Ram जो रोम रोम में बसे हों
प्रभात झा, पूर्व सांसद
संसार में इस समय इस गुणी, शूरवीर, धर्मयज्ञ, सत्यवादी और दृढ़- प्रतिज्ञ कौन है ? सदाचारी, सब प्राणियों का हित करनेवाला, प्रियदर्शन, धैर्ययुक्त तथा काम-क्रोधादि शत्रुओं को जीतनेवाला कौन है? मुझे यह जानने की प्रबल अभिलाषा है। महर्षि ! आप इस प्रकार के श्रेष्ठ पुरुष के जानने में समर्थ हैं, अतः मुझे बताइये” महर्षि वाल्मीकि के ऐसा पूछने पर मुनिश्रेष्ठ नारद ने कहा, ‘महर्षि ! आपने जिन गुणों का वर्णन किया है वे बहुत, श्रेष्ठ और दुर्लभ हैं तथा उन सबका एक ही व्यक्ति में मिलना कठिन है, फिर भी आप द्वारा पूछे सभी गुणों से युक्त एक व्यक्ति हैं जो इक्ष्वाकु वंश में उत्पन्न हुए हैं और ‘राम’ नाम से जगदविख्यात हैं। वे अति बलवान्, धैर्ययुक्त, जितेन्द्रिय, बुद्धिमान्, प्रियवक्ता, शत्रुघ्रों के नाशक, धर्म के जाननेवाले, सत्यवादी, प्राणियों के हित में तत्पर, वेदों के ज्ञाता, धनुर्वेद में कुशल, आर्य, प्रियदर्शन, गम्भीरता में समुद्र के समान, धेयं में हिमालय के सदृश, पराक्रम में विष्णु के तुल्य, क्रोध में कालाग्नि जैसे, क्षमा में पृथ्वी सम, दान करने में कुबेर और सत्य बोलने में दूसरे धर्म के समान हैं”
भगवान श्री राम के अवतरण के संदर्भ में गोस्वामी तुलसीदासजी ने रामचरितमानस में वर्णन किया है जिसका अर्थ है जब-जब धर्म का ह्रास होता है और नीच अभिमानी राक्षस बढ़ जाते हैं और वे ऐसा अन्याय करते हैं कि जिसका वर्णन नहीं हो सकता तथा ब्राह्मण, गो. देवता और पृथ्वी कष्ट पाते हैं, तब-तब वे कृपानिधान प्रभु भांति-भांति के (दिव्य) शरीर धारण कर सज्जनों की पीड़ा हरते हैं। वे असुरों को मारकर देवताओं को स्थापित करते हैं, अपने (श्वास रूप) वेदों की मर्यादा की रक्षा करते हैं और जगत में अपना निर्मल यश फैलाते हैं. रामायण में वर्णन के अनुसार विष्णु के सातवें अवतार भगवान राम का जन्म हुआ था.
दीनों पर दया करने वाले, माता कौशल्या के हितकारी प्रगट हुए हैं. मुनियों के मन को हरने वाले भगवान के अदभुत रूप का विचार कर माता कौशल्या हर्ष से भर गई और उन्होंने श्रीराम को जन्म दिया। ‘राम’ शब्द का शाब्दिक अर्थ होता है “वह जो रोम रोम में बसे” पिछले सहस्त्रों वर्षों से आज तक जनता यदि किसी आदर्श शासनतंत्र को जानती है तो वो है रामराज्य। यदि कोई जिज्ञासावश जानना चाहे कि रामराज्य के इतने सहस्राब्दियों के बाद भी क्यों सब रामराज्य चाहते हैं तो उत्तर आता है करुणानिधान भगवान श्री राम की महानता। भगवान श्री राम अपने गुणों की वजह से ही मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाए। उन्होंने दया, सत्य, सदाचार, मर्यादा, करुणा और धर्म का पालन किया. भगवान राम ने समाज के लोगों के सामने सेवा का उत्कृष्ट उदाहरण पेश किया था। इसी कारण से उनको मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है.
