Shayar को हस्ती बनने में… ‘वक्त तो लगता है’
शायर हस्तीमल हस्ती ने अपनी गजलों से दुनिया को दीवाना बना दिया था, जगजीत सिंह ने जब उनकी गजल गाई ‘प्यार का पहला खत लिखने में वक्त तो लगता है’ तो दुनियाभर में उनके प्रशंसक तेजी से बढ़े. जगजीत के ‘फेस टू फेस’ एलबम को जब दोबारा लांच करना था तो कंपनी ने एलबम का नाम ही ‘प्यार का पहला खत’ कर दिया क्योंकि यही गजल सारे कीर्तिमान तोड़ रही थी. अब वह हस्ती भी इस फानी दुनिया को विदा कह गए जो इतनी मायने वाली गजलें और गीत इतनी आसानी से लिख लेते थे. जो शायर लिखता हो…
‘ज़िन्दगी ने तो बहुत रुतबे दिए अक्सर हमें, रास आया ही नहीं कुछ प्यार से बढ़कर हमें’
हस्तीमल ‘हस्ती’ का जन्म 11 मार्च 1946 को राजसमंद जिले के आमेट राजस्थान में हुआ था. उनकी गजलें जगजीत सिंह, पंकज उधास, मनहर उधास आदि ने गाई हैं.’क्या कहें किससे कहें, ‘कुछ और तरह से भी’ और ‘प्यार का पहला ख़त’ आदि के रचनाकार हस्तीमल हस्ती महाराष्ट्र हिन्दी साहित्य अकादमी प्रमुख भी रहे और 15 सालों से “युगीन काव्य” नाम की त्रैमासिक पत्रिका भी निकालते थे. उनके निधन पर उन्हें जानने और पढ़ने वाली कुछ हस्तियों ने इसतरह उन्हें श्रद्धांजलि दी है…
कवि और छायाकार अशोक बिंदल लिखते हैं ‘बहुत बड़ी बड़ी बात बेहद ख़ूबसूरती और सादगी से दो मिसरो में कह देना और जीवन के हर पहलू के प्रति गहरी समझ , सवेंदना और नजर में निखार आपकी शायरी में जगह जगह मिलता है, आपकी ग़ज़ल को अक्सर आयना समझ कर सुनता हूँ और मुशायरों में उन्हें ध्यान से सुनता था .
‘गाँठ अगर पड़ जाए तो फिर रिश्ते हो या डोरी, लाख करे कोशिश खुलने में वक्त तो लगता है’ के अलावा हस्तीमल हस्ती ने कभी यह भी कहा था ‘उसका साया घना नहीं होता, जिसकी गहरी जड़ें नहीं होती’. इसी तरह के अनुभव उनकी गजलों में झलकते रहे हैं. “दिल में जो मोहब्बत की रौशनी नहीं होती,इतनी ख़ूबसूरत ये ज़िंदगी नहीं होती “
जयपुर के साहित्यकार हरीश पाठक लिखते हैं देश के साहित्यिक समाज में अपनी विनम्रता,सौम्यता,सज्जनता व शालीनता के सँग-साथ बेहतरीन गजलों,दोहों और ‘काव्या’ जैसी बेहतरीन पत्रिका (जो 25 साल तक निकलती रही) के कारण वे अपनी रचनात्मकता को धार देते रहे.उनकी मान्यता थी कि पहले लिखो,फिर छपो, फिर मंच पर जमो और अंत में कोई बड़ा गायक उस लिखे को गाये-तभी सफ़लता है,वरना तो बहुत लोग लिखते हैं. उन्होंने ऐसा किया भी.उनकी गजलों को जगजीत सिंह से ले कर पंकज उदास,राजकुमार रिजवी,पीनाज मसानी सभी ने गाया और मुम्बई के मूलतः इस स्वर्ण व्यवसायी ने सरहद पार तक लोकप्रियता अर्जित की.
