Emoji भी कहते हैं अपनी कहानी
1990 के दशक में बने इमोजी अब कई रंगों में मौजूद लेकिन उपयोग सबसे ज्यादा पुराने पीले रंग वाले का ही
जापान से 35 साल पहले जिन इमोजी की शुरुआत शिगेताका कुरिता ने की वो अब भी पीले रंग के उसी शुरुआती रंग में ज्यादा हैं जो कई वजहों से चुना गया था. दरअसल इमोजी मोबाइल फोन के लिए जब डिजाइन किए गए तो तकनीक की अपनी सीमाएं थीं. तब शिगेताका ने पीला रंग इमोजी के लिए यह सोचकर चुना कि यह एक तटस्थ रंग है. इमोजी डिजाइन करने वाली संस्था, यूनिकोड कंसोर्टियम ने तब भी इस पीले रंग को दुनिया के सभी रंग वाले लोगों के बीच संतुलन बनाने वाला माना. इमोजी यदि सफेद बनाया जाता तो डर था कि डार्क कलर वाले इसके प्रयोग में हिचकें या दूसरी संस्कृति व समुदायों में भी दूसरे रंगों को लेकर आपत्ति आ सकती थी लेकिन पीले के साथ ऐसा नहीं था. पीले रंग को आसान हल माना गया क्योंकि यह न बहुत डार्क था और न लाइट. दूसरे शब्दों में पीला रंग सभी को जोड़ सकने में सक्षम था. कार्टून और कॉमिक्स की दुनिया में भी इस रंग की बहुतायत रही है इसलिए भी इसे चुनना आसान था. यह स्क्रीन पर आसानी से उभर कर दर्शकों का ध्यान खींचता है.
छोटी स्क्रीन पर भी ये स्पष्ट और आकर्षक होते हैं. 2015 के आसपास कई रंगों के इमोजी वाले विकल्प सामने भी आए लेकिन पीला रंग अब तक डिफॉल्ट बना हुआ है. इसका एक मनोवैज्ञानिक कारण भी माना जाता है और वह यह कि पीला रंग खुशी, उत्साह और ऊर्जा का प्रतीक है, जो इमोजी की मूल कोशिश से मेल खाता है. पीला रंग डिजिटल ग्राफिक्स में कम रंगों या कहें कम संसाधनों से भी लिया जा सकता था. अब तकनीक आगे बढ़ गई लेकिन पीले इमोजी अब भी सबसे ज्यादा काम आने वाले बने हुए हैं. इसलिए मान लें कि इमोजी एक ऐसी कोशिश है जो भेदभाव से दूर सार्वभौमिक तौर पर हमें एक-दूसरे से जोड़ती है.