Supreme ध्यान और दड़बों पर स्वत: संज्ञान
एक बार जिम्मेदारी तो तय हो
यूपीएससी ने एक ट्रेनी आईएएस के खिलाफ एफआईआर करवा दी और उसका चयन रद्द हो गया, उसके बाद कह दिया गया कि 15000 मामले जांचने के बाद एक भी वैसा नहीं मिला जिसमें पूजा खेड़कर जैसी गड़बड़ी हो. अब बताया जा रहा है कि कम से कम छह ऐसे अभ्यर्थी हैं जिनके किसी न किसी सर्टिफिकेट को लेकर शंका है और उनकी आगे जांच होगी. इसके साथ ही यह भी कह दिया गया कि यूपीएससी के पास ऐसी कोई सुविधा या अधिकार नहीं है कि वह तमाम प्रमाणपत्रों की स्क्रूटनी कर सके. यहां यह भी याद रखिए कि अकेली पूजा के मामले में कम से कम दस गड़बड़ियां ऐसी हैं जिन्हें यूपीएससी ने नजरअंदाज किया है वरना उसे ट्रेनी लेवल तक पहुंचना तो दूर प्रिलिम्स में बैठने तक की पात्रता नहीं होती.
अब इन सारी बातों से दूर उस कोचिंग के दड़बे में चलें जहां खुद टीचर कह रहे हैं कि न बैठने की जगह है और खड़े होने की, यहां तक कि कोरिडोर भी भरे हुए हैं और ऐसा भी नहीं कि इनके मां बाप ने फीस नहीं भरी हो बल्कि लाड़ले या लाड़ली को आईएएस बनाने के लिए ये खेती की जमीन बेच बेच कर इन कोचिंग की फीस भरने से भी पीछे न हटने वालेां की संतानें ही ज्यादा हैं. जब ये दिल्ली में पढ़ने आते हैं तो कोचिंग सेंटर से लेकर मकान मालिकों तक सब इन्हें लूटने को तैयार बैठे होते हैं.
जिन दड़बों में पढ़ाई करते हुए ये आईएएस बनकर बड़े बड़े बंगलों में रहने के ख्वाब बुनते हुए पढ़ाई करते हें उनका किराया और उनके जंजाल तो आप देख ही रहे होंगे कि लड़की को ब्रोकर हजार दो हजार कम करवाने के लिए कैसे ‘इनडीसेंट प्रपोजल ‘ देते हैं कि वह आत्महत्या तक पर उतारु हो जाती है. हजार से भी कम पास्ट के लिए 18 लाख तैयारी करते हों और 13 लाख परीक्षा फीस दे देकर अटेंप्ट पर अटेंप्ट देते जाते हों, जहां बच्चों को यह तक न पता हो कि बाहर की दुनिया में सुबह का समय है या शाम का, जहां बच्चों का पूरा जीवन इस बात के लिए दांव पर लग गया हो कि उनका सिलेक्शन हो पाता है या नहीं. वहां कुछ नाम ऐसे होते हैं जिनके परिवार अफसरी के लिए ही बने होते हैं, जो अंधत्व का प्रमाणपत्र देते हैं और मजे से ऑडी पूरी दुनिया में दौड़ा रहे होते हैं. वो होते हैं जिनके पिता क्लास वन ऑफिसर होते हैं और लाखों की सेलेरी सरकार से ले रहे होते हैं लेकिन जिनके बच्चे आय से कम का प्रमाण पत्र लगाते हैं और प्रमाणपत्र बनाने वाला अफसर आईएएस के घर आकर बेबी को प्रमाण पत्र देने में खुद को धन्य मानता हो. ये वो प्रिविलेज्ड होते हैं जिनकी कोई शारीरिक, आर्थिक या माानसिक (जी हां मानसिक कमजोर भी) वह ट्रेनिंग सेंटर दो दो साल तक नहीं पकड़ पाता जो दुनिया भर में बेहतरीन आईएएस ट्रेनिंग का संस्थान माना जाता है.
इस पूरी प्रक्रिया में जो सबसे ज्यादा मजे में हैं वो हैं कोचिंग के वो ‘शहद’ मास्टर जो चुग चुग कर शब्द बोलते हैं और आईएएस बनवााने की गारंटी हैं या वो मास्टर जो आईएएस को राजा बताते हुए पढ़वाते हैं. अफसरों के वो बच्चे तो मजे में होंगे ही जिनकी सेटिंग ऊपर से नीचे तक होती है, फिर ये मकान मालिक जो दड़बे बना बनाकर किसी आईएएस की तनख्वाह से ज्यादा पैसा बनाते हैं , वो जो अपने बेसमेंट में लाइब्रेरी बना बना कर बच्चों से वहां बैठने भर का पैसा ले लेकर तिजोरियां भरते हैं. जब उनके बेसमेंट पर सवाल उठें तो वो पुलिस से सांठगांठ कर किसी रास्ते से जा रही गाड़ी वाले को ही गिरफ्तार करा देते हैं. और इन सबसे ज्यादा मजे में वो अफसर जो झूठे प्रमाणपत्रों के सहारे पर पूरी नौकरी कर गुजरते हैं और दूसरे धोखेबाजों की धोखे से अफसर बनने में मदद करते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने खुद से संज्ञान ले लिया है और कहा है कि कोचिंग संस्थान दड़बे बनते जा रहे हैं लेकिन यह संज्ञान कई मामलों पर एक साथ लेना पड़ेगा.
यूपीएससी के दड़बे से लेकर आईएएस के कागजों को जांचने वालों और उन्हें ट्रेनिंग देने वालों से लेकर झूठे प्रमाण पत्र देने वाले डॉक्टरों, अफसरों तक. लूटने को तैयार बैठे लोगों से लुटने को तैयार बैठे मां बाप तक सभी पर जब तक एक साथ संज्ञान नहीं लिया जाएगा तब तक इसके रुकने की कोई संभावना इसलिए नजर नहीं आती क्योंकि मां बाप को न सिर्फ अपने बच्चों को राजा या रानी वाली नौकरी दिलाना है बल्कि अपनी सारी असफलताओं का बदला भी अपने इन बच्चों से चुकवाना है. शायद शुरुआत किसी एक जगह से हो और शायद वह जगह यूपीएससी का बिगड़ा हुआ बाड़ा ही हो राजा बनाने वाली कोचिंग संस्थाएं ही हों.