फिर बाद में कहीं अन्तर्मन में रह गया ये नाम एक दिन जगजीत सिंह जी की गज़लों की अल्बम ‘फेस टू फेस’ पर नज़र आया और फिर जैसे जैसे गज़लों से मुहब्बत बढ़ती गयी तो पत्रिकाएँ पढ़ने का भी शौक बढ़ने लगा और फिर वहाँ से हस्ती जी की गज़लों के माध्यम से उन्हें जानना पहचानना प्रारम्भ हुआ !पहचानना इसीलिए कह रही हूँ क्यों कि मुझे हमेशा उनको पढ़कर लगता था कि हो न हो हस्ती जी भी अपनी गज़लों की तरह सरल,सहज और सजग व्यक्तित्व होंगे ! क्यों कि हमेशा लेखनी और करनी एक ही हो ऐसा ज़रूरी नहीं !रचनाकार का व्यक्तित्व अगर उसकी रचनाओं मे प्रतिबिम्बित हो तो ये उसकी बहुत बड़ी विशेषता है क्यों कि तभी वह रचनाओं से न्याय कर पाता है और अपने पाठकों से भी और मेरे इस दृष्टिकोण पर एक बार मुहर तब लगी जब मेरे ग़ज़ल संग्रह ‘लिखना ज़रूरी है’ पर उन्होने इतनी हौसला बढ़ाने वाली टिप्पणी दी कि मैं ख़ुश तो हुई ही लेकिन अचंभित भी कि ग़ज़ल के इतने बड़े नाम और कितने विनम्र !दरअसल होता तो यही कि वृक्ष जितना फलदार होता है उतना ही झुका हुआ होता है लेकिन ऐसा इन्सानों में थोड़ा कम नज़र आता है !
लोकप्रिय लेखिका सोनरूपा विशाल हस्ती के बारे में लिखती हैं:
उनके शेर आमफ़हम और इतने सीधे सच्चे हैं कि पाठक उनमें उलझता नहीं बल्कि अपने भीतर की कई गाँठों को खुलता हुआ महसूस करता है ! कुछ शेर देखिये –
सच कहूँ तो हज़ार तकलीफ़ें
झूठ बोलूँ तो आदमी ही क्या
एक सच्ची पुकार काफ़ी है
हर घड़ी क्या ख़ुदा ख़ुदा करना
चाहे जिससे भी वास्ता रखना
चल सको इतना रास्ता रखना
जिंदगी के अनगिनत पहलुओं पर उन्होने शेर कहे हैं और इस ख़ूबी से कहे हैं कि उनके शेर कोटेबल बन गए हैं और सच बात तो यही है शेर वही ज़िंदा रहता है जिसे दिल महसूस करता है !हस्ती जी के अशआर में कहीं भी भाषायी विद्वता का अतिरेक नहीं है इसीलिए वो लोगों की ज़ुबान पर आसानी से चढ़ जाते हैं !
हस्ती जी का ये शेर उन की रचनाधर्मिता को ही परिभाषित करता है –
शायरी है सरमाया ख़ुशनसीब लोगों का
बाँस की हर इक टहनी बांसुरी नहीं होती
संतोष श्रीवास्तव ने उन्हें श्रद्घांजलि देते हुए लिखा … कैसे भूल सकती हूं हस्तीमल जी ने हेमंत की स्मृति में युगीन काव्य का विशेषांक निकाला था. और हर बार हेमंत स्मृति कविता सम्मान समारोह में अपनी उपस्थिति दर्ज कराते थे., हस्ती जी उन्हीं ख़ुशनसीब लोगों में शुमार हैं जिन पर शायरी अपनी पूरी सज धज के साथ नुमाया हुई है !न केवल अपनी ग़ज़लों में समकालीन जीवन के बोध के कारण वरन अपने उदात्त एवं व्यापक जीवनमूल्यों की स्थापना से ग़ज़लों की संपदा को और समृद्ध करने मे हस्ती जी के योगदान को हमेशा ध्यान में रखा जाएगा !
‘प्यार का पहला खत लिखने में वक्त तो लगता है’ जैसी लोकप्रिय गजल लिखनेवाले इस शायर ने रुखसत होने में जल्दी क्यों कर दी? थोड़ा वक्त और देते रचने में,मिलने-जुलने में.
यह सवाल निरुत्तर है और रहेगा.
प्यार का पहला खत लिखने में
वक्त तो लगता है
लंबी दूरी तय करने में वक्त तो लगता है
लिखने वाले मशहूर शायर हस्तीमल हस्ती नहीं रहे.
मुंबई धीरे-धीरे सूनी हो रही है. यही जिंदगी की सच्चाई है.