राम अपने भक्तों के सामर्थ्य से भली भांति परिचित हैं तभी वह हनुमान को ही मुद्रिका देते हैं, भगवान राम की उदारता ऐसी है कि जो सम्पत्ति रावण को दस शीशों के दान के बाद मिली वो सम्पत्ति यो विभीषण को तो उसके आगमन के साथ दे देते है. भगवान राम के कई मित्र हुए। हर वर्ग के व्यक्तियों के साथ भगवान राम ने समभाव के साथ मित्रता की भूमिका निभाई। सभी संबंधों को भगवान श्री राम ने हृदय से निभाया. चाहे वो निषादराज या विभीषण और केवट हो या सुग्रीव इसके अलावा भगवान श्री राम में बड़े दयालु हुएण् उन्होंने अपनी दयालुता की वजह से मानव, पक्षी और दानव सभी के कल्याण की बात की। रामायण में भगवान श्री राम के चरित्र का जिक्र किया गया है, जो उन्हें धर्म के प्रति समर्पित इंसान के तौर पर प्रस्तुत करता है.
उन्होंने अपने माता-पिता से यह भी कहा कि वनवास के दौरान दुखी न हों। जिस कैकेयी के कारण राम जी को चौदह वर्ष वनवास हुआ, उस कैकेयी माता को वनवास से आने पर पहले की भांति ही प्रेम किया। आज भी आदर्श बंधु प्रेम को राम-लक्ष्मण की उपमा देते हैं. श्रीराम एक पत्नीव्रत थे। सीता का त्याग करने के उपरांत श्रीराम विरक्ति से रहे. आगे यज्ञ के लिए पत्नी की आवश्यकता होने पर भी दूसरा विवाह न कर, उन्होंने सीताजी की प्रतिकृति स्वयं के पास बिठाई.
राम ने सुग्रीव, विभीषण आदि के संकट काल के समय उनकी सहायता की। आदर्श राजा के रूप में वर्णन है कि भगवान श्री रामने वनवास से लौटने के बाद राज्याभिषेक के बाद अपना सारा राज्य श्री गुरु वसिष्ठ के चरणों में अर्पित कर दिया; क्योंकि उनका मत था कि ‘समुद्र से घिरी इस पृथ्वी पर राज्य का अधिकार केवल ब्राह्मणों को ही प्राप्त होता है. प्रजा द्वारा जब सीताजी के विषय में संशय व्यक्त किया तो उन्होंने अपने व्यक्तिगत सुख का विचार न कर, राजधर्म के रूप में अपनी धर्मपत्नी का त्याग किया। इस विषय में कालिदास ने वर्णन किया है- ‘कौलिनभीतेन गृहन्निरस्ता न तेन वैदेहसुता मनस्तः’। अर्थात लोकापवाद के भय से श्री राम ने सीता को घर से बाहर निकाला, मन से नहीं. आदर्श शत्रु के रूप में जब रावण के भाई विभीषण ने उसकी मृत्यु के बाद दाह संस्कार करने से इनकार कर दिया, तो राम ने उससे कहा, “मृत्यु के साथ शत्रुता समाप्त होती है. यदि आप रावण का अंतिम संस्कार नहीं करेंगे, तो मैं करूंगा। वह मेरा भी भाई है. भगवान् श्री राम ने धर्म की सभी मर्यादाओं का पालन किया, इसलिए उन्हें ‘मर्यादापुरुषोत्तम’ कहा गया है. भगवान् श्रीरामा ने प्रजा को भी धर्म सिखाया। उनकी सीख आचरण में लाने से मनुष्य की नयों वृत्ति सत्त्वप्रधान हो गई व इसलिए समष्टि पुण्य निर्माण हुए। अतः प्रकृति का वातावरण मानव जीवन के लिए सुखद हो गया.