August 13, 2025
लाइफस्टाइल

शिक्षा व्यवस्था के लिए हमें किससे क्या सीखने की जरुरत है

भारतीय शिक्षा व्यवस्था कैसे सुधर सकती है
भारत की पारंपरिक शिक्षा व्यवस्था आज भी बच्चों को एक जैसे साँचे में ढालने की कोशिश करती है. भारी-भरकम पाठ्यक्रम, अंकों की दौड़, अंतहीन परीक्षाएं, ट्यूशन का दबाव और रट्टा आधारित मूल्यांकन बच्चों की जिज्ञासा, रचनात्मकता और मौलिकता को कुचल देते हैं. इस ढांचे में श्रीनिवास रामानुजन जैसे प्रतिभाशाली व्यक्ति का जन्म लेना लगभग असंभव है, जिन्हें गणित में असाधारण योग्यता के बावजूद अन्य विषयों में फेल होने के कारण कॉलेज छोड़ना पड़ा था.
आज भी अधिकांश कक्षाएं रटने और अंक लाने पर केंद्रित हैं. ऐसे में सवाल उठता है—क्या हम प्रतिभाओं को यूँ ही संयोग पर छोड़ सकते हैं? जवाब है: नहीं.

वैश्विक शिक्षा मॉडल से क्या सीख सकते हैं?
फिनलैंड: शिक्षा में स्वतंत्रता और लचीलापन
फिनलैंड की शिक्षा प्रणाली बच्चों को अंकों की होड़ से मुक्त करती है. यहाँ न तो होमवर्क का बोझ होता है, न ही शुरुआती कक्षाओं में परीक्षा. शिक्षक पाठ्यक्रम और शिक्षण शैली चुनने के लिए स्वतंत्र होते हैं. बच्चों को उनकी रुचियों और क्षमता के अनुसार सीखने दिया जाता है.
जापान: मूल्य आधारित शिक्षा
जापान की शिक्षा प्रणाली अनुशासन और नैतिकता पर केंद्रित है. प्रारंभिक कक्षाओं में कोई परीक्षा नहीं होती. बच्चों को सह-अस्तित्व, सहकारिता और नैतिक मूल्यों से परिचित कराया जाता है. शिक्षा यहाँ केवल जानकारी नहीं, बल्कि संस्कार है.
जर्मनी: स्कूली शिक्षा और औद्योगिक प्रशिक्षण का मेल
जर्मनी का ‘डुअल एजुकेशन सिस्टम’ छात्रों को स्कूल के साथ-साथ उद्योगों में प्रशिक्षण देता है. इससे शिक्षा सीधे जीवन और रोजगार से जुड़ती है. यह मॉडल शिक्षा को व्यवहारिक और उपयोगी बनाता है.
अमेरिका: व्यक्तिगत लर्निंग और भावनात्मक बुद्धिमत्ता
अमेरिका में SAT जैसी परीक्षाएं छात्रों की अभिरुचियों के अनुसार उन्हें शिक्षित करती हैं. डेनियल गोलमैन के प्रयासों से यहाँ भावनात्मक बुद्धिमत्ता जैसे विषय भी पढ़ाए जाते हैं. बिग पिक्चर लर्निंग मॉडल में छात्रों के लिए व्यक्तिगत लर्निंग प्लान तैयार किया जाता है.
सिंगापुर: अनुशासन और लचीलापन का संतुलन
सिंगापुर की शिक्षा प्रणाली दुनिया की सबसे प्रतिस्पर्धात्मक मानी जाती है. लेकिन इसके मूल में ‘Teach Less, Learn More’ का सिद्धांत है. यहाँ शिक्षक छात्रों को सोचने, समझने और खोजने के लिए प्रेरित करते हैं.
प्रकृति आधारित शिक्षा: कोस्टा रिका, बाली और स्कैंडिनेविया
इन देशों में शिक्षा प्रकृति से जुड़ी होती है. बच्चे जंगलों, समुद्रों और स्थानीय पारिस्थितिकी में रहकर पर्यावरणीय जिम्मेदारी सीखते हैं. बाली का ग्रीन स्कूल बाँस से बने भवनों और सौर ऊर्जा के माध्यम से टिकाऊ जीवनशैली सिखाता है.
निष्कर्ष: भारत को क्या करना चाहिए?
भारत को ऐसी शिक्षा प्रणाली की ओर बढ़ना होगा जो बच्चों की जिज्ञासा और मौलिकता को पोषित करे. शिक्षा को रटने और अंकों की दौड़ से निकालकर अनुभव, व्यवहार और सोचने की प्रक्रिया से जोड़ना होगा. तभी हम प्रतिभाओं को संयोग नहीं, बल्कि एक सतत प्रक्रिया से जन्म लेते देख सकेंगे.