Ice Melting ने अंटार्कटिका को डाला खतरे में
पिघलती बर्फ कितना बड़ा खतरा
अंटार्कटिका में टूटते हिमखंड खतरा बनते जा रहे हैं और बढ़ता तापमान इस खतरे को बढ़ाता जा रहा है. बर्फ का पिघलना दिन ब दिन तेज होता जा रहा है. एक लाख करोड़ टन वजनी एक हिमखंड जो 4000 वर्ग किमी में फैला है, अंटार्कटिका के उत्तरी सिरे की ओर बढ़ रहा है। इसे ए-23/ए नाम दिया गया है, ऐसे शोध आ रहे हैं जो बताते हैं कि हिमखंडों के पिघलने और टूटने जैसे कुछ प्राकृतिक संकेत बढ़ते तापमान का पृथ्वी पर प्रभाव बताते हैं. समुद्री या पेंगुइन जैसे जीवों ही नहीं छोटे द्वीपों और समुद्र के किनारे वाले महानगरों तक भी इस आपदा के पहुंचने में ज्यादा समय नहीं है.
नए शोध बता रहे कितनी मुश्किल
‘नेशनल स्नो एंड साइंस डाटा सेंटर‘ के अनुसार पिछले एक दशक में भारत-भूमि के बराबर बर्फ पिघली है. उत्तरी ध्रुव पर बर्फ की कठोरता में भी 40 प्रतिषत की कमी हुई है. पांचवां सबसे बड़ा महाद्वीप अंटार्कटिका दक्षिणी गोलार्थ में करीब 20 प्रतिशत हिस्से पर बर्फीली चादर ताने हुए है. उत्तरी ध्रुव के 2.1 करोड वर्ग किमी में से 1.30 करोड़ वर्ग किमी पर बर्फ है. जहां माइनस 10 डिग्री से माइनस 68 डिग्री तापमान रहता है.
आर्कटिक साइबेरिया, आइसलैंड, ग्रीनलैंड, उत्तरी डेनमार्क, नार्वे, फिनलैंड, स्वीडन, अमेरिका, अलास्का, कनाडा तक फैला है. तेल, प्राकृतिक गैस और कोयला के भंडार होना अब इन जगहों के लिए नुकसान का सौदा साबित होने लगा है. औद्योगिक विकास के चलते ध्रुवीय भालू, सील,व्हेल और वेलर्स जैसे जीवों के लिए खतरे में हैं. दुनिया की 90 प्रतिशत बर्फ इसी अंटार्कटिका में है. इसलिए इसे धरती का फ्रिज कहते हैं, लेकिन यहां की भी बर्फ पिघल रही है. बर्फ का जमना भी कम हुआ है. यहां तैर रहे फ्रांस के आकार से भी बड़े ग्लेशियर टॉटेन की पिघलाव दर अनुमानों से कहीं ज्यादा निकली. इससे समुद्र का जलस्तर बढ़ना तय है. इसके पास ही दक्षिणी महासागर है. धरती की कार्बनडाइ ऑक्साइड सबसे ज्यादा यही महासागर सोखता है यानी दुनिया में निकलने वाली कॉर्बन कॉर्बन डाइऑक्साइड का लगभग 12 प्रतिशत तक यहां खप जाता है लेकिन यह तभी संभव है जब अंटार्कटिका पर बर्फ का स्तर और कठोरता बनी रहे.