April 16, 2025
लाइफस्टाइल

Gold Prices कुछ महीनों में 130000 प्रति दस ग्राम होगी-गोल्डमैन

टैरिफ वार अकेली वजह नहीं है बल्कि और भी वजहें शामिल हैं कीमतें तेजी से बढ़ने में

सोने कीमतों ने जितना उछाल पिछले कुछ समय में लिया है उससे भी ज्यादा उछाल अभी आगे देखे जाने की संभावना बनी हुई है. एक्सपर्ट्स मान रहे हैं कि सोना इसी साल एक लाख तीस हजार रुपए प्रति दस ग्राम तक का भाव देख लेगा. यानी इंटरनेशनल मार्केट में 4,500 डॉलर प्रति औंस तक ये भाव पहुंच जाएं तो अचरज नहीं होना चाहिए. हालांकि इन प्रोजेक्शन के साथ यह बात भी जोड़ी गई है कि मंदी की छायया इतनी गहरी नहीं हुई और ट्रेड वॉर में कुछ बेहतर समझौते हो गए तो शायद भाव अगले कुछ महीनों में इतने न बढ़ें. फिलहाल सोना अभी अपनी रिकॉर्ड कीमतों पर है. इन दिनों 10 ग्राम 24 कैरेट सोना 94000 रुपए तक पहुंच गया है यानी 1 जनवरी से अब तक 10 ग्राम सोने के भाव में 22.57 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी हुई है. अमेरिकी टैरिफ से बढ़े ट्रेड वॉर के खतरे के चलते सोने में निवेश बढ़ रहा है. सोने की कीमतों पर मुद्रा के भाव में गिरावट का भी असर होता है और शादियों के सीजन के चलते भी भाव में तेजी है.
क्या सोने के खजाने से ही तय होती है मुद्रा
सोने के खजाने से हाथ में रखे कागज के नोट का मूल्य तय होने वाली बात अब सही नहीं रही. आप कभी भी पैंतीस डॉलर लेकर बैंक जाते, और एक औंस सोना ले आते. फिर दूसरे विश्वयुद्ध के बाद यूरोप ध्वस्त हो गया, तो मुद्रा का मूल्य तय करना कठिन हो गया. बैंकों के पास सोना नहीं था बल्कि बैंक ही नहीं बचे थे. तब कई देशों ने तय किया कि अब उनकी मुद्रा डालर से तय होगी. चूँकि डॉलर सोने पर आधारित था, तो यह स्टैंडर्ड मुद्रा थी. यूरोप का पुनर्निर्माण हुआ, अर्थव्यवस्था मजबूत हुई. इसी बीच अंदेशा हुआ कि डॉलर का भौतिक मूल्य घट सकता है. यानी कोई डॉलरों से भरा सूटकेस लेकर बैंक जाएँ, तो उतनी कीमत का सोना मिल जाए, इस बात की गारंटी नहीं थी. ऐसे में फिर डॉलरों को सोने में बदलने का अभियान शुरु हुआ.

अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन इस अभियान के खिलाफ डॉलर को सोने से मुक्त करने का निर्णय लेने की हद तक चले गए. यानी डॉलर का मूल्य सोने से तय नहीं होना था और न डॉलर के बदले निश्चित सोना मिलने की गारंटी ही थी. ऐसे में यूरोप की मुद्रा भी डॉलर से मुक्त हुई क्योंकि अब उसका एक निश्चित मूल्य नहीं था. निक्सन के इस कदम के बाद से डालर रसातल में जाने के बजाए लगातार ऊपर ही बढ़ता चला गया. क्योंकि बाज़ार को खरीद-बिक्री के लिए अब डॉलर ही चाहिए. अब दुनिया के बहुधा व्यापार डॉलर में ही हो रहे हैं. अन्य देश विकल्प तलाश रहे हैं लेकिन अभी तो डॉलर ही है.