइड कार्बन डाई ऑक्साइड से 300 गुना ज्यादा गर्म करती है और लंबे समय तक रहती है. कुल ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का 6.4 फीसदी नाइट्रस ऑक्साइड है जो लगातार बढ़ रहा है.