Narmada Jayanti मां नर्मदा के प्रति श्रद्धा जताने का पर्व
पुराणों के अनुसार माघ, शुक्ल पक्ष सप्तमी को ही नर्मदा पृथ्वी पर अवतरित हुईं
नर्मदा जयंती इस बार 4 फरवरी को मनाई जा रही है. इस पर्व पर श्रद्धालु नर्मदा नदी की पूजा करते हैं, लोगों के जीवन में शांति और समृद्धि लाने वाली मां नर्मदा के प्रति लोगों का यह सम्मान भाव प्रदर्शित करने का तरीका है. माघ महीने में शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाई जाने वाली नर्मदा जयंती की पौराणिक कथा कुछ इस तरह सुनाई जाती है. अंधकासुर भगवान शिव और देवी पार्वती का पुत्र था. राक्षस राजा हिरण्याक्ष ने भगवान शिव से बहुत प्रार्थना की और अंततः उसे वरदान मिला. राक्षस राजा ने अंधकासुर जैसा शक्तिशाली पुत्र मांगा. बिना एक पल गंवाए भगवान शिव ने अपना पुत्र राक्षस राजा को दे दिया. हालांकि वराह अवतार में भगवान विष्णु ने राक्षस राजा को मार डाला था. अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए, अंधकासुर ने भगवान शिव के खिलाफ युद्ध किया और अंततः मारा गया. युद्ध को देखकर देवताओं को अपने पापों का एहसास हुआ और वे क्षमा मांगने के लिए भगवान शिव के पास गए. तब भगवान शिव के चेहरे से एक पसीना धरती पर गिरा. वह बूंद नर्मदा नाम की एक सुंदर लड़की में बदल गई. बाद में भगवान शिव ने उसे उसी स्थान, यानी अमरकंटक, मध्य प्रदेश से माघ महीने में शुक्ल पक्ष सप्तमी से शुरू होकर नदी की तरह बहने के लिए कहा.
नर्मदा जयंती के अवसर पर मां नर्मदा की पूजा के साथ उन्हें चुनरी भी चढ़ाई जाती है और इस दिन हजारों श्रद्धालु नर्मदा तट पर पहुंच कर मां के प्रति सम्मान जताते हैं. मान्यता है कि नर्मदा में पवित्र स्नान करने से व्यक्ति के सभी पिछले पाप धुल जाते हैं. जो लोग कालसर्प दोष से पीड़ित हैं उनके लिए मां नर्मदा का पूजन विशेष फल देने वाला है. नर्मदा जयंती, मां नर्मदा का जन्म उत्सव